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मंसीर ७ गते के बाद देश और मधेश की दिशा किधर

(excerpt from speeches delivered in the villages of  Bara and Parsa district on Manghsir 7 and 8, 2069 )
      
  मंसीर ७ गते के बाद देश और मधेश की दिशा किधर

 
एकीकृत ने.क.पा. माओवादी, नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले और संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा के नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण ज्येष्ठ १४ गते के दिन संविधान सभा देश के लिए संघीय संविधान जारी किए बिना ही विघटित हो गया । उस दिन पूर्व घोषणा अनुसार ना तो सभापति निलाम्बर आचार्य ने संविधान सभा में प्रस्तुत करने के लिए सहमति असहमति सहित का संविधान का मस्यौदा पारित  करने के लिए  संवैधानिक समिति की बैठक बुलायी और ना ही संविधान सभा के सभामुख सुभाष चन्द्र नेम्वांग ने संविधान सभा की बठक बुलायी । जब दो तिहाई संख्या से भी ज्यादा सभासद संविधान सभा में संघीय ं संविधान जारी करने के लिए तैयार बैठे थे, तब एक गहरे षडयन्त्र तहत सविधान सभा को कब्र मे दफना दिया गया । मधेशी मोर्चा तथा माओवादी की संयुक्त सरकार ने संविधान तथा सर्वोच्च अदालत की अवहेलना करते हुए  संविधान में आवश्यक संशोधन किये बिना ही मंसीर ७ गते को संविधान सभा निर्वाचन की तिथि घोषणा कर दी । संविधान अनुसार जनमत संग्रह अथवा नये संविधान सभा के निर्वाचन के बारे में निर्णय करने का अधिकार सिर्फ संविधान सभा को है । 

संविधान सभा निर्वाचन में जाने का निर्णय गलत नियत के  साथ किया गया था । हाल की सरकार ने संविधान निर्माण को प्राथमिकता नहीं दी । संविधान निर्माण को यदि प्रमुख दलों ने महत्व दिया होता तो समझौता करने के लिए वे तैयार रहते । कांग्रेस और एमाले जैसे प्रमुख विपक्षी दल भी संघीय और समावेशी संविधान बनाकर सबों को समान अधिकार और सुरक्षा देने के लिए तैयार नहीं हैं । एकीकृत नेकपा माओवादी भी संघीयता तहत मधेश को अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं । यहाँ का कुलीन शासक वर्ग और प्रशासन तंत्र संघीय संविधान बनाकर काठमांडू में केन्द्रित शक्ति के बाँड फाड के लिए तैयार नहीं है।   

आज की अवस्था के लिए राष्टपति महोदय भी जिम्मेवार हैं । उन्होने ने भी गलतियाँ की हैं । सरकार के ज्येष्ठ १४ गते के गलत निर्णय को उन्होंने स्वीकार किया है और  सरकार को कामचलाउ चुनावी सरकार  घोषित कर नये निर्वाचन के पक्ष में राजनीतिक वकालत की है । सभामुख की गलत  सिफारिश के आधार पर संसद नहीं रहने की घोषणा उन्होंने की है ।  घोषित समय पर निर्वाचन नहीं होने पर उनकी गलतियाँ प्रमाणित हो चुकी है । अपनी ज्येष्ठ १६ की एक गलती को छिपाने के लिए इस मंसीर ५ गते उन्होंने दूसरी गलती की है ।  निर्वाचन की तिथि की घोषणा हुए बिना ही  अध्यादेश बजट में निर्वाचन खर्च के लिए १० अरब रुपयों की स्वीकृति उन्होंने दी है ।  यह सिर्फ नीतिगत या संवैधानिक गलती नहीै है। यह आर्थिक भ्रष्टाचार का भी मामला है । 

