Skip to main content

 


संसद अवरोध का राजनीतक औचित्य


“पूर्व सभामुख सुभास नेम्वांग ने कहा था कि संसद अवरोध एक  राजनीतक कदम ह्रै 

और इसके औचित्य को ं प्रमाणित करने की जिम्मेवारी संसद अवरुद्ध करने वाले दल की होती है ।”


भ्रष्टाचार नेपाल के लिए एक विकराल समस्या बन चुकी है । भ्रष्टाचार का असर अब  आम जनता पर भी दिखने लगा है । इसका उदाहरण सहकारी ठगी प्रकरण है । भ्रष्टाचार का पहला कारण मनुष्य के अन्दर होता है और  यदि वाह््य सामाजिक और राजनैतिक परिवेश भ्रष्टाचार को बढावा देने वाले होते है तब भ्रष्टाचार संस्थागत  होने लगता है । नेपाल में भ्रष्टाचार व्यापक और संस्थागत दोनों है । इसीलिए भ्रष्टाचार के बारे में बातें  तो बहुत होती है लेकिन  समाधान की बातें मृग मरीचिका जैसा ही है ।  भ्रष्टाचार नियन्त्रण के लिए राज्य के अधीन पर्याप्त संस्थाएँ हैं लेकिन वे कारगर नहीं हैं। यह उच्च स्तरीय और दलगत भ्रष्टाचार का  परिणाम है । पिछले कई दशकों में  भ्रष्टाचार ने राजनीति में गहरी पैठा बना ली  है । इसलिए व्यवस्थाएँ  तो बदली हैं लेकिन राजनीतिक भ्रष्टाचार का क्रम यथावत है । 

नेपाल में  ऐसी बहुत कम  संस्थाएँ  होंगी जो भ्रष्टाचार के लपेट में नहीं पडी होंगी । अभी इसकी  लपेट में संसद और गृहमंत्री पडे दिख रहे हैं । अभी गृह मंत्री  और विगत में उनके द्वारा  संचालित मिडिया सहकारी ठगी में संलग्न होने की खबर सुर्खियों में है ।  पिछले कुछ समय से बहुत सारे सहकारी क्षेत्र में ठगी होने की खबर निरन्तर आ रही है । बताया जा रहा है कि ठगी के  कारण सहकारी संस्थाओं में संचित आम जनता  का धन लापता हो रहा है और उन संस्थाओं के पदाधिकारी भी लापता हो रहे हैंं । कई  सहकारी संस्थाएँ धराशायी भी हो चुकी ं हैं । यह बैंको के धराशायी होने जैसी ही घटना है । इसलिए इनको सामान्य ढंग से नहीं लिया जा सकता है ।

सहकारी ठगी प्रकरण मे गृहमंत्री की संभावित संलग्नता के विषय को लेकर अभी संसद अवरुद्ध है । प्रमुख प्रतिपक्षी दल नेपाली कांग्रेस ने पिछले कई दिनों से संसद को अवरुद्ध कर रखा है ।  कांग्रेस पुरे प्रकरण के छानबीन के लिए  एक तदर्थ संसदीय  समिति की मांग कर रही है । गृहमंत्री की संलग्नता को दर्शाने वाला कोई ठोस प्रमाण कांग्रेस ने अभी तक संसद ं या सभामुख के समक्ष पेश नहीं किया है । साथ ही संसद अवरोध के बारे में कांग्रेस के नेताओं का  जैसा बयान  आ रहा है उससे लग रहा है कि ंउनका दृष्टिकोण स्पष्ट नही. हैं । 



