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My reply to party's spashtikeran

श्री महासचिव तथा संयोजक, जाँचबुझ समिति
समाजवादी पार्टी
ललितपुर महानगरपालिका
स्पष्टीकरण सम्बन्धी पत्र के बारे में
उपरोक्त विषय के सम्बन्ध मे पार्टी के महासचिव तथा संयोजक, जाँचबुझ समिति
राम सहाय प्रसाद यादव के द्वारा हस्ताक्षरित स्पष्टीकरण सम्बन्धमा पत्र मैने
मिति २०७७ ।३।११ में प्राप्त किया । उस पत्र के प्रत्तिउत्रर में मैं यह पत्र लिख
रही हूँ ।
उक्त पत्र में मुख्यतः तीन प्रश्नों को उठाया गया है ः
(क) मितिं २०७७।२।३१ के दिन नेपाल सरकार द्वारा प्रतिनिधि सभा में निर्णयार्थ
प्रस्तुत नेपाल के संविधान की धारा ९ उपधारा २ अनुरुप अनुसूची ३ के संशोधन
के लिए प्रस्तुत दूसरे संशोधन विधेयक २०७७ के पक्ष में मैने संसदीय दल के
व्हीप अनुसार मतदान क्यों नहीं किया ।
(ख) मिति २०७७।२।२८ में मैने उक्त दूसरे संशोधन विधेयक उपर अपना संशोधन
प्रस्ताव संसदीय दल के निर्देशन बिना संसद सचिवालय मे क्यों दर्ज कराया तथा
प्रमुख सचेतक मा.उमाशंकर अगररिया के द्वारा लिखे मिति २०७७।२।२८ में
निर्देशन पत्र को प्राप्त करने के बावजूद भी म
ैने अपना संशोधन वापस क्यो नहीं
लिया ।
(ग) उपर उल्लेखित दोनो कारणों के आधार पर मैं पार्टी के विधान तथा संघीय
कानून अनुसार अनुशासन के कारवाही की भागी क्यो नहीं हूँ ।
मै महासचिव तथा संयोजक,जाँचबुझ समिति मा. रामसहाय प्रसाद यादव के
द्वारा मिति २०७७।०३।०९ में हस्ताक्ष्रित स्पष्टीकरण बारे के पत्र ( प.सं. ०७६
०७७ , च.नं. ५५) का उत्तर यहाँ ं तीन खंडो में दे रही हूँ । पहले खंड में
प्रतिनिधि सभा तथा ं संसदीय दल में मिति २०७७।०३।३१ के दिन और उससे
पहले ं क्या हुआ था और मिति २०७७।२।२८ के निर्देशन पत्र (प.सं.०७७ ७८,
च.नं.०९) को प्राप्त करने के बावजूद भी मैंने अपना संशोधन प्रस्ताव क्यो वापस
नहीं लिया, जैसे दो विषयों के बारे में मै अपनेतरफ से विवरण प्रस्तुत कर रही हूँ

प्रतिउत्तर के दूसरे खंड में मैं संघीय कानून तथा समाजवादी पार्टी के संसदीय
दलके विधान अनुसार ं प्रतिनिधि सभा के सदस्यों के उपर अनुशासन की कारवाही
की व्यवस्था के बारे में उल्लेख कर रही हूँ । साथ ही इस खंड में मैं वैधानिक
आधार एवं कारणों के साथ यह स्पष्ट कर रही हूँ कि इस पत्र के आधार पर मैं
विधानतः किसी प्रकार की अनुशासन की कारवाही की भागी ं नहीं हूँ ।
तीसरे खंड में मै आपके द्वारा लिखे पत्र में कुछ अस्पष्टता पाया है । मैं उन
अस्पष्टताओं के बारे में अपनी कुछ जिज्ञासा रखते ह’ए इसी विषय से सम्बन्धित
कुछ अन्य जानकारियाँ उपलब्ध कराने के लिए आपसे आग्रह कर रही ह”ँ । मै
अपेक्षा करती हूँ कि आप शीघ्र ही मेरी उन जिज्ञासाओं के बारे में स”चित करे)गे
आपसे जानकारी सहित का पत्र प्राप्त करने के बाद मै पुनः एक पत्र लिखकर
अपना प्रत्तिउत्तर पूरा करुंगी अर्थात्मेरा प्रत्रिउत्तर दो चरणों में पूरा होगा ।
खंड ः१
१. सरकार ने संसद सचिवालय में ज्येष्ठ ९ , २०७७ के दिन ं संविधान की धारा
९ उपधारा २ अनुरुप अनुसूची ३ का संशोधन करने के लिए संशोघन विधेयक