एक के बाद एक  राष्ट के सभी प्रमुख व्यक्ति एवं दल गलतियाँ  करते आए हैं । आज उन्ही गलतियों को छिपाने के लिए कभी राष्टिय सहमति तो कभी राजनीतिक सहमति का नारा देकर जनता को भ्रम में रखा गया है ।मधेश आंदोलन की ताकत से जन्मे मधेशी दल भी कुछ कर नहीं पाए । आंदोलन के दौरान मधेश से किये गये किसी भी वादे को पूरा करने मे वे  पूर्णतः विफल रहे हैं । आंदोलन की ताकत से एक बडी शक्ति के रुप में उभरा मधेशी जनाधिकार फोरम सरकार बनाने,बिगाडने और पार्टी टुटाने के खेल में लगा रहा और मधेश के मुद्दों से दूर होता  गया ।  सत्ता के ही खेल में  फोरम, तमलोपा और तीर छाप सदभावना भी  बार बार टूटे हैं । सद्भावना आनन्दी देवी को हमलोगों ने इस खेल से बचाया और इसी लिए हम पर बार बार आक्रमण हुआ । तीन सभासदों की पार्टी को तीन पार्टी में विभाजित कर देने की इनकी योजना थी । जब हम नहीं टूटे तब शासक वर्ग ने हमको एक चुनौती के रुप में लिया और निरन्तर परेशानी और तकलीफें दी । उनकी सोच यही रही कि  जब अन्य पार्टियों को वे टूटा सकते हैं तो भला हमको क्यों नही टूटा सकते हैं । हम नहीं टूटे क्योंकि हमारी  घर की नींव मजबूत है । सदभावना आनंदी देवी की मजबूत नींव पूज्य गजेन्द्र बाबु ने बनायी है । उसी नींव के आधार पर हमने घर को बचा सके । ज्येष्ठ १४ के दो हफ्ते पहले मोती दुग्गड को निर्वाचन आयोग ने षडयन्त्र तहत मान्यता दी लेकिन उसके विरुद्ध भी हमलोग अदालत मे हैं ।  

दूसरे चरण के मधेश आंदोलन से लेकर संविधान सभा के विघटन होने तक पार्टी के उपर हुए आक्रमण को पहले आदरणीय माता आनन्दी देवी ने झेला और उसके बाद मैने झेला । इस पार्टी को बचाने की लडाई में आनन्दी माता ने  बहुत कष्ट झेले और अंत मे रहस्यमय ढंग से बंदी अवस्था में उनकी अस्वाभाविक मौत हुई है । सर्वोच्च अदालत के आदेश के बावजूद माओवादी ,कांग्रेस, एमाले और मधेशी मोर्चा के नेतृत्व में रही सरकारों ने उनको बंदी अवस्था से बाहर नहीं निकाला, अस्पताल में नहीं जँचवाया। इस पार्टी को कब्जे में रखने के लिए प्रशासन के संरक्षण में उनको नींद की गोलियाँ खिलायी गयी। मुझ पर भी बार बार कातिलाना हमला हुआ । यहाँ नहीं तो ईश्वर के दरबार में न्याय होता है ।  माता आनंदी देवी को अपहरण कर उनके हस्ताक्षर से सभासद बनने वाले श्याम सुन्दर गुप्ता आज स्वयं जेल की काल कोठरी मे बंद हैं ।
मधेशवाद की नींव रखने वाले इस दल को मधेश आंदोलन से लेकर आज तक एक तरफ मधेश विरोधी राज्य के षडयंत्रों से लडना पडा है तो दूसरी तरफ नये मधेशवादी दलों ने भी हमको नहीं बख्शा है ।  लेकिन हम आप सबों की दुआओं  से बचे हैं  । इस देश और मधेश को हमने दिया है, इसलिए हम बचे हैं । अंतरिम संविधान मे जब संघीय सिद्धान्तता को नही माना गया तब प्रथम चरण का मधेश आंदोलन इसी दल के आह्रवान करने पर  प्रारम्भ हुआ । पश्चिम नेपाल और नेपालगंज में  आंदोलन का तीव्र दमन हुआ । मधेश आंदोलन का पहला शहीद बाँके जिल्ला का कमल गिरी है ।  बाद में तत्कालीन सामाजिक संस्था मधेशी जनाधिकार फोरम ं ने भी अंतरिम संविधान जलाया और तब देश भर लाखों मधेशी जनता  संघीयता और स्वशासन के लिए स्वतःस्फूर्त तरीके से सडक पर उतर आई । हरेक जिले मे सदभावना आनंदी देवी के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं ने आंदोलन की अगुवाई की । सिरहा मे रमेश महतो की हत्या के बाद जब सदभावना आनंदी देवी के कार्यकत्र्ता आगे बढे तब जाकर आंदोलन ने तेजी पकडी । ये वो नेता और कार्यकत्र्ता थे जिनको गजेन्द्र बाबु के सदभावना ने २०३९ साल से लगातार प्रशिक्षित किया था। अच्छे नेता और कार्यकत्र्ता एक दिन मे पैदा नहीं होते हैं । 