संसद अवरोध का राजनीतिक उद्देश्य अस्पष्ट ं  

पूर्व सभामुख सुभास नेम्वांग ने संसद अवरोध को असंवैधानिक और अवैधानिक बताया था । उन्होने कहा था कि संसद अवरोध एक  राजनीतक कदम ह्रै और इसके औचित्य को ं प्रमाणित करने की जिम्मेवारी संसद अवरुद्ध करने वाले दल की होती है । ं वैसे संसदीय प्रणाली के देशों में  दल  किसी आकस्मिक गम्भीर समस्या के प्रति जनता का ध्यान आकर्षित कराने के लिए संसद अवरुद्ध करते हैं ।   कांग्रेस अभी संसद अवरुद्ध  कर जनता में  कौन सा संदेश संप्रेषित करना चाहती है, स्पष्ट नहीं है ।  संसद का अवरोध  जारी रखते हुए कांग्रेस ने संसद  सचिवालय में एक सार्वजनिक महत्व का प्रस्ताव दर्ज कराया  है जिसमें  ं २०४७ साल के बाद पदासीन सभी उच्च पदाधिकारियों और राजनीतक नेताओं के सम्पत्ति की छान बीन की मांगं की गयी है । कांग्रेस के प्रस्ताव का संसद अवरोध की मांग के साथ कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं  दिख रहा है ।  

कहा जा सकता है कि सार्वजनिक महत्व का  कांग्रेस का प्रस्ताव मात्र एक पापुलिस्ट प्रस्ताव है और यससे संसद की गरिमा घटेगी । यह कोई नया प्रस्ताव भी नहीं है । २०५८ साल के अन्तिम चरण में भी पुर्व न्यायाधीश भैरव प्रसाद लम्साल के नेतृत्व में २०४७ साल के बाद पदासीन हुए पदाधिकारियों की सम्पत्ति की छनबीन के लिए एक न्यायिक समिति का गठन   हुआ था । कांग्रेस  उसके प्रतिवेदन को भी सार्वजनिक करने की मांग की है । लेकिन यह मांग भी कानून विपरीत है क्यों कि प्रतिवेदन के सार्वजनिक होने पर सूचीकृत लोगों के बारे में जो जानकारियाँ बाहर आएंगी , उससे संविधान प्रदत्त उनकी  गोपनीयता का अधिकार भंग होगा । सरकार  मुद्दे मे आरोपित व्यक्ति की पहचान को सार्वजनिक कर सकती है । 

पिछले ३२ वर्षो के दौरान पदासीन पदाधिकारियों में से कई अब हमारे बीच भी नहीं हैं ।  इस बीच व्यवस्था भी बदली है और कानूनं  भी बदले है । इन कानुनों के विपरीत जाकर भी सरकार सूची कृत व्यक्तियों के विरुद्ध कारवाई नहीं कर सकती है । इसके लिए संविधान अनुकूल कानून बनाने होंगे । इसीलिए कांग्रेस अपने प्रस्ताव से क्या हासिल करना चाहती है,स्पष्ट नहीं है । लेकिन संसद अवरोध की मांग और सार्वजनिक प्रस्ताव के बीच के अन्तर से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस संसद अवरोध  के राजनैतिक औचित्य को प्रमाणित करने में असफल रही है ।

स्थानीय स्तर पर ठगी और भ्रष्टाचार का विस्तार  

पिछले समय में जमीन की आम जनता सबसे ज्यादा  वैदेशिक रोजगार और सहकारी तथा अन्य लघुवित्त के क्षेत्रों मे पीडित है । इस सन्दर्भ में शंका की जा सकती है कि एक सामान्य प्रकृति के कियान्वयन ना हो सकने वाले पापुलिस्ट प्रस्ताव को दर्ज कराकर कांग्रेस सहकारी ठगी प्रकरण के विषय से पीछे हटना चाहती है ?  अगर एैसा है तो यह बिना कारण नही हो सकता  है । 