दर्ज कराया है । सरकार ने कैबिनेट के ज्येष्ठ ५ के निर्णय के अनुसार नेपाल के
संशोधित नक्शा सहित का नया निशान छाप का अनुमोदन कर संविधान की
अनुसूची ३ के संशोधन के लिए संशोघन प्रस्ताव संसद मे. दर्ज कराने का निर्णय
किया था । उसकेपहले इस विषय में कुछ सर्वदलीय बैठकों के बारे में मैंने संचार
माध्यम से ं जाना था । ज्येष्ठ २७, २०७७ के दिन उक्त संशोधन प्रस्ताव के उपर
संसद में सामान्य छलफल का दिन तय हुआ था ।
मैने संशोधन विधेयक का अध्ययन सूक्ष्मता के साथ किया था और अन्तराष्ट्रिय
कानून तथा अभ्यास के दृष्टिकोण से विधेयक की कुछ गम्भीर कमी कमजोरियों
की तरफ मेरा ध्यान गया था । संशोधन विधेयक पर सामन्य छलफल में बोलने
के लिए मैं तैयार होकर गयी थी और सभामुख जी के कक्ष में मैं प्रमुख सचेतक
मा. उमाशंकर अगररिया का इंतजार कर रही थी । २०७७.२.२७ के दिन संसद में
जनता समाजवादी पार्टी की तरफ से सिर्फ दो माननीय ं को बोलने का निर्देशन
उपर से आया है , इस बात की जानकारी मुझे सभामुख जी के कक्ष मे मा.
लक्ष्मण लाल कर्ण जी ने करायी । उनके अनुसार राजपा की तरफ से वे स्वयं और
सपा की तरफ से मा. राजेन्द्र प्रसाद श्रेष्ठ बोलेंगे । मै संसदीय दल की उपनेता हूँ
लेकिन मुझको अभी तक इस बात की कोई जानकारी नहीं थी । मैं इंतजार
करती रही कि संसदीय दल के नेता एवं अध्यक्ष मा. उपेन्द्र यादव अथवा प्रमुख
सचेतक मा. उमाशंकर अगररिया के द्वारा मुझको इस बात की जानकारी करायी
जाएगी ।
मिति २०७७।२।२७ तक नये संशोधन विधेयक के बारे में आधिकारिक निर्णय करने
के लिए ना तो पार्टी की ना ही संसदीय दल की कोई बैठक हुई थी । समाजवादी
पार्टी और राष्ट्रिय जनता पार्टी के बीच एकीकरण सहमति होकर ज्येष्ठ २५,
२०७७ के दिन एकीकृत जनता समाजवादी पार्टी को दर्ज कराने के लिए निर्वाचन
आयोग में दोनों पाटियों की तरफ से संयुक्त रुप में निवेदन दत्र्ता हो चुका था ।
इस प्रकार ज्येष्ठ २५ गते के बाद दोनों पार्टियाँ संक्रमणकालीन दौर में प्रवेश
कर चुकी थी । इस संक्रमणकालीन दौर में भी सहमति और समझदारी के आधार
पर पाटी के कार्यक्रम सम्बन्धी निर्णय शीर्ष नेतृत्व के लिए लिये जाने की
जानकारी मुझे है । संसदीय दल में भी हमलोगों ने सहकार्य शुरु कर दिया था ।
सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत नीति तथा कार्यक्रम पर ं मा लक्ष्मण लाल कण,
मा. इकबाल मियाँ तथा मैने संयुक्त रुप से मिति २०७७।०२।०३ मे संशोधन
प्रस्ताव दर्ज कराया था और मैने संसद में मिति २०७७.०२.०४ के दिन संसद में
७ मिनट केलिए बोला था ।
नीति और कार्यक्रम में भी नये नक्शे की बात को सरकार ने प्रवेश कराया था ।
अतः मैने अपने मंतव्य में अन्य बातों के अलावा चीन और भारत दोनों देशों के
साथ कम से कम एक बार कुटनीतिक वात्र्ता कर के संविधान संशोधन के लिए
आगे बढने का विचार रखा था क्योकि नेपाल विश्व समुदाय का एक सदस्य है
और नेपाल ने भारत और चीन लगायत विभिन्न देशों एवं अन्तराष्ट्रिय संघ
संस्थाओं के साथ संधियाँ की हैं और वे संधियाँ नेपाल का दायित्व भी हैं ।चूँकि
सरकार द्वारा प