नाकाबंदी, नेपाल और भारत
२०१५ के नाकाबंदी को आधार बनाकर नेपाल की कम्युनिष्ट पार्टी की सरकार इतिहास औरु भूगोल की धार और वृत्तिके विरुद्ध जिस तेजी से नेपाल को चीन की गोद में सौपने की तैयारी कर रही है , यह आने वाले समय के बारे में खतरनाक संकेत हैं । इसकी बहुत बडी कीमत नेपाल की जनता को भविष्य में चुकानी पड सकती है और ऐसा समय अन्तराष्ट्रिय परिस्थितियों और कारणों पर निर्भर करेगा ।
सरकार ने चिनिया राष्ट्रपति शी के भ्रमण के दौरान चीन के साथ जैसा समझौता किया है , उससे भान होता है की नेपाल की सरकार सरकार संचालन की पद्धति और प्रक्रिया को चीन के सरकार संचालन की पद्धति और प्रक्रिया के साथ जोडना चाहती है । आपराधिक क्रिया कलापों के बारे में चीन के साथ जो समझौता किया गया है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि यह सुपुर्दगी संधि की पूर्व तैयारी है । हांगकांग में ऐसे ही कानून के विरुद्ध में वहाँ की लोकतंत्र प्रेमी जनता कठिन संघर्ष में है लेकिन हार मानने के लिए तैयार नही है । नेपाल की जनता ंअभी इस संधि के दूरगामी असर को समझ नही पा रही है । जनता सिर्फ इतना समझ रही है कि यह तिब्बती आन्दोलन से सम्बन्धित है । लेकिन है यह निश्चित है कि आने वाले कल में इसकी चपेट में सम्पूर्ण नेपाली जनता पडेगी ।
चीन के साथ नेपाल के बढते सम्बन्धों की सबसे ज्यादा मार नेपाल के दक्षिण मे रहे भारत से सटे तराई की जनता पर पड रही है । इसके संकेत तभी मिले थे जब पहली संविधान सभा का अकस्मात विघटन किया गया था और दूसरे संविधान सभा निर्वाचन में कांग्रेस और कम्यूनिष्ट ने संयुक्त रणनीति तहत दो तिहाई बहमत हासिल कर बिना किसी बहस अथवा विचार विमर्श के संविधान सभा से फास्ट ट्रैक की विधि अपना कर मधेश की आन्दोलित जनता पर गोली बरसाते हुए संविधान पारित कराया था । ये पूर्व संकेत थे ।
अब नेपाल सरकार चीन के साथ रणनीतिक सैन्य सन्धि भी करने की तैयारी कर रही है और इससे स्पष्ट होता है कि नेपाल अन्तराष्ट्रिय सम्बन्ध के क्षेत्र में अपना संतुलन खोते जा रहा है । लेकिन आज की परिस्थिति की पूरी जिम्म्ेवारी सिर्फ कम्यूनिष्ट पार्टी की नही है । कांग्रेस भी इसके लिए बराबरी का जिम्मेदार है । यथार्थतः आज के समय के लिए आधार तो कांग्रेस के नेतृत्व में रही कांग्रेस कम्यूनिष्ट की संयुक्त सरकार के द्वारा ही तैयार किया गया था । संविधान निर्माण के दौरान मधेशी तथा थारु को दबाने के लिए कांग्रेस और कम्यूनिष्ट के बीच की मौन सहमति के कारण ही दोनो दलों के नजदीक की मूलधार की मिडिया ने २०१५ के नाकाबंदी के बारे में देश की आन्तरिक कमजोरियो को छिपाते हुए भारत विरुद्ध एकतर्फी राग अलापा था । तराई की निहत्थी जनता पर जिस ढंग से संयुक्त सरकार द्वारा गोली बरसायी गयी थी और उनकी जानें ली गयी थी , उन पीडादयी घटनाओं का उल्लेख नेपाल की मूलधार की मिडिया ने कभी भी नाकाबंदी से जोड कर नही किया ।
यथार्थतः मधेशी जनता पर गोबारी ही नाकाबंदी का प्रत्यक्ष कारण था । कुछेक व्यक्ति ही यह कहने और लिखने का साहस कर पाए कि जब अंधाधुंध गोली बरसायी जा रही थी तब मधेश की जनता आत्म रक्षा के लिए और अन्तराष्ट्रिय जगत से निर्मम गोलीबारी को बंद कराने हेतु सहयोग मागने के लिए भारत और नेपाल के बीच की खुली सीमा पर अवस्थित दस गज्जा मे धरना और प्रदर्शन किया था । इतिहास निर्मम होता है और यदि यथार्थ पर आधारित इतिहास का सम्मान नहीं किया जाता है और उससे सीख नही ली जाती है तब इतिहास पलट कर वार भी करता है ।
