बिंदू की हत्या
बिंदू
गाँव की एक मासूम लडकी
नाजुक उम्र की लहरों पर सवार
मन के सपनों के डोले मे डोलते
और तन के झूले में झूलते
पूरवी हवा के हिलोरों के बीच
रुमानी सपनाें की दलहीज पर
अभी अपने पहले कदमों को रखा ही था ।
सपनों के मखमली बादलों पर
व्ह अभी सवार हर्ई ही थी,
परियों की तरह उडने के लिए ।
कि अमावस की काली रात आन पडी ।
काली रात के साथ काली आंधी भी आयी
आँधी भी ऐसी की सब दिये बुझ गये,
चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया,
अँधेरे की स्याही भी इतनी काली
कि सभी सफेद मानव
काले दानव में बदल गये ।
अपने अपने नहीं रह,े
सब राक्षस बन गये
गरम रक्त और माँस की खोज में
भटकते हुए राक्षस ,
शरीर पर चुभने वाले काँटो के साथ,
चेहरे पर रक्त पिपासु बडे बडे दाँतो के साथ ।
सब प्रेत बन गये
भूखे प्यासे प्रेत
अँधेरों में भटकने वाले प्रेत
नोचने खसोटने वाले प्रेत
डराने और कराहने वाले प्रेत ।
ल्ेकिन बिदू तो अभी भी उजाली थी
सूनहले सपनों की डोली पर सवार
अँधेरी गलियों में भी
रुमानी रोशनी में
काली अंधेरी रात के खत्म होने का
इंतजार कर रही थी बिंदू ।
लेकिन सुनहले सपनों की
रुमानी रोशनी और कोमल गर्मी
मे साँसे लेती डूबती उतराती बिंदू
ठंडे प्रेतों और उबलते रक्त के दानवों
को सह्य नहीं थी ।
सब के सब निर्दयी दुश्मन बन गये ।
स्वयं सपने नहीं देख सकने वाले
सपनों की दुनिया में हिलोरे लेने वाली
बिंदू की हत्या पर उतारु हो गये ।
किसी ने उसे पीछे से दबोचा
किसी ने आगे से उसकी गर्दन को दबाया
किसी ने उसके पैरों को खींचा
कइयों ने उसके शरीर को काँटो
और दाँतो से छेद डाला ।
रक्त के फव्वारे फूट पडे।
बिंदु का रोम रोम तडपने लगा,
बिंद का तन मन चीखने लगा,
लेकिन उसकी चीख
सपनों की हत्या पर उतारु
प्रेतों और दानवों के हिंसक
और पागलपन से भरे
अट्टहासों में दब गये ।
दानव बिंदू के गरम रक्त को पीते रहे,
अट्टहास करते रहे ।
पागलपन ने ना कुछ देखा, ना कुछ सुना
बिंदू के सपनों की और चिखों की
उस रात हत्या कर दी गयी ।
उस काली अमावस रात को
रुमानी सपनों की बलि चढा दी गयी ।
बलि पाकर वह काल रात्रि थोडी लम्बी हो गयी ।
सूरज अगले दिन देर से निकला।
रात भर भटकने वाले प्रेत और दानव बेहोशी में सो गये ।
शाम हुई तो अंधेरे में सब प्रेत और दानव मलामी बन गये ।
बिंदू की ठंढी लाश को मलामियों न कंधे पर उठाया
और खेतों में ले जाकर जला दिया ।
जब सब समाप्त हो गया
तब मलामी फिर से आदमी बन गये
दानवों और प्रेतों को सभी ने अपने शरीर मे पुनः छिपा लिया।
सपनीली बिंदू की हत्या हुई थी ,
इसीलिए अगले दिन गाँव में ऐलान हुआ
रुमानी सपने देखना अपराध है ।
गाँव में एक बार फिर से बिजली गिरी ।
इस बार भी बिजली दानवी थी ।
अब सब आदमी जिंदा लाश बन गये।
ठंढे शरीर वाले प्रेताद्मी ।
सब प्रेताद्मी अपनी अपनी लाश के मलामी बन गये ।
गाँव सिर्फ मलामियों का गाँव बन गया ।
गाँव अब शापित हो गया था ।
सरिता गिरी, २०६९।१०।१३
The poem is not in format. Yet the lyrics is revealing the disparities of our society and the malpractices.
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