भाग २
स्थानीय तह की स्वायत्तता के बारे में लेख के दूसरे भाग की शुरुवात उन्हीं प्रश्नों के साथ कर रही हूँ जिन प्रश्नों के साथ पहले भाग का अन्त किया था । वे प्रश्न हैं , क्या स्थानीय तह स्थानीय जनता प्रति उत्तरदायी है और क्या स्थानीय तह जनता के नियन्त्रण में है और क्या स्थानीय तह स्वायत्त हैं और अगर ऐसा है तो उसका मापन कैसे किया जा सकता है ?
स्वायत्तता का अर्थ होता है कानून की परिधि के अन्दर अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता। कानून के शासन की शुरुवात सविधान से होती है । संघीय संविधान वह पहली संरचना है जो संघीय, प्रादेशिक और स्थानीय तीनों तह को एक सूत्र में बाँधती है । संविधान का भाग ५ राज्य की संरचना और शक्ति की बाँडफाड विषय से सम्बन्धित है और इस भाग में और इस भाग अन्तर्गत की अनुसूची ८ और ९ में स्थानीय तह का अधिकार क्षेत्र वर्णित है । संविधान का भाग २० संघ, प्रदेश और स्थानीय तह बीच के अन्तरसम्बन्ध पर प्रकाश डालता है । इसके अलावा प्रशासन और प्रहरी तंत्र हैं जो देश को एक सूत्र में बांधते हैं । स्थानीय तह संचालन ऐन २०७४ में स्थानीय तह की सरकार के लिए प्रशासनिक अधिकृत की व्यवस्था की है जिसकी नियुक्ति संघीय सरकार करती है ।
राजनीतिक दल जन स्तर पर ंगठित संस्था होते हैं और संविधान ने संघीय और और प्रादेशिक दल के गठन की परिकल्पना की है जिनकी वैधानिक संरचना प्रदेश स्तर तक होनी चाहिए । संविधान के भाग २९के धारा २६९ के उपधारा ४ (ख) में प्रत्येक ५ वर्ष में किसी भी राजनीतिक दल की वैधानिकता के लिए सिर्फ संघीय और प्रदेश तह के प्रत्येक पदाधिकारी के निर्वाचन को आवश्यक बताया है । अर्थात् संविधान स्थानीय तह पर दल के संगठन की उपस्थिति को नहीं पहचानता है । इसका सीधा अर्थ है कि संविधान स्थानीय तह के दलगत निर्वाचन के पक्ष में नहीं है । इसलिए पार्टी के स्थानीय तह निर्वाचन के निर्वाचन आयोग यदि पार्टी के चुनाव चिन्ह को मान्यता देता है तो वह गैर संवैधानिक है ।
संविधान के भाग ४ में राज्य के निर्देशक सिद्धान्त, नीति तथा दायित्व के धारा ५० में उल्लेखित है कि संघीयता तहत संघीय इकाइयों के बीच सम्बन्ध संचालन करते हुए स्वायत्तता और विकेन्द्रीकरण के आधार पर शासन व्यवस्था संचालन को राज्यका राजनीतिक उद्देश्य कहा गया है । इस धारा में भी कहीं से यह नही झलकता है कि स्थानीय तह का निर्वाचन और शासन दलीय आधार पर ं होगा । प्रत्येक स्थानीय इकाई की जनता को संविधान एक समुदाय के रुप में स्वीकार करता है और समुदाय शब्द की निश्चित परिभाषा और अर्थ है ।
ऋयmmगलष्तथ शब्द लेटिन भाषा के शब्द ऋयmmगलष्क से आया है जिसका अर्थ होता है अयmmयल । लैटिन भाषा में ऋयmmगलष्तबक शब्द का अर्थ उगदष्अि कउष्चष्त होता है । अर्थात् ऋयmmगलष्तथ उन लोगों के समूह को कहा जाता है जो एक जगह पर रहते हैं और उनकी आदतें , परम्परा,रुचि और व्यवहार में समानता होती है । उनके मूल्य मान्यताएँ और रीति रिवाज मे भी समानता होती है और यह सब मिलकर एक अयmmयल उगदष्अि कउष्चष्त को जन्म देती हैं । स्थानीय तह के बारे में विश्व भर में आम धारणा यही है कि वह अयmmयललभकक पर आधारित उगदष्अि कउष्चष्त को मजबुत बनाए और उसके लिए काम करे ।
