अनशन संस्मरण
अनशन का ध्येय सिर्फ मांगो की पूत्र्ति नहीं होता है । राजनीतिक अनशन मुलतः राजनीति के संसार के सत्य को स्थापित करने का आग्रह है । चलायमान राजनीति को तो वैसे भी अद्र्धसत्य की दुनिया मानी जाती है । एक बात के बारे अभी पूरी समझ बन नहीं पाई होती है कि कुछ नया घट गया होता है । गहराई में जाकर सत्य का सामना करना, उसको समझना राजनीतिक सत्याग्रह के किसी भी कार्यक्रम का मूल ध्येय होता है । किसी भी विषय के बारे में सत्य पर असत्य अथवा भ्रम की सिर्फ एक परत नहीं होती है। हर एक परत के हटने के बाद सत्य की एक नयी परत सामने आती है । सत्य और ज्ञान इस दृष्टिकोण से एक हैंं । २२ दिनो के अनशन अथवा सत्याग्रह मेरे राजनीतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है । उसके अनुभवों को वर्णन करने का प्रयास मैं इस लेखन में कर रही हूँ ।
अनशन संस्मरण (भाग २)
श्रावण २९ गते से मैं अनिश्चितकालीन अनशन पर शांतिवाटिका, रत्नपार्क में बैठी और अनशन का समापन २२ दिनों के बाद भाद्र १८ गते को हुआ। जिस कार्यक्रम को सबेरे ९ बजे से शुरु होना था। वह १२ बजे के बाद ही शुरु हो पाया । शांति वाटिका का प्रयोग करने की अनुमति देने में काठमांडू प्रशासन की आनाकानी के कारण मैं निर्धारित समय से तीन घंटे के बाद ही अनशन स्थल पर बैठ सकी । पार्टी ने अपनी २७ सूत्रीय मांगो सहित का ज्ञापन पत्र एवं आंदोलन की जानकारी चुनावी सरकार के अध्यक्ष खिलराज रेग्मी को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ जाकर श्रावण १६ गते को ही करा दिया था। उन मांगों में से कुछ प्रमुख मांग मधेश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्र की वृद्धि, मतदाता सूची से बाहर रहे ४० लाख लोगों से ज्यादा मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में प्रवेश कराने के लिए मतदाता सूची अद्दावधि कराने के लिए समयावधि बढाने, संविधान सभा निर्वाचन से पहले मधेश के सशस्त्र समूहों से चल रही वार्ता को निष्कर्ष पर पहुँचाने, सिरहा में दंगे जैसी स्थिति के पैदा होने के कारण विस्थपितों को पुनस्र्थापित कर सामाजिक सौहाद्र्रता बहाल करने, विदेश में कार्यरत ३० लाख से भी ज्यादा श्रमिकों के लिए आनलाइन भोटिंग की व्यवस्था करने तथा संविधान सभा में महिलाओं की ३३ प्रतिशत सहभागिता सुनिश्चित कराने जैसी संविधान सभा निर्वाचन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण मांगें २७ सूत्रीय ज्ञापन पत्र का हिस्सा थीं ।
मधेश में निर्वाचन क्षेत्र की वृद्धि की मांग को लेकर अन्य मधेश केन्द्रित दल भी आंदोलित थे । इसी बीच मधेश में ११६ और पूरे देश में २४० निर्वाचन क्षेत्र को यथावत रखते हुए और पहले संविधान सभा के निर्वाचन के लिए बढाए गये ३५ निर्वाचन क्षेत्रों में कहने के लिए सामान्य फेर बदल के साथ (लेकिन अनुमानतः उच्च स्तरीय समिति के महत्वपूर्ण नेताओं की जीत को सुनिश्चित कराने के हिसाब किताब से ) निर्वाचन क्षेत्र निर्धारण आयोग ने ३५ निर्वाचन क्षेत्र में फेर बदल किया होगा । यह विडम्बना ही है कि निर्वाचन क्षेत्र में हुए परिवत्र्तन को ना तो अभी तक सार्वजनिक किया गया है और ना ही प्रभावित होने वाल् िजनता से राय मशविरा किया गया है । यह लाृकतंत्र के खिलाफ है और ऐसा मुठी भर आभिजात्य लोगों की सुविधा के लिए ही किया गया है । व्यवहार में हमारे लोकतंत्र का अभ्यास ऐसा ही है ।
अनशन पर बैठने का कठोर निर्णय लेने का कारण निर्वाचन क्षेत्र निर्धारण आयोग का प्रतिवेदन रहा है जिसमें मधेश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्र को नही बढाया गया है । वहाँ संविधान की धारा १५४ के अनुसार अभी भी सुधार के लिए जगह बाँकी थी। सरकारको उस प्रतिवेदन को पुनरावलोकन के लिए आयोग को वापस करने का अधिकार संविधान ने दिया है । देश में पहाड केन्द्रित दल समानुपातिक प्रतिनिधित्व को बढाने की मांग को लेकर आंदोलित थे । मधेश केन्द्रित दल भी मधेश मे निर्वाचन क्षेत्र बढाने की मांगं को लेकर सडक पर आ चुके थे । मधेशी जनाधिकार फोरम नेपाल एवं राष्ट्रिय मधेश समाजवादी पार्टी ११ बूंदे और २५ बूंदे अध्यादेश में सुधार अथवा संशोधन करवाने के लिए भी आंदोलनरत थे । वे कैसा संशोधन चाहते थे, वह अभी स्पष्ट नहीं था । इन हालतों में नेपाल सद्भावना पार्टी द्वारा प्रारम्भ एवं स्थापित मुद्दे को सुरक्षित रखनाऔर लागू करवाना हमारी स्वाभाविक जिम्मेवारी बनती थी ।