सदभावना के पास प्रशिक्षित कार्यकत्र्ता थे और हंै । संविधान सभा निर्वाचन के बाद कांग्रेस एवं एमाले को मधेश में जब  भारी हार मिली तब गाँव गाँव में  मधेशवाद और संघीयता का संदेश फैलाने वाले  सदभावना आनंदी देवी को समाप्त करने की योजना बनायी गयी । मधेश आंदोलन से उनको पता चल गया था कि  हरेक गाँव  में पंजा छाप सदभावना है ।  तब  पंजा छाप को निर्वाचन आयोग में  सीज कराने के लिए गलत कानून का प्रयोग कर बार बार पार्टी को विभाजित करवाने का निर्णय करवाया गया । उस निर्णय विरुद्ध सर्वोच्च अदालत में मुद्दा जीत जाने के बाद भी प्रमुख पार्टियों के निर्देशानुसार  निर्वाचन आयोग में मुद्दा हरवाया गया । पार्टी को समाप्त करने के लिए पार्टी अध्यक्ष के नेतृत्व में हुए वैधानिक महाधिवेशन को निर्वाचन आयोग ने मान्यता नहीं दी और कानून  विपरीत पार्टी की स्वायत्तता पर आयोग ने आक्रमण किया । लेकिन हमलोग घबराए भी नहीं और टिके भी रहे और निर्वाचन आयोग को अब तक दो बार सर्वोच्च अदालत मे हमलोगो ने हराया है ।  

तमाम मुश्किलों के बावजूद संविधान सभा निर्वाचन में मधेश की जनता ने दो सीटों पर ह्मको जिताकर पार्टी को बचाया है । हम आपके आभारी हैं । इस पार्टी ने भी मधेश को दिया है । मधेशी को मधेशी पहचान इस पार्टी ने ही दी है । वास्तव में मधेश को आज तक जो भी मिला है वह सदभावना (आनंदी देवी) देवी ने ही दिया है ।  चाहे  वह अंतरिम संविधान में मधेशी की राजनीतिक और कानूनी पहचान हो या फिर संघीय नेपाल का सिद्धान्त हो या फिर  जन आंदोलन के बाद १४ लाख मधेशियों को मिली नागरिकता हो या फिर जनसंख्या के आधार पर मधेश में निर्वाचन क्षेत्र की वृद्धि हो ।अंतरिम संविधान में संघीयता के सिद्धान्त का उल्लेख सद्भावना आनन्दी देवी के हस्ताक्षर से हुआ है ।  सद्भावना आनन्दी देवी ने मधेश की जनता के साथ अबतक जितने वादे किये थे , उन सबको पूरा किया है । 