सांसदों की प्रमुख जिम्मेवारी कानुन बनाने की है लेकिन अपने अनुभव के आधार पर कह सकती हुँ कि  कानून बनाने में संसद के बाहर के संगठित समूहों का स्वार्थ भी काम  काम करता है और वे आम जतता से ज्यादा संगठित होते हैं और राजनीतिक दलों में भी उनकी पैंठ गहरी होती है । संगठित स्वार्थो का यह नेक्सस  प्रायः आम जनता के हितों को ध्यान में रखने मे चुक जाता है । कानून बनाने से लेकर कानून के क्रियान्वयन तक इस नेक्सस का प्रभाव रहता है देश में ऐसा नेक्सस सुशासन के लिए एक गम्भीर  चुनौती  है । चाहे वह वैदेशिक रोजगार की खोजी में रहे युवा ंहाेंं े या फिर सहकारी में अपना बचत जमा करने वाली आम जनता  हो, सब इस नेक्सस से पीडित हैं । यह दो क्षेत्र  भ्रष्टाचार या ठगी के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित क्षेत्र इसलिए है क्योंकि यहाँ जनता के धन की चोरी होती है और सार्वजनिक लेखा समिति जैसी संस्था के पहुँच से बाहर है।  यह आम जनता नाम का जन्तु जमीन पर यानि की स्थानीय स्तर पर दलीय संगठन और दलीय सरकार के चंगुल में है । साधारण गरीब जनता उनके सामने कमजोर है । नये संविधान तहत स्थानीय सरकार के बनने के बाद  जमीन पर लगभग हरेक क्षेत्र में दलाली और ठगी करने वाले नेक्ससं का विकास  अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है ।

ठगी और भ्रष्टाचार का विस्तार   

विकास क्रम मे भ्रष्टाचार और ठगी जैसी वृतियो के विस्तार का प्रत्यक्ष सम्बन्ध देश की सामाविक संरचना और संस्कृति से है । देश की सामाजिक संरचना आज भी एक बडे हद तक उपर से नीचे विभिन्न श्रेणी में विभाजित है और जनता का शोषण श्रेणीगत आधार पर होता है । इसीलिए उपरी तह पर नीचे के शोषण की घटनाओं को प्रायः  सामान्य रुप से ही स्वीकार किया जाता है । लेकिन ऐसी आदत और सोच के पीछे गम्भीर कारण होते हंैं । आम जनता की ठगी को सामान्य घटना के रुप में लेने का पहला कारण  यह होता है कि बडे बडे और पहुँच वाले लोग भी ठगी प्रकरण में ं सम्मिलित होते हैं ।  समाज में  ठगी बढने का  दूसरा कारण कानून में पर्याप्त कमी कमजोरियाँ का होना है जिसका फायदा चतुर चालाक लोग आसानी से  उठाते हैं ।   ठगी का तीसरा कारण  सरकार द्वारा  किये जाने वाले शासन और  नियमन के काम में कमी कमजोरी है । ठगी के व्यापक होने का चौथा  कारण राजनीतिक प्रभाव में काम करने वाली पुलिस है । इसके अलावा ं ठगी  नियन्त्रण के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव  और  कमजोर न्यायिक प्रणाली भी महत्वपूर्ण कारण हैं ।  

इस अवस्था में  ठगी के लिए सूचकिृत सभी सहकारी संस्थाओं की पहचान कर पीडितो को राहत देने ं और  सहकारी सम्बन्धी सभी कानुन और नियमावली के पुनरावलोकन के लिए एक संसदीय अध्ययन समिति के गठन का प्रस्ताव यदि कांग्रेस ने संसद में दर्ज कराया होता तो  समस्या के सम्बोधन के लिए  के लिए  कांग्रेस का एक ठोस कदम संसद में दर्ज होता ।  

मात्र एक सहकारी संस्था में हुए ठगीे प्रकरण की जाँच बुझ के लिए प्रमुख प्रतिपक्ष दल यदि संसदीय छानबीन समिति के गठन की मांग कर रहा है और यह संसद का अवमूल्यन है । ऐसे मुद्दों के लिए गठित  संसदीय समिति में सांसद पार्टी लाइन पर चले जाते है और सत्य प्रकाश में नहीं आता है ।  भारत के प्रसिद्ध संविधानविद ए. जी. नुरानी ने  तो यहाँ तक कह डाला है कि  मुर्ख विपक्ष ही आपराधिक मुद्दों की छानबीन के लिए एड हाक संसदीय समिति की मांग करते हैं ।  

 चर्चित  ठगी प्रकरण के बारे में कारवाही के लिए निवेदन प्रहरी वृत में है और गृह मंत्री को जानकारी कराए बिना भी सत्तासीन दल चाहें तो अपने तह से अनुसन्धान को आगे बढाने का निर्देशन दे सकते हैं लेकिन जो जिम्मेवारी है नेपाल प्रहरी की है , उसको यदि संसद जबर्दस्ती अपने आथ में लेने का प्रयास करती है तो यह शक्ति के पृथक्कीकरण के सिद्धान्त के विपरीत है । 