मधेश में जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्र की वृद्धि की मांग नेपाल सद्भावना पार्टी ने ही अपने स्थापना काल से उठाते रही है और पार्टी २०६२÷ ६३ के जन आंदोलन में भी मधेश की इस मांग को एक प्रमुख एजेंडा के रुप में स्थापित किया था । परिणामस्वरुप २०६२÷६३ के अंतरिम संविधान में मधेश में जनसंख्या के अनुपात में लगभग ३० निर्वाचन क्षेत्रों की वृद्धि हुई । अंतरिम संविधान में प्रत्येक दस वर्षों में होने वाले जनगणना के आधार पर भी मधेश में निर्वाचन क्षेत्र अभिवृद्धि करने की बात उल्लेखित है । २०६८ साल के जनगणना ने यह दिखाया की मधेश में देश की कुल जनसंख्या का लगभग ५१ प्रतिशत लोगों का बसोबास है एवं इस अनुसार पूर्वी मधेश में सुन्सरी तथा सर्लाही एवं पश्चिम में कैलाली, रुपन्देही एवं बाँके में एक एक निर्वाचन क्षेत्र का बढना तय था । इस सम्बन्ध में सर्वोच्च अदालत ने भी संविधानतः जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्र पुनःनिर्धारण करने का आदेश आदेश कर दिया था । लेकिन निर्वाचन क्षेत्र निर्धारण आयोग ने संविधान एवं सर्वोच्च अदालत के आदेश का उल्लंघन करते हुए मधेश में निर्वाचन क्षेत्र नहीं बढाया एवं मात्र कुछ क्षेत्रों में सामान्य फेर बदल करते हुए मधेश में पूर्ववत ११६ सीटों को यथावत रखते हुए जब सरकार को अपना प्रतिवेदन सौपा तब यह स्पष्ट होग या कि २२ साल के संघर्ष के बाद मधेश को जो हक प्राप्त हुआ था उस पर फिर से काले बादलों का ग्रहण लगने शुरु हो गया है ।
लेकिन संविधान अनुसार प्रतिवेदन में सुधार की जगह अभी बाँकी थी । ं संविधान की धारा १५४ ने सरकार को प्रतिवेदन का पुनरावलोकन करने के लिए आयोग के पास पुनः भेजने का अधिकार सरकार को दिया है । हमलोगों ने उसी संवैधानिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर जिलों में अनिश्चित कालीन धरना और केन्द्र में अनिश्चित कालीन अनशन करने का निर्णय किया । श्रावण २७ गते से अनिश्चितकालीन धरना का कार्यक्रम शुरु हुआ। २८ गते राजेन्द्र महतो के नेतृत्व की सद्भावना पार्टी ने श्रावण २८ गते शांति वाटिका में आकर निर्वाचन क्षेत्र निर्धारण आयोग के प्रतिवेदन को खारिज करने की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन किया था ।
इसी बीच अन्य मधेशवादी दलों के विद्दार्थी संगठनों ने भी काठमांडू की सडकों पर आयोग के उक्त प्रतिवेदन को जलाया । मधेशी जनाधिकार फोरम , नेपाल के अध्यक्ष तो यहाँ तक सार्वजनिक घोषणा कर चुके थे कि यदि मधेश में २४०के १२१क्षेत्र नहीं पडेंगे तो उनकी पार्टी चुनाव नहीं लडेगी । साथ ही फोरम नेपाल तथा राष्ट्रिय मधेश समाजवादी पार्टी ११ बूंदे और २५ बूंदे सहमति एवं तद्नुसार जारी हुए अध्यादेश में भी सुधार एवं संशोधन की मांग कर रहे थे
श्रावण २९ गते से मै शांतिवाटिका , रत्नपार्क में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी । कुछ ही दिनों के बाद उपेन्नौ दिन तक सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई । अनशन के पाँचवे दिन मैंने तमलोपा के अध्यक्ष महन्त ठाकुर को अनशन और आंदोलन के बारे में पत्र लिखा । उसके चार दिनों के बाद एनेकपा माओवादी, नेपाली कांग्रेस, ने क पा एमाले तथा मधेशी जनाधिकर फोरम लोकतांत्रिक के अध्यक्ष को भी आंदोलन के बारे में पत्र लिखा था।
हमारे अनशन पर बैठने के बाद उपेन्द्र यादव और शरत सिंह भंडारी की सम्मिलित पार्टी ने ६ बूंदे सहमति मध्य रात्रि में हुई और उस समारोह में राजेन्द्र महतो भी उपस्थित रहे । उस सहमति में मधेश में निर्वाचन क्षेत्र नहीं बढाने की भी मुहर लगा दी गई थी । यह मधेश के साथ फिर से एक बडी बेइमानी थी । हमलागों ने ६ बूंदे सहमति को जला कर विरोध करने का निर्णय किया । उक्त ६ बूंदे सहमति में सबसे मधेश के लिए और भी बुरी बात यह है कि संविधान सभा के लिए समानुपातिक तर्फ की सीट संख्या को २४० से बढा कर ३३५ कर दिया गया । यह निश्चित रुप से बडी पार्टियों को फायदा पहुँचाने वाली सहमति थी और इससे संविधान सभा में तुलनात्मक रुप में पार्टियाँ मधेशवादी पार्टियों का और भी कमजोर होना निश्चित है ।
६ बूंदे सहमति के आधार पर उपेन्द्र जी के उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति मे सम्मिलित हाने की खबर स्पष्ट हो गयी । साथ में यह भी खबर आयी कि उनके पक्ष से भी रेग्मी सरकार में किसी को शामिल कराया जायेगा।..........
27.5.2070
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