लेकिन गौर हत्या कांड के बाद जब दूसरे चरण का मधेश आंदोलन प्रारम्भ हुआ तब नयी मधेशवादी पार्टियो. का उदय हुआ। मधेश आंदोलन की ताकत पर बडी मधेशी पार्टिया संविधान सभा में पहँची । मधेश आंदोलन के दौरान किये गये २२ बूदे, ८ बूदे और माओवादी के साथ सरकार बनाने के लिए किए गये चार बूंदे  सहमति में से उन्होने मधेश की जनता के लिए कितना हासिल किया, इसका जबाब मधेशी जनता को उनसे मांगना होगा ।
आंदोलन के झोंके से राजनीतिक दल नहीं बनता है । मधेशी मोर्चा के दल अभी दल नहीं बने हैं । ं मधेशी मोर्चा ने  संविधान सभा को विघटित करने में एकीकृत नेकपा (माओवादी) को साथ देकर इतिहास की सबसे बडी गलती की है । यदि ज्येष्ठ १४ के दिन मधेशी मोर्चा ने माओवादी सरकार का साथ नही  दिया होता तो संविधान सभा विघटित नहीं होता और मधेश मे दो प्रदेशों सहित का संविधान भी आता । कथन कदाचित यह मान भी लिया जाए कि संघीय प्रारुप के बारे में सहमति नहीं होती तो असहमति के विषय बस्तु को लेकर संविधान सभा जनमत संग्रह या दूसरे संविधान सभा के निर्वाचन में जाने का निर्णय करती । दूसरे निर्वाचन की व्यवस्था करने के लिए व्यवस्थापिका संसद को बचाया जाता और तब देश में इतना बडा संवैधानिक संकट पंैदा नहीं होता । अंतरिम संविधान में भी पूरे संक्रमण काल तक व्यवस्थापिका संसद की निरन्तरता को आवश्यक बताया गया है ।  

लेकिन ज्येष्ठ १४ को राष्ट्रपति महोदय सभामुख के अनधिकृत पत्र को स्वीकार कर सरकार के निर्वाचन सम्बन्धी एकलौटी गलत निर्णय को सिर्फ  स्वीकार ही नहीं किया बल्कि संविधान सभा के नहीं हाने का कारण दिखा प्रधानमंत्री को कामचलाउ  भी घाेिषत  कर दिया।  व्यवस्थापिका संसद को विघटित करने का अधिकार संविधान ने किसी को भी नहीं दिया है । लेकिन इस खेल में  तीनों प्रमुख दलों की सहभागिता और सहमति रही है । आज सब सरकार और लोकतंत्र की बातें कर रहे हैं लेकिन संसद पुनस्र्थापना की नहीं । सरकार गिराने के लिए जनता को आंदोलन में उतारने की बातें प्रमुख प्रतिपक्षी दल कर रहे है लेकिन संसद पुनस्र्थापना के ये विरोधी हैं । संसद विरोधी दलें भला  लोकतन्त्रवादी कैसे हो सकती हैं । सरकार भी धारा १५८ का प्रयोग कर संसद पुनस्र्थापना के पक्ष में नहीं है ।  बिना संसद के कानून का शासन और जनता असुरक्षित है । 

संसद नहीं हाने से आज देश में कोई भी संस्था सुचारु नहीं है । अंतरिम संविधान संकट में पड गया है। जनता के कर से संचित धन सरकार के नियन्त्रण में है लेकिन  सरकार पर संसद का लोकतांत्रिक नियन्त्रण नहीं है । न्यायपालिका के पास पर्याप्त न्यायाधीश नहीं है। संविधानतः न्यायधीशो की  नियुक्ति नही हो रही हैं।  सरकार मंसीर ७ गते निर्वाचन नर्ही करा पायी लेकिन विफल होकर भी सरकार टिकी हुई है । देश में  निरंकुश तंत्र लगभग स्थापित हो चुका है लेकिन यह अकस्मात नहीं हुआ है ।
मधेशी मोर्चा और माओवादी की सरकार निरंकुशता को लादने की तैयारी पहले से ही कर रहे थे । सरकार ने  स्थानीय निकायो में दलीय प्रतिनिधित्व को समाप्त कर धरातल पर स्थानीय लोकतन्त्र की   हत्या संसद समाप्त होने से भी पहले कर दी थी ।  स्थानीय निकाय में अगर भ्रष्टाचार बढ रहा था तो उसके नियन्त्रण के उपाय किए जाने चाहिए थे । अख्तियार दुरुपयोग आयोग मे केन्द्रीय स्तर के लोगों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के बडे बडे मुद्दे दर्ज है लेकिन उनके बारे में  सरकार को चिंता नहीं है । लेकिन स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार बारे केन्द्र ज्यादा ही सवेदनशील दिखा । भ्रष्टाचार नियन्त्रण के नाम पर दलीय प्रतिनिधित्व को स्थानीय स्तर पर समाप्त कर देना लोकतंत्र और मधेश की उभरती ताकत पर गम्भीर आक्रमण था ।

