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जय महाकाली का हुंकार भरने वाली गोरखाली सेना जय माओ या जय शी या जय चीन कभी नहीं कहेगी

 जय महाकाली का हुंकार भरने वाली गोरखाली सेना जय माओ या जय शी या जय चीन कभी नहीं कहेगी ।

नेपाल के निर्माता शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह ने कहा था कि मैं असली हिंदुस्तान बनाउंगा और गोरखाली सेना को मजबूत बनाते हुए आधुनिक नेपाल का निर्माण किया । राजा पृथ्वी नारायण शाह के असली हिंदुस्तान बनाने के मंतव्य का उस समय के लिए यदि भावार्थ समझा जाए तो वह यह है कि उस वक्त हिंदुस्तान पर जो विदेशी आक्रमण कर रहे थे और अपना शासन कायम करने में लगे थे , उनको में नेपाल में प्रवेश नहीं करने देने का था ।  उनकी यह बात उत्तर और दक्षिण दोनों सीमाओं के लिए लागू होती है जिसका उल्लेख उन्होंने अपने दिव्योपदेश में भी किया है । 


भारत सुरक्षित, स्वतंत्र और सशक्त हैं तभी नेपाल भी सुरक्षित और स्वतंत्र है की अवधारणा अनुसार भारत और नेपाल के बीच शांति और मित्रता की १९५० की संधि हुई । उस समय यदि भारत ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ था तो नेपाल की जनता उस अंधे और क्रूर राणा शासन से मुक्त हुआ था जो साम्राज्यवादी ब्रिटिश के सहयोग और संरक्षण से नेपाल में  १०४ वर्षो तक टिका रहा था । राणा काल में नेपाल ब्रिटिश साम्राज्यवाद का अप्रत्यक्ष उपनिवेश था । इसीलिए उस काल के भारत और नेपाल के इतिहास में कुछ मायनों में समानता है और दोनों देश की जनता ने अपने अपने तरीकों से साम्राज्यवादी और निरंकुश तंत्र को ढाला है और परस्पर सहयोग भी किया है । १९५० की संधि उस औपनिवेशिक कालखंड का परिणाम है । 


गोरखा सैनिकों को भारत की सेना में दाखिल कराने की संधि भी इस भूखंड को स्वतंत्र और सुरक्षित रखने की यथार्थ भूराजनीति से ही प्रेरित है । लेकिन नेपाल के उत्तरी छिमेकी साम्राज्यवादी चीन को उन संधियों से मुश्किलें हैं । इसीलिए चीन से प्रभावित नेपाल की कम्युनिष्ट पार्टीयाँ हमेशा से १९५० की संधि और गोरखा सैनिक के भारत की सेना में दाखिला की विरोधी रही हैं । ऐसा वे अपनी सत्ता और चीन की स्वार्थ पूत्र्ति के लिए करते आयी हैं ।  

चीन में जनता की आन्तरिक अवस्था क्या है , वह किसी से छिपा नहीं है । तिब्बत , हांगकांग , ताइवान और साउथ चाइना समुद्र मे क्या हो रहा हैं, वह हम सब जानतें हैं । चीन व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नही मानता है । चीन विवेक और अभिव्यक्ति की सवतंत्रता को नहीं मानता है । लेकिन नेपाल और भारत की सभ्यता का आधार ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित  बहुलवाद का दर्शन है । व्यक्ति की स्वतंत्रता से बडी बात और कुछ  नहीं होता है । व्यक्ति स्वतंत्र है, तो परिवार, समुदाय, समाज और देश स्वतंत्र रहते हैं ।

भारत मे गोरखा की सेना सिर्फ भारत की सीमाओं की रक्षा नहीं कर रही हैं, वे उस संस्कृति , धर्म और सभ्यता की भी रक्षा कर रही हैं जो नेपाल का है , भारत का है और कई मायनों में साझा भी है । इन सब का आधार व्यक्ति गत स्वतंत्रता और बहुलवाद का हमारा दर्शन है । चीन अपनी साम्राज्यवादी महात्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारत और नेपाल के सम्बन्धो पर एक के बाद एक कदम उठा कर  सुनियोजित रुप में आक्रमण कर रहा है और थके हारे खोखले नेपाल के कम्युनिष्ट नेता अपनी सुरक्षा और कुर्सी के लिए चीन के समक्ष समर्पण कर चुके हैं । नोल की जनता विभिन्न समस्याओं से जुझ रही है और कराह रही है लेकिन सरकार कुछ नही) कर रही है । यह सरकार कुछ कर भी नहीं पायेगी क्यों कि कंट्रोल रुम से संचालित यह सरकार बंदी सरकार है । सरकार सिर्फ भ्रष्टाचार कर के पैसा जमा कर रही है ताकि अगले चुनाव में उन पैसों को खर्च कर दो तिहाई की सरकार बना कर स्थायी रुप से कम्युनिष्ट सर्वसत्तावादी व्यवस्था लागू कर दी जाए और तब चीन हिमालय से सिंचित इस भूखंड पर भी अपना शासन कायम कर सके । 


चीन का भारत में कार्यरत गोरखाली सैनिकों के मुद्दे पर आक्रमण नेपाल पर चीन के सुनियोजित आक्रमण का एक हिस्सा है। लेकिन जय महाकाली का हुंकार भरने वाली गोरखाली सेना जय माओ या जय शी या जय चीन कभी नहीं कहेगी ।

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