Skip to main content

गणतंत्र में लोकतंत्र


गणतंत्र में लोकतंत्र
अंततोगत्वा संविधान सभा निर्वाचन के लिए निर्वाचन आयोग में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि और समयावधि को बढाने की बात तय हो चुकी है । शायद कल निर्वाचन आयोग नयी तिथि की घोषणा कर दे । सरकार के द्वारा तय की गयी मतदान की तिथि के दो महिना पहले निर्वाचन को लेकर उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति, चुनावी सरकार और निर्वाचन आयोग ने जिस तरह से पूरे देश को बंधक बना कर रखा है उससे स्पष्ट होता है कि निर्वाचन देश और जनता के लिए नहीं बल्कि  मूलतः इनकी आवश्यकताओं और इनकी वैधानकता के संकट को दूर करने के लिए होने जा रहा है । निश्चित रुप से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि में परिवत्र्तन असंतुष्ट ३३ दलों को सहमत कराने के लिए नहीं हो रहा है । यह परिवत्र्तन इस लिए हो रहा है कि समिति के प्रमुख ४ दल अभी स्वयं निर्वाचन के लिए तैयार नहीं हैं । शायद निर्वाचन आयोग भी अभी आवश्यक तैयारी नहीं कर पाया है । लेकिन इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि हम अभी भी अधिनायकवादी सत्ता के अद्र्ध नागरिक  हैं।
2070.6.2
KTM

Comments

Popular posts from this blog

सुगौली संधि और तराई के मूलबासिंदा

 सुगौली संधि और तराई के मूलबासिंदा सुगौली संधि फिर से चर्चा में है । वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल के नये नक्शे के मुद्दे को फिर से उठाते हुए १८१६ की सुगौली संधि का एक बार फिर से जिक्र किया है ।  लेकिन इस बारे बोल  सिर्फ प्रधानमंत्री रहे है। इस संधि से सरोकार रखने वाले और भी हैं लेकिन सब मौन हैं । इतिहास की कोई भी बडी घटना बहुताेंं के सरोकार का विषय होता है लेकिन घटना के बाद इतिहास का लेखन जिस प्रकार से होता है, वह बहुत सारी बातों कोे ओझल में धकेल देता है और और बहुत सारे सरोकारं  धीरे धीरे विस्मृति के आवरण में आच्छादित हो जाते है । नेपाल के इतिहास में सुगौली संधि की घटना भी एक ऐसी ही घटना है ।  वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली सुगौली संधि का जिक्र तो कर रहे हैं लेकिन सरकार से यदि कोई संधि की प्रति मांगे तो जबाब मिलता है कि संधि का दस्तावेज  लापता है । संसद को भी सरकार की तरफ से यही जबाब दिया जाता है । यह एक अजीबोगरीब अवस्था है।  जिस संधि के आधार पर सरकार ने नेपाल का नया नक्शा संसद से पारित करा लिया है , उस सधि  के लापता होने की बात कहाँ तक सच है, ...

क्या स्थानीय तह स्वायत्त हैं

                                                                                                                                     भाग २  स्थानीय तह की स्वायत्तता के बारे में लेख के दूसरे भाग की शुरुवात उन्हीं प्रश्नों के साथ कर रही हूँ जिन प्रश्नों के साथ पहले भाग का अन्त किया था । वे प्रश्न हैं , क्या स्थानीय तह स्थानीय जनता प्रति उत्तरदायी है और क्या स्थानीय तह जनता के नियन्त्रण में है और  क्या स्थानीय तह स्वायत्त हैं और अगर ऐसा है तो उसका मापन कैसे किया जा सकता है ? स्वायत्तता का अर्थ होता है कानून की परिधि के अन्दर अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता।  कानून के शासन की शुरुवात सविधान  से होती है । संघीय संविधान वह पहली  संरचना है ज...

नेपाल में मधेशी दलों के एकीकरण का विषय

(अद्र्ध प्रजातंत्र के लिए संवैधानिक विकास को अवरुद्ध करने का दूसरा आसान तरीका दलो में अस्थिरता और टुट फुट बनाए रखना है । शासक वर्ग यह  बखूबी समझता है कि दलीय राजनीति में दलों को नियंत्रित रखने या आवश्यकता पडने पर  उनके माध्यम से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनाए रखने के लिए राजनीतिक दल सम्बन्धी कानून और निर्वाचन आयोग जैसी संस्थाओं पर नियन्त्रण कितना आवश्यक हैं । आज देश में  राजनीतिक अस्थिरता का दोषी ं संसदीय पद्धति को  ठहराया जा रहा है । अस्थिरता खत्म करने के लिए राष्ट्रपतिय पद्धति को बहाल करने की बातें हो रहीं हैं लेकिन अस्थिरता के प्रमुख कारक तत्व राजनीतक दल एवं निर्वाचन आयोग सम्बन्धी कानून के तरफ कि का ध्यान नही जा रहा है। यह निश्चित है कि संसदीय पद्धति के स्थान पर राष्ट्रपतिय अथवा मिश्रित पद्धति की बहाली होने पर गणतांत्रिक नेपाल में एक तरफ फिर से अद्र्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना होगी तो दूसरी तरफ दल एवं निर्वाचन सम्बन्धी हाल ही के कानूनों की निरन्तरता रहने पर राजनीतिक दलों में टूट फूट का क्रम भी जारी रहेगा । तब भी  मधेशवादी लगायत अन्य रा...