मधेशी मोर्चा ने दूसरी सबसे बडी गलती मधेश को पाँच टुकडों में विभाजित करने के मुद्दे पर तीन प्रमुख दलों से ज्येष्ठ दो गते सहमति कर के की । संघीयता के बारे में मधेशी मोर्चा कभी भी स्पष्ट नहीं रहा। मोर्चा ने कभी एक मधेश प्रदेश की वकालत की तो कभी दो प्रदेश की और अंत में मधेश को पाँच टुकडों में भी बाँटने के लिए तैयार हो गये।

अगर हमलोगों ने एकजुट होकर वृहत मधेशी मोर्चा का आंदोलन खडा नही किया होता तो मधेश पाँच टुकडों मे विभाजित हो गया होता ।  मधेश को पाँच टुकडों में विभाजित कर शासक वर्ग कर्णाली, नारायणी और कोशी जैसे जल प्रदेशों को मधेशी बाहुल्य क्षेत्रों से अलग कर उसपर अपना नियन्त्रण कर लिया होता, और तब मधेश के पास बचता मरुभूमि होते जा रहे खेत और रोजगारी के लिए अरब देश जाने का रास्ता । संघीयता के साथ आज का संघर्ष जल जंगल और जमीन पर नियन्त्रण का भी संघर्ष है ।  अगर मधेश से बहती पानी पर आपका नियन्त्रण नही होगा तब  आप फिर पराधीन बन जायेेंंगे।  पानी पर नियन्त्रण फिर उन्हीं लोगों के हाथ मे चला जायेगा जो आज तक पानी को ऐसे ही बहने दे रहे हैं । ना तो इनलोगों ने बिजली बनायी है और ना ही खेतों की सिंचाई के लिए पानी दिया है । अगर हम यह संघर्ष  हारे तो जितेंगे वो जो मधेश को तो अपनी भूमि मानते हैं लेकिन मधेशी इनके लिए विदेशी है । 

संघीय नेपाल में भी मधेश और मधेशी को अपने शासन में रखने के लिए मधेश को छोटे छोटे प्रांतो में बाँटने की इनकी योजना है । इसीलिए ज्येष्ठ १४ को संविधान जारी नहीं किया गया । मधेश के प्रांत जितने छोटे.होंगे, शासक वर्ग के लिए मधेशियों को विभाजित करना उतना ही आसान होगा। आनेवाले दिनों में जाति के आधार पर मधेशी को विभाजित करन मधेश पर पुनः शासन करने की योजना भी खस समुदाय के शासक वर्ग बना रहे हैं । मधेश में जितने ज्यादा प्रदेश होंगे मधेश उतना ही कमजोर होगा और मधेश जितना कमजोर होगा मधेश में लोकतंत्र का भविष्य उतना ही अनिश्चित होगा । नेपाल में मधेश है तो लोकतंत्र है , मधेश नही. है तो लोकतंत्र नहीं है । 

संघीयता के अन्दर भी मधेश को अधिकार सम्पन्न बनने देने के पक्ष में शासक वर्ग नहीं है । संविधान सभा जब एक तरफ संघीय संविधान बनाने का प्रयास कर रहा था तब दूसरी तरफ माओवादी और मधेशी मोर्चा की सरकार क्षेत्रीय प्रशासकों को प्रधानमंत्री के कार्यालय अंतर्गत लाकर और उनको ज्यादा अधिकार देकर केन्द का शिकंजा पूरे देश पर मजबूत  करने की तैयारी कर रही थी । आज की अवस्था यह है कि संघीय संविधान जारी नहीं हुआ है लेकिन क्षेत्रीय प्रशासकों के पास कल से भी ज्यादा अधिकार हैं ।  