इस परिवेश में सांसदों  और राजनीतिक दलों को सहकारी सम्बन्धी कानूनों में रही कमी कमजोरियाँ को दूर करने के लिए सबसे पहले अग्रसर होना चाहिए ।  राजनीतक दल यह नहीं भूलें  कि २०६३ के परिवत्र्तन के बाद ही सहकारी के नये कानुन बने हैं । साथ ही सरकार को  सहकारी क्षेत्र के व्यवस्थापन और नियमन के दिशा में तत्तपर होना चाहिए । इस दृष्टिकोण से संसद में दिखा वत्र्तमान संकट  रुपान्तरण के लिए महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु बन सकता है ।

कमीशन आफ इन्क्वायरी एक्ट २०६५ का उपयोग

सहकारी क्षेत्र मे ठगी और भ्रष्टाचार का मामला संसद की सार्वजनिक लेखा समिति के लिए छानबीन का विषय नहीं बन सकता है क्योकि यहाँ सरकारी कोष के रकम के अपचलन का मामला नहीं है । संसद अन्तर्गत यह विषय संसदीय राज्य व्यवस्था और सुशासन समिति का विषय है । उक्त समिति ने ं गृहमंत्री और प्रहरी प्रमुख को बयान के लिए बुलाया भी है ।  वहाँ प्रहरी प्रमुख ने यदि गलत बयान दिया है जिसका सबुत विपक्ष के पास है , तभी यह आगे भी संसद का मामला बन सकता है । अन्यथा  सहकारी ठगी प्रकरण में छानबीन  का अधिकार  नेपाल प्रहरी को ही  है । लेकिन नेपाल सरकार  चाहे तो  विवादित  सहकारी प्रकरण में दोषी लोगों के पहचान के लिए बिना किसी का नाम उल्लेख किए हुए  कमीशन आाफ इन्क्वायरी ए्क्ट २०६५ तहत एक न्यायिक एन्क्वायरी कमिशन गठन कर सकती है । 

भ्रष्टाचार नियन्त्रण के लिए संसद की सार्वजनिक लेखा समिति भी काम करती है लेकिन सरकारी कोष के रकम के अपचलन जैसे विषयो को देखती है । सार्वजनिक लेखा समिति के प्रतिवेदन के अनुसार ही वाइड बाडी जहाज के खरीद में बजार की कीमत से ज्यादा रकम देकर जहाज खरीदा गया था । इस विषय की छानबीन कर  सार्वजनिक लेखा समिति ने तमाम राजनीतिक दबावों के बावजुद भी अपने प्रतिवेदन को अख्थियार दुरुपयोग आयोग में कारवाही की सिफारिश के साथ भेज दिया था। परिणामस्वरुप अख्तियार दुरुपयोग आयोग ने आरोपितोंं  के विरुद्ध हाल ही में अदालत में केस   दर्ज करा दिया है । इससे प्रमाणित होता है कि हमारे परिवेश में भ्रष्टाचार और ठगी नियन्त्रण के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका राजनीतिक इच्छाशक्ति की है । 


सरिता गिरी

बैसाख १, अप्रील १३


Comments

Popular posts from this blog

सुगौली संधि और तराई के मूलबासिंदा

 सुगौली संधि और तराई के मूलबासिंदा सुगौली संधि फिर से चर्चा में है । वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल के नये नक्शे के मुद्दे को फिर से उठाते हुए १८१६ की सुगौली संधि का एक बार फिर से जिक्र किया है ।  लेकिन इस बारे बोल  सिर्फ प्रधानमंत्री रहे है। इस संधि से सरोकार रखने वाले और भी हैं लेकिन सब मौन हैं । इतिहास की कोई भी बडी घटना बहुताेंं के सरोकार का विषय होता है लेकिन घटना के बाद इतिहास का लेखन जिस प्रकार से होता है, वह बहुत सारी बातों कोे ओझल में धकेल देता है और और बहुत सारे सरोकारं  धीरे धीरे विस्मृति के आवरण में आच्छादित हो जाते है । नेपाल के इतिहास में सुगौली संधि की घटना भी एक ऐसी ही घटना है ।  वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली सुगौली संधि का जिक्र तो कर रहे हैं लेकिन सरकार से यदि कोई संधि की प्रति मांगे तो जबाब मिलता है कि संधि का दस्तावेज  लापता है । संसद को भी सरकार की तरफ से यही जबाब दिया जाता है । यह एक अजीबोगरीब अवस्था है।  जिस संधि के आधार पर सरकार ने नेपाल का नया नक्शा संसद से पारित करा लिया है , उस सधि  के लापता होने की बात कहाँ तक सच है, ...