लेकिन निर्वाचन के लिए समुदाय का विभाजन यदि दलीय आधार पर होता है तो समुदाय का अयmmयललभकक और उगदष्अि कउष्चष्त भी विभाजित हो जाता है । यह विभाजन ऐसे कारणो के लिए होता है जिसका श्रोत या आधार सम’दाय नहीं है अर्थात् वाह्य काणें और वाह्य स्वाथों की सम’दाय के अन्दर टकराहट होने के कारण समुदाय सिर्फ कमजोर हीं नहीं होता है बल्कि वाह्य हस्तक्षेप के कारण समुदाय के अन्दर जो द्वन्द होता हैं, उनका भी दलीयकरण हा जाता है और समुदाय के अन्तर की शांति एवं सौर्हाद्रता में खलबली आ जाती है । दलीयकरण के कारण सामान्य विवाद भी जटिल बन जाता है ।
दलगत निर्वाचन के कारण दलीय नियन्त्रण में आने के बाद स्थानीय तह संविधान की परिकल्पना अनुसार स्वायत्त नहीं रह जाता है । यदि समुदाय के लोग अपने बीच से स्वयं अपना उम्मेदवार नहीं चयन करते हैं और उम्मीदवारी के बारृ में निर्णय समुदाय से बाहर दल के अधिकारी तय करते हैं तो इससे भी स्थानीय समुदाय की स्वायत्तता समाप्त हो जाती है ।
स्थानीय तह के अधिकार क्षेत्र स्थानीय तह परं शांति और सद्भाव की सुनिश्चितता, कर संकलन, स्थानीय सेवा व्यवस्थापन, स्थानीय तथ्यांक एवंं अभिलेख संकलन, स्थानीय बजार व्यवस्थापन, घर जग्गा धनी प्रर्जा वितरण, सहकारी संस्था नियमन,ं स्थानीय एफ एम संचालन, स्थानीय स्तर विकास आयोजना तथा परियोजना हरु, वातावरण तथा जैविक विविधता संरक्षण , स्थानीय सडक, ग्रामीण सडक , कृषि सडक, सिंचाई , स्थानीय अदालत , मेलमिलाप र मध्यस्थताको व्यवस्थापन , कृषि तथा पशुपक्षी पालन, सामाजिक सुरक्षा जलाधार तथा वन्य जन्तुसंंरक्षण, भाषा संस्कृति तथा ललितकला संरक्षण और जैसे विषय हैं । संविधान में स्थानीय तह को संविधान और संघ के द्वारा बनाए गए कानुन की परिधि के अन्दर अपनी आवश्यकता अनुसार कानून बना कर अपना दायित्व निर्वाह करने का अधिकार दिया गया है ।
स्थानीय तह के दलगत निर्वाचन के बावजुद भी ं दलीय आधार पर अविश्वास का प्रस्ताव लाकर स्थानीय सरकार बनाने का या गिराने का अधिकार निर्वाचित सदस्यों को नहीं है । उनके बीच के विवाद को सुलझाने की जिम्मेवारी जिल्ला समन्वय समिति को दी गयी है । इस अवस्था में स्थानीय सरकार के दलगत निर्वाचन का उद्देश्य अथवा प्रयोजन क्या है , के बारे में विचार करना आवश्यक है । स्पष्ट है कि देश की प्रमुख दल जिन्होंने कानुन बनाया है , वे स्थानीय तह की वास्तविक स्वायत्तता के पक्ष में नहीं हैं । वे दल ि कसी भी कीमत पर स्थानीय स्तर पर समुदाय की स्वतंत्रता के पक्ष में नहीं हैं । संविधान को छलते हुए चोर दरवाजे से गलत कानून बना कर स्थानीय तह का निर्वाचन दलीय आधार पर कराने की व्यवस्था कर दी गयी है । निर्वाचन आयौग दलीय चुनाव चिन्ह सहित का बैलट पेपर छपवाता है । स्वायत्तता के आवरण में केन्द्रिीकरण चाहने वाले राजनीतिक दल यथार्थ मे स्थानीय तह की स्वायत्तता के खिलाफ हैं । इसीलिए संविधान ने जो दिया है कानून ने उसे छीन लिया है । इसे एक हाथ से देना और एक हाथ से लेना कहते हैं । ऐसा बहुत सारे विषयगत क्षेत्र में घटित हुआ है ।
अन्त में निश्कर्ष यह निकलता है कि स्थानीय तह स्वायत्त नहीं हैं और संविधान से बाहर जाकर राजनीतक दल स्थानीय तह को नियन्त्रित करते हैं और स्थानीय जनता को दलीय आधार पर विभाजित कर समुदाय की भावना को कमजोर कर देते हैं । .