म्धेश में शांति की भी सुनिश्चिता नहीं है । कभी कभी लगता है कि हमलोग बारुद के एक ऐसे ढेर पर बैठे हैं जो कभी भी विस्फोट हो सकता है । मधेश के सशस्त्र समूहो सें हुई कई चरण की शान्ति वात्र्ता हुई है लेकिन उसका कोई  निष्कर्ष नही निकला है । सैयों मधेशी युवा जेल में बंदी जीवन बिता रहे हैं । बहुतों को झूठे हात हथियार के मुद्दे मे फँसाया गया है। कईयों को मधेश में जारी विशेष सुरक्षा नीति तहत एनकाउटर में मार दिया गया है । सशस्त्र द्वन्द में लगे मधेशी युवाओं को सेना समायोजन की प्रक्रिया से अलग रखा गया है । सशस्त्र द्वन्द मे लगे युवाओं के पास अब दो ही रास्ता है, या तो अपना शेष जीवन अपराधी बनकर गुजार दें या फिर देश छोड दें । हाल ही सरकार द्वारा राष्ट्रपति समक्ष पेश सत्य  निरुपण , मेलमिलाप और बेपत्ता व्यक्ति के छानबीन सम्बन्धी आयोग के अध्यादेश में  मधेश आंदोलन की अवधि और मधेश द्वन्द को नहीं समेटा गया है जब कि मधेशी मोर्चा और सरकार के बीच हुए समझौते में मधेश आंदोलन को जन आंदोलन की निरन्तरता मानी गयी है । मधेशी मोर्चा यहाँ पर भी चुका  । शांति प्रक्रिया से मधेश को काई भी लाभ नहीं हुआ है । 

आज लोकतंत्र के नाम पर  काँग्रेस तथा एमाले का गठबन्धन है जो सरकार गिराने के लिए सडक आन्दोलन  चाहता है लेकिन संघीय संविधान कैसे बनेगा और मधेश में शांति कैसे आयेगी, इस बारे में इन्हे कोई चिन्ता नहीं है। मधेशी मोर्चा संविधान सभा को भंग कराकर नये निर्वाचन के पक्ष में है लेकिन यह निश्चित है कि नये निर्वाचन भी संघीय संविधान नहीं आएगा क्योंकि तब भी दो तिहाई का बहुमत किसी दल को नही ंमिलेगा लेकिन तबतक लोग थक जाएंगे और संघीयता के विषय को दफना दिया जाएगा । कांग्रेस एमाले महेन्द्रवादी अवधारणा के अनुसार संघीयता चाहती है तो माओवादी संघीय व्यवस्था के बिल्कुल खिलाफ है । माओवादी निरंकुश तंत्र की स्थापना कर अपनी सत्ता को लम्बा करना चाहते हैं। मधेशी मोर्चा अपनी कोई अलग पहचान नहीं बना पाया है । उनको बस यही लगता है कि मधेश की सारी समस्याओं का समाधान उनके सरकार में बने रहने से ही है।  देश बुरी तरह से फँस गया है । तीनों प्रमुख दल मिलकर अंतरिम संविधान को विफल बनाने में तुले हैं क्योंकि अंतरिम संविधान ने देश को संघीय लोकतांत्रिक गणतन्त्र घोषित किया है । अंतरिम संविधान को समाप्त करने के लिए सहमति की वात्र्ता में विमति बनाए रखना और संक्रमण काल को लम्बा करते जाना प्रमुख दलों का सूत्र  है । 

