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Showing posts from September, 2013

काठमांडु अगर अपना नहीं तो प्रशासन भी पराया

काठमांडु अगर अपना नहीं  तो प्रशासन भी पराया है । बात सडक के किनारे के परखाल की नहीं, दो घरों के बीच के परखाल का है । २०६८  साल में मुझे स्थानीय स्वायत्त कानून अनुसार बिना कोई सूचना जारी किए हुए बाबुराम भटराई की सरकार से महानगरपालिका के कार्यकारी प्रमुख केदार प्रसाद अधिकारी ने अपने अंतिम दिनों में एक फर्जी मुचुल्का के आधार पर मेरे घर और प्रमिला घर के बीच में परखाल होते हुए भी कानूनी मापदंड के विपरीत राजनीतिक पूर्वाग्रह और बदला लेने के लिए नक्शा पास कर दिया जिसकी कोई जानकारी मुझको एक वर्ष तक नहीं दी गयी । जब मुझको जानकारी मिली तब मैंने महानगरपालिका में कई निवेदन दिए लेकिन अपनी गल्तियों को छिपाने के लिए नगरपालिका ने मौन साधा और जब निर्वाचन का समय आया है तो पिछले दो दिनों से बिना किसी कागजात के जनपद प्रहरी का बडा दस्ता आतंक फैलाने के लिए पिछले दो दिनों से मेरे घर पर धावा देते आ रहा है । यथार्थ में बिना किसी कागजात के प्लिस को मेरे निवास में प्रवेश करने का अधिकार तक नहीं है । अवैधानिक नक्शे के अनुसार सहमति मे २०४६ साल में ही बनाए गए दिवाल को टुटाकर जिस संरचना को बनाने के लिए प्रमिला गि

मधेश पुनः हासिये पर

मधेश पुनः हासिये पर इस देश में मधेशी समुदाय के सदस्य राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति मधेश आंदोलन की ताकत के बल पर बने । मधेश को केन्द्र की राजनीति मे बराबरी के हक के साथ स्थापित करने के लिए ही मधेश आंदोलन हुहा था । लेकिन मधेश आंदोलन ने दासत्व के जिन शिकंजो को तोडा था, उनकी जगह पर नये शिकंजों को बनाने का खेल संविधान सभा निर्वाचन के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो गया था । उसका परिणाम यह था कि संविधान सभा बिना संविधान बनाए समाप्त कर दिया गया । योजना तहत शासकों ने दूसरी सफलता तब हासिल की जब उस खिलराज रेग्मी के हाथ में सरकार की सत्ता सौंपी गयी जिसने संविधान सभा को अपने अजीबोगरीब आदेश से भंग करा दिया था । यह सरकार जनता प्रति उत्तरदायी नहीं है । संसद की जगह उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति बना दी गयी है और महामहिम जी सरकार और समिति से घिर चुके हैं और उनके सिफारिश पर बारबार उसी संविधान को घायल करते रहे हैं जिसके आधार पर  स्वयं राष्ट्रपति बने हैं । कई बार उन्होंने गलतियाँ की हैं और शांति प्रक्रिया के अपूर्ण होने की अवस्था में बिना राजनीतिक सहमति के सेना परिचालन के लिए संविधान विपरीत अगर अपनी मुहर लगाएंगे तो

गणतंत्र में लोकतंत्र

गणतंत्र में लोकतंत्र अंततोगत्वा संविधान सभा निर्वाचन के लिए निर्वाचन आयोग में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि और समयावधि को बढाने की बात तय हो चुकी है । शायद कल निर्वाचन आयोग नयी तिथि की घोषणा कर दे । सरकार के द्वारा तय की गयी मतदान की तिथि के दो महिना पहले निर्वाचन को लेकर उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति, चुनावी सरकार और निर्वाचन आयोग ने जिस तरह से पूरे देश को बंधक बना कर रखा है उससे स्पष्ट होता है कि निर्वाचन देश और जनता के लिए नहीं बल्कि  मूलतः इनकी आवश्यकताओं और इनकी वैधानकता के संकट को दूर करने के लिए होने जा रहा है । निश्चित रुप से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि में परिवत्र्तन असंतुष्ट ३३ दलों को सहमत कराने के लिए नहीं हो रहा है । यह परिवत्र्तन इस लिए हो रहा है कि समिति के प्रमुख ४ दल अभी स्वयं निर्वाचन के लिए तैयार नहीं हैं । शायद निर्वाचन आयोग भी अभी आवश्यक तैयारी नहीं कर पाया है । लेकिन इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि हम अभी भी अधिनायकवादी सत्ता के अद्र्ध नागरिक  हैं। 2070.6.2 KTM

