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मधेश पुनः हासिये पर

मधेश पुनः हासिये पर

इस देश में मधेशी समुदाय के सदस्य राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति मधेश आंदोलन की ताकत के बल पर बने । मधेश को केन्द्र की राजनीति मे बराबरी के हक के साथ स्थापित करने के लिए ही मधेश आंदोलन हुहा था । लेकिन मधेश आंदोलन ने दासत्व के जिन शिकंजो को तोडा था, उनकी जगह पर नये शिकंजों को बनाने का खेल संविधान सभा निर्वाचन के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो गया था । उसका परिणाम यह था कि संविधान सभा बिना संविधान बनाए समाप्त कर दिया गया ।

योजना तहत शासकों ने दूसरी सफलता तब हासिल की जब उस खिलराज रेग्मी के हाथ में सरकार की सत्ता सौंपी गयी जिसने संविधान सभा को अपने अजीबोगरीब आदेश से भंग करा दिया था । यह सरकार जनता प्रति उत्तरदायी नहीं है । संसद की जगह उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति बना दी गयी है और महामहिम जी सरकार और समिति से घिर चुके हैं और उनके सिफारिश पर बारबार उसी संविधान को घायल करते रहे हैं जिसके आधार पर  स्वयं राष्ट्रपति बने हैं । कई बार उन्होंने गलतियाँ की हैं और शांति प्रक्रिया के अपूर्ण होने की अवस्था में बिना राजनीतिक सहमति के सेना परिचालन के लिए संविधान विपरीत अगर अपनी मुहर लगाएंगे तो यह उनकी अंतिम गलती होगी, यह निश्चित है।

सिर्फ एक दल के विभाजन से उत्पन्न समस्या को संवाद से समाधान नहीं कर सेना को निर्वाचन के लिए बैरेक से बाहर लाने की बात सहज नहीं लगती है । सत्य वह है भी नहीं । सशस्त्र प्रहरी बल को मधेश में तैनात कर देने के बाद मधेश का बैरेकीकरण करने की योजना तहत यह सब हो रहा है और इसकी योजना बहुत पहले बन चुकी थी । अब उस योजना का उत्कर्ष होगा यदि महामहिम जी अपनी सहमति दे देंगे ।

यह सब उस पुरानी राज्य सत्ताको पुनर्जन्म देने के लिए किया जा रहा है जिसमें मधेश हासिये पर था ।

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