आज मंसीर ७ गते है और चुनाव नहीं हुए। सरकार ने संविधानतः नये निर्वाचन तिथि की घोषणा नहीं की हैै। अब संवैधानिक और राजनैतिक संकट और भी गहरा होने जा रहा है । हमलोग चुनाव के पक्ष में हैं लेकिन उसके पहले संविधान चाहते हैं । हमलोग यह चाहते हैं कि इस बारे में संविधान सभा जिन विषयों पर सहमति हो चुकी है उनको समेट कर संविधान जारी करे । उसके बाल निर्वाचन के बारे में निर्णय हो और संसद उसका अनुमोदन करे।  तब सरकार चुनाव की तिथि तय कर चुनाव करवाये । अतः नेपाल सद्भावना पार्टी (आनन्दी देवी) संसद एवं संविधान सभा पुनस्र्थापना के पक्ष में हैं ।  हमलोग असहमति के विषयों को लेकर संविधान सभा व्यवस्थापिका संसद के निर्वाचन मे जाने के पक्ष में हैं ।  चुनावं में जाने से पहले देश की जनता को जानकारी हो  कि सहमति और असहमति के विषय बस्तु क्या हैं और उन विषयों के बारे में विभिन्न दलों का दृष्टिकोण क्या है। जबतक इन बातों के बारे मे जनता को जानकारी नहीं होगी तबतक जनता अपना मत लेने के लिए दलों के बारे मे दृष्टिकोण नहीं बना पायेगी ।  लेकिन प्रमुख दल पारदर्शिता के खिलाफ हैं । वे जनता को ताकतवर होते नही देखना चाहते हैं । वे चुनाव के लिए जनता का सिर्फ प्रयोग करना चाहते है. । 

आज के धूमिल वातावरण में संविधान सभा का चुनाव देश और मधेश की समस्याओं का समाधान नहीं दे सकता है । संविधान विहिनता और अनिश्चिताओं के बीच दूसरे संविधान सभा का निर्वाचन एक बहुत लम्बे द्वन्द की शुरुवात का कारण भी बन सकता है । देश में जातीय गृहयुद्ध और हिंसक दंगों का कारण बन सकता है । गौर कांड और कपिलवस्तु कांड की याद मधेश में अभी भी ताजा है । तीन प्रमुख दल इस बार के चुनाव में संविधान के विषय से भी ज्यादा अपने अस्तित्व के संघर्ष मे जायेंगी और वह जानलेवा संघर्ष आम जनता की जन जीविका और सुरक्षा के लिए खतरनाक होगा । इस निर्वाचन में शक्ति संघर्ष का प्रमुख स्थल मधेश होगा और तीनों बडे दल का लक्ष्य मधेश की जनता होगी । अब सब जान चुके है. कि इस देश पर शासन वही करेगा जो मधेश पर शासन करेगा । इसलिए मधेश में चुनावी संघर्ष खतरनाक होगा, हिंसक भी होगा। अतः मधेश को तय करना है कि मधेश क्या चाहता है । शांति और लोकतन्त्र के लिए मधेश को प्रमुख चार शक्तियों से चार वर्षों मे बना संविधान मांगना होगा और तब चुनाव की बात करनी होगी । मधेश की जनता आवाज उठाए कि पहले चार साल में बना संविधान दो, तब भोट मांगो । देश और मधेश की जनता पर अपनी विफलताओं का बोझ लादने का अधिकार राजनीतिक दलों को नहीं है। जनता को संविधान के बारे में राजनीतिक दलो से जानकारी मांगने का हक है । 

राष्टपति ने पहले जिस सरकार को कामचलाउ चुनावी सरकार कहा था उसी सरकार की सिफारिश पर पूर्ण बजट अध्यादेश के द्वारा इसी ५ गते को जारी कर चुके हैं । अर्थात् इस सरकार के उपर से कामचलाउ सरकार का बिल्ला हट चुका है । राष्टपति इस सरकार को नियमित बना चुके हैं । जब सरकार नियमित हो चुकी तो संसद को सक्रिय क्यों नही किया जा सकता है ?  लोकतंत्र के पक्षधरों के लिए संसद ही मदिर  मस्जिद मक्का मदीना चर्च सब होता है । लेकिन आज प्रमुख दल ही लोकतन्त्र, जनता एवं संसद के विरोध मे खडे हैं ।

संसद लोकतन्त्रको बचाने के लिए पहली आवश्यक संस्था है । जब संसद सुचारु होगा । तब अन्य संस्थाए सुचारु होगी । तब जनता सुरक्षित होगी ।  अतः मधेश की जनता आवाज उठाए कि  संविधान सभा से संविधान लाओ, तब चुनाव कराओ ।

जय मातृभूमि

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