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नागरिकता विवाद र नेपाली कांग्रेस

नागरिकता विवाद र नेपाली कांग्रेस

विभेदकारी नागरिकता कानून मात्र मधेशी को हक हितको  विरुद्धमा छैन । मुलुकमा गणतंत्र आए पछि लोकतंत्र माथिको  सुनियोजित श्रृंखलाबद्ध आक्रमणको एउटा सुनियोजित कदम हो । संविधान सभा १ र २ मा नेपाली कांग्रेस पनि मधेशी लाई कमजोर नागरिक र अनागरिक बनाउने उक्त अभियानमा जानेर वा न जानेर संलग्न  थियो । अहिले आएर आफनो गल्ती नेपाली कांग्रेस ले सुधारेको छ ।

सशक्त मधेश ले सबै अतिवाद लाई पराजित गरेको छ , चाहे त्यो राष्ट्रवादको  अतिवाद होस वा अधिनायकवाद को अतिवाद होस । हाल समाजवादले जब एउटा  अतिवादी  रुप लिन खोजी रहेको छ तब नेपाली कांग्रेसले लोकतंत्रका लागि मधेश र मधेशीको महत्व  बुझन खोजी रहेको छ ।

जन आन्दोलन र मधेश आंदोलनको सफलता पछि जब नया  नागरिकता कानून आयो तब मधेश मा एक खालको आत्मविश्वास को लहर पंैदा भयो । संविधान सभा १को निर्वाचनमा त्यस्को परिणाम पनि देखियो । त्यो परम्परागत शासन , सोच र स्वार्थका लागि एउटा चुनौती थियो । संविधान सभा २ मा मधेश कमजोर देखियो । भविष्यमा मधेश  र मधेशी लाई नियन्त्रण र शासनमा राख्नका लागि धेरै उपाय हरु भए। संविधान २०७२ को नया नागरिकता कानून एउटा त्यस्तै उपायको उदाहरण हो ।
रमाउने हरु रमाएर बसे तर जब लोकतंत्र माथि संकटका बादल हरु देखिन थालेको छ अनि मधेशी तिर आँखा गएको छ ।  मधेशी लाई नागरिकता विहिन बनाउंदै जाने नया संविधानको कानूनको आशय छ । मधेशी कमजोर नागरिक हुंदै जांदा यहाँ अधिनायकवादी समाजवादको स्थापना हुने छ । त्यस्को लक्षण हरु देखिन थालेको छ ।  मधेशी र्ला नागरिकता विहीन अनागरिक बनाउ)दै जांदा न त यो देश सुरक्षित ।हने छ न यहाँको लोकतांत्रिक व्यवस्था । 

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