अनशन संस्मरण (भाग २)

अनशन संस्मरण  अनशन का ध्येय सिर्फ मांगो की पूत्र्ति नहीं होता है । राजनीतिक अनशन मुलतः राजनीति के संसार के सत्य को स्थापित करने का आग्रह  है । चलायमान राजनीति को तो वैसे भी अद्र्धसत्य की दुनिया मानी जाती है । एक बात के बारे अभी पूरी समझ बन नहीं पाई होती है कि कुछ नया घट गया होता है । गहराई में जाकर सत्य का सामना करना, उसको समझना  राजनीतिक सत्याग्रह के किसी भी कार्यक्रम का मूल ध्येय होता है । किसी भी विषय के बारे में सत्य पर असत्य अथवा भ्रम की सिर्फ एक परत नहीं होती है। हर एक परत के हटने के बाद सत्य की एक नयी परत सामने आती है । सत्य और ज्ञान  इस दृष्टिकोण से एक हैंं । २२ दिनो के अनशन अथवा सत्याग्रह मेरे राजनीतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है । उसके अनुभवों को वर्णन करने का प्रयास मैं इस लेखन में कर रही हूँ । अनशन संस्मरण (भाग २) श्रावण २९ गते से मैं अनिश्चितकालीन अनशन पर शांतिवाटिका, रत्नपार्क में बैठी और अनशन का समापन २२ दिनों के बाद भाद्र १८ गते को हुआ। जिस कार्यक्रम को सबेरे ९ बजे से शुरु होना था। वह  १२ बजे के बाद ही शुरु हो पाया । शांति वाटिका का प्रयोग करने की अनुमति देने में काठ

Ansan ko Sansamaran

अनशनको संस्मरण उनको नाम बिष्णु लामिछाने थियो । झापा घर भएका ती युवा अनशन को तेस्त्रो दिन देखि क्रम न टुटायी अनशन स्थलमा आउन थाले का थिए । अनुहार मा एक प्रकार को आभा भए पनि अनुहारमा जहिले पनि उदासी हुन्थियो । संधै आयी नमस्कार गरी एउटा कुना मा बसी पत्रिका का पाना उल्टाउंथिए र दिउँसो बीच मा उठी कहिले काहीं एता उती पनि जान्थिए । त्यस्तै एक जना मधेशी युवा पनि बीच बीच मा केही दिन बिरायी आई राख्थ्एि । अत्यन्त सभ्य र भला आदमी को अनुहार तर कुनै प्रकार को चिंता ले मलीन भयी राख्ने उनको अनुहार थियो । उनी दाढी पाली राखेका थिए ।यी दुबै युवा त्यहाँ आएको बेला मा आंदोलन को कार्यक्रम बनाउन मा संलग्न हुन्थिए । अजय बोल्दै न थिए तर बिष्णु कहिले काँही कुरा कुराकानी पनि गरथिए । बिष्णु ले एक दिन भने, दिदी , “यहाँ आउंछु, संधै वर्गीकृत विज्ञापन हेर्छु र नोकरी का लागि फोन मा सम्पर्क गर्छु । म अब पत्रकारिता को आफ्नो पढाई पूरा गर्न काठमांडूमा कुनै नोकरी को खोजी मा छु । ” अजय त्यती बोल्दै न थिए । तर अरु संग बुझदा उनी पनि सुपरभाइजर सम्मको नोकरी को खोजी मा काठमांडू को सडक मा भौंतारी रहेका थिए । बेरोजगार य