काठमांडु अगर अपना नहीं तो प्रशासन भी पराया है । बात सडक के किनारे के परखाल की नहीं, दो घरों के बीच के परखाल का है । २०६८ साल में मुझे स्थानीय स्वायत्त कानून अनुसार बिना कोई सूचना जारी किए हुए बाबुराम भटराई की सरकार से महानगरपालिका के कार्यकारी प्रमुख केदार प्रसाद अधिकारी ने अपने अंतिम दिनों में एक फर्जी मुचुल्का के आधार पर मेरे घर और प्रमिला घर के बीच में परखाल होते हुए भी कानूनी मापदंड के विपरीत राजनीतिक पूर्वाग्रह और बदला लेने के लिए नक्शा पास कर दिया जिसकी कोई जानकारी मुझको एक वर्ष तक नहीं दी गयी । जब मुझको जानकारी मिली तब मैंने महानगरपालिका में कई निवेदन दिए लेकिन अपनी गल्तियों को छिपाने के लिए नगरपालिका ने मौन साधा और जब निर्वाचन का समय आया है तो पिछले दो दिनों से बिना किसी कागजात के जनपद प्रहरी का बडा दस्ता आतंक फैलाने के लिए पिछले दो दिनों से मेरे घर पर धावा देते आ रहा है । यथार्थ में बिना किसी कागजात के प्लिस को मेरे निवास में प्रवेश करने का अधिकार तक नहीं है । अवैधानिक नक्शे के अनुसार सहमति मे २०४६ साल में ही बनाए गए दिवाल को टुटाकर जिस संरचना को बनाने के लिए प्रमिला गि