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विवादास्पद अध्यादेश फित्र्ता हुने कारण

विवादास्पद अध्यादेश फित्र्ता हुने कारण

लोकतांत्रिक राजनीति असीमित सम्भावनाको खेल हो । एक पटक पुनः प्रमाणित भयो । संविधानवाद अनुसार कुनै कानून विद्दमान रहेको अवस्थामा त्यसलाई अध्यादेश द्वारा संशोधन गर्न पाइन्न।  विद्दमान कानूनको संशोधन संसदले मात्र गर्न सक्द्छ । संसदीय व्यवस्थामा कुनै अध्यादेश कानूनी शून्यताको अवस्थामा मुलुकमा कुनै गम्भीर संकट आयी परेमा अत्यन्त आवश्यक भएको  स्थितिमा मात्र कुनै विषयबस्तु बारे सरकारले अध्यादेश जारी गर्न सक्छ । यस दृष्टिकोण बाट अहिले आएको अध्यादेशसंविधान संगको खेलवाड हो , गैरसंवैधानिक  हो । महामहिम राष्ट्रपतिको पनि यसमा संलग्नता देखियो । अहिलेको लाकडाउनको अवस्थामा अदालत पनि संवैधानिक मुद्दा  हेर्न न सक्ने निर्णय गरी त्यस अनुरुप कार्य गरी रहेको अवस्थामा राजनीतिक दल बारे जारी भएको अध्यादेश अनुरुप कुनै दल विभाजित भयी निर्वाचन आयोगमा दत्र्ता भई सकेको अवस्थामा उक्त नया दल को थर्ड पार्टीको रुपमा अधिकार स्थापित भइ सक्थियो र भोलिका दिनमा अदालतले उक्त अध्यादेश खारेज गरे पनि उक्त दलको अधिकार प्रचलित कानून बमोजिम  कायमनै रहन्थियो । त्यसैले सरकारले युद्ध स्तरमा समाजवादी पार्टी विभाजित गराउन खेल खेल्यो । तर सफल हुन सकेन । मधेश केन्द्रित दल लाई विभाजित गरी  प्रदेश २ मा रहेको संयुक्त सरकारलाई गिराउने लक्ष्य राखी सरकारले उठाएको अधिनायकवादी कदमले गर्दा उत्पन्न अवस्थामा समाजवादी पार्टी र राष्ट्रिय जनता पार्टी एक भए ।
दुबै पार्टी एक भए पछि अब नेकपा फूटको कगारमा पुगेको छ । नेकपा फुट्यो भने जनता समाजवादी पार्टी, कांग्रेस र  विभाजित नेकपाको संयुक्त  सरकार बन्ने अवस्था सिर्जित भई सके को थियो । सरकारले अरुलाई फंसाउन फालेको जालमा सरकार स्वयं ढल्ने अवस्था आई सके पछि सरकार अत्तालिएर संविधानको धारा १४४ (२) बमोजिम अध्यादेश फित्र्ता लिने मनस्थितिमा पुगी सकेको बुझ्न सकिन्छ । अध्यादेश फित्र्ता लिए पनि वा फित्र्ता न लिए पनि मुलुक लाई यस सम्पूर्ण  नाटकीय प्रकरण बारे सरकारले जबाब दिनै पर्छै । 

सरिता गिरी
बैसाख ११, २०७७ बिहीवार , 

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