स्थानीय तह के निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति नहीं बल्कि दल के प्रति निष्ठा रखते हैं और दल के प्रति उनकी निष्ठा दूसरे दलों की जनता के दमन और उनसे विभेद के लिए रास्ता खोल दिया है । इस तरह से समुदाय सही मायनों में समुदाय नहीं रह गया है ।
राज्य के लिए नीति निर्देशन सम्बन्धी संविधान के भाग ४ के धारा ५१ के (ग) (३) सामाजिक तथा ‘ांस्कृतिक रुपान्तरण सम्बन्धी नीति में कहा गया है ः
“सामाजिक , सांस्कृतिक तथा सेवामूलक कार्यमा स्थानीय समुदायको सृजनशीलताको प्रवद्र्धनर परिचालन गरी स्थानीय जनसहभागिता अभिवृद्धि गर्दै सामुदायिक विकास गर्ने ।” यह निश्चित रुप से स्थानीय सरकार के लिए ही कहा गया है लेकिन दलीय नियन्त्रण में आने के बाद इस धारा मेव्यक्त भाव व्यवहार में लागू होना असम्भव ही है ।
दलीय आबद्धता ही स्थानीय तह में भ्रष्टाचार का भी प्रमुख कारण है क्योकि भ्रष्टाचार दलीय संंगठन के संरक्षण मे होता है । आज स्थानीय तह में भ्रष्टाचार की समस्या विकराल होतो जा रही है । अख्तियार दुरुपयोग आयोग पूर्णतया विफल होते जा रहा है । यह सब समझते हैं कि भ्रष्टाचार स्थानीय तह पर भ्रष्टाचार इसलिए नियन्त्रित नही हो पा रहा है क्योकि राजनीतिक दलं यहाँ भ्रष्टाचार को संरक्षण देते हैं । इसलिए अख्तियार विरले ही भ्रष्टाचारी को कारवाही के दायरे में लाता है । अख्तियार यथार्थ में भ्रष्टाचार नियन्त्रण के बदले डराने धमकाने वाला राज्य का प्रचारमुखी संयन्त्र बन कर रह गया है और इसका नकारात्मक प्रभाव सुशासन , विकास और स्थानीय लोकतंत्र पर पडा है । स्थानीय तह में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार होने की बात निरन्तर आ रही है । लोग इन दिनों यह भी कहने लगे हैं कि प्रत्येक गाँवपालिका ओर नगरपालिका में स्वायत्त तंत्र नहीं बल्कि निरंकुश सामंती तंत्र की स्थापना हो गयाी है । इसे गलत भी नहीं कहा जन सकता है क्योंकि क्यों कि कल के सामंती तंत्र के जैसा ही स्थानीय तह को सभी अधिकार प्राप्त हैं लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधिं अपने दलौ. के प्रति उत्तरदायी हैं ।
सरिता गिरी
१९ । ४ । २०७८
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