नेपाल में मधेशी दलों के एकीकरण का विषय

(अद्र्ध प्रजातंत्र के लिए संवैधानिक विकास को अवरुद्ध करने का दूसरा आसान तरीका दलो में अस्थिरता और टुट फुट बनाए रखना है । शासक वर्ग यह  बखूबी समझता है कि दलीय राजनीति में दलों को नियंत्रित रखने या आवश्यकता पडने पर  उनके माध्यम से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनाए रखने के लिए राजनीतिक दल सम्बन्धी कानून और निर्वाचन आयोग जैसी संस्थाओं पर नियन्त्रण कितना आवश्यक हैं । आज देश में  राजनीतिक अस्थिरता का दोषी ं संसदीय पद्धति को  ठहराया जा रहा है । अस्थिरता खत्म करने के लिए राष्ट्रपतिय पद्धति को बहाल करने की बातें हो रहीं हैं लेकिन अस्थिरता के प्रमुख कारक तत्व राजनीतक दल एवं निर्वाचन आयोग सम्बन्धी कानून के तरफ कि का ध्यान नही जा रहा है। यह निश्चित है कि संसदीय पद्धति के स्थान पर राष्ट्रपतिय अथवा मिश्रित पद्धति की बहाली होने पर गणतांत्रिक नेपाल में एक तरफ फिर से अद्र्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना होगी तो दूसरी तरफ दल एवं निर्वाचन सम्बन्धी हाल ही के कानूनों की निरन्तरता रहने पर राजनीतिक दलों में टूट फूट का क्रम भी जारी रहेगा । तब भी  मधेशवादी लगायत अन्य रा...

नेपाल , भारत र चीन बीच सीमाना विवादः मेरोे बुझाई मा

नेपाल , भारत र चीन बीच सीमाना विवादः मेरोे बुझाई मा लिपुलेक , कालपानी र लिम्पिया धुरा भारत, चीन र नेपालको सीमाना वा सीमाना नजीक छ अर्थात् त्रिदेशीय सीमा क्षेत्र मा पर्दछ । कालापानी मा १९६२को  भारत चीन युद्ध पछि विगतको ६० वर्ष देखि भारतीय सेना नेपालको पूर्ण जानकारी मा बसी रहेको छ । उक्त क्षेत्र लाई नेपाल र भारत ले विवादित क्षेत्र भनी स्वीकार गरी सकेका छन । उक्त क्षेत्रमा देखिएको विवाद को समाधान दुई देश बीच  वात्र्ता द्वारा समाधान गर्ने सहमति पनि भई सकेको रहे छ । चीन ले पनि कालापानी र सुस्ता विवाद बारे हालसालै  यो कुरा भनी सके को रहेछ । अब लिपुलेक र लिम्पिया धुरा को बारेमा विचार गदनु पछै । लिम्पिियाधुरा र लिपुलेक भारत र चीन को तिब्बत सीमाना मा वा नजीक पर्दछ । नेपाल र चीन बीच १९६१को सीमाना सम्बन्धी संधि भएको छ र उक्त संधि अनुसार उक्त क्षेत्रमा टिंकर खोला जहाँ काली लगायत अन्य खोला खहरा संग मिल्दछ उक्त बिंदु नेपाल र चीन बीचको सीमाना को प्रारम्भ बिंदु हो । उक्त क्षेत्रमा  नेपाल र भारत को शून्य पोस्ट अहिले निश्चित  भए को छैन । लिम्पियाधुरा को विवाद पहिलो पटक आएको...