२०१५ के नाकाबंदी को आधार बनाकर नेपाल की कम्युनिष्ट पार्टी की सरकार इतिहास औरु भूगोल की धार और वृत्तिके विरुद्ध जिस तेजी से नेपाल को चीन की गोद में सौपने की तैयारी कर रही है , यह आने वाले समय के बारे में खतरनाक संकेत हैं । इसकी बहुत बडी कीमत नेपाल की जनता को भविष्य में चुकानी पड सकती है और ऐसा समय अन्तराष्ट्रिय परिस्थितियों और कारणों पर निर्भर करेगा ।
सरकार ने चिनिया राष्ट्रपति शी के भ्रमण के दौरान चीन के साथ जैसा समझौता किया है , उससे भान होता है की नेपाल की सरकार सरकार संचालन की पद्धति और प्रक्रिया को चीन के सरकार संचालन की पद्धति और प्रक्रिया के साथ जोडना चाहती है । आपराधिक क्रिया कलापों के बारे में चीन के साथ जो समझौता किया गया है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि यह सुपुर्दगी संधि की पूर्व तैयारी है । हांगकांग में ऐसे ही कानून के विरुद्ध में वहाँ की लोकतंत्र प्रेमी जनता कठिन संघर्ष में है लेकिन हार मानने के लिए तैयार नही है । नेपाल की जनता ंअभी इस संधि के दूरगामी असर को समझ नही पा रही है । जनता सिर्फ इतना समझ रही है कि यह तिब्बती आन्दोलन से सम्बन्धित है । लेकिन है यह निश्चित है कि आने वाले कल में इसकी चपेट में सम्पूर्ण नेपाली जनता पडेगी ।
चीन के साथ नेपाल के बढते सम्बन्धों की सबसे ज्यादा मार नेपाल के दक्षिण मे रहे भारत से सटे तराई की जनता पर पड रही है । इसके संकेत तभी मिले थे जब पहली संविधान सभा का अकस्मात विघटन किया गया था और दूसरे संविधान सभा निर्वाचन में कांग्रेस और कम्यूनिष्ट ने संयुक्त रणनीति तहत दो तिहाई बहमत हासिल कर बिना किसी बहस अथवा विचार विमर्श के संविधान सभा से फास्ट ट्रैक की विधि अपना कर मधेश की आन्दोलित जनता पर गोली बरसाते हुए संविधान पारित कराया था । ये पूर्व संकेत थे ।
अब नेपाल सरकार चीन के साथ रणनीतिक सैन्य सन्धि भी करने की तैयारी कर रही है और इससे स्पष्ट होता है कि नेपाल अन्तराष्ट्रिय सम्बन्ध के क्षेत्र में अपना संतुलन खोते जा रहा है । लेकिन आज की परिस्थिति की पूरी जिम्म्ेवारी सिर्फ कम्यूनिष्ट पार्टी की नही है । कांग्रेस भी इसके लिए बराबरी का जिम्मेदार है । यथार्थतः आज के समय के लिए आधार तो कांग्रेस के नेतृत्व में रही कांग्रेस कम्यूनिष्ट की संयुक्त सरकार के द्वारा ही तैयार किया गया था । संविधान निर्माण के दौरान मधेशी तथा थारु को दबाने के लिए कांग्रेस और कम्यूनिष्ट के बीच की मौन सहमति के कारण ही दोनो दलों के नजदीक की मूलधार की मिडिया ने २०१५ के नाकाबंदी के बारे में देश की आन्तरिक कमजोरियो को छिपाते हुए भारत विरुद्ध एकतर्फी राग अलापा था । तराई की निहत्थी जनता पर जिस ढंग से संयुक्त सरकार द्वारा गोली बरसायी गयी थी और उनकी जानें ली गयी थी , उन पीडादयी घटनाओं का उल्लेख नेपाल की मूलधार की मिडिया ने कभी भी नाकाबंदी से जोड कर नही किया ।
यथार्थतः मधेशी जनता पर गोबारी ही नाकाबंदी का प्रत्यक्ष कारण था । कुछेक व्यक्ति ही यह कहने और लिखने का साहस कर पाए कि जब अंधाधुंध गोली बरसायी जा रही थी तब मधेश की जनता आत्म रक्षा के लिए और अन्तराष्ट्रिय जगत से निर्मम गोलीबारी को बंद कराने हेतु सहयोग मागने के लिए भारत और नेपाल के बीच की खुली सीमा पर अवस्थित दस गज्जा मे धरना और प्रदर्शन किया था । इतिहास निर्मम होता है और यदि यथार्थ पर आधारित इतिहास का सम्मान नहीं किया जाता है और उससे सीख नही ली जाती है तब इतिहास पलट कर वार भी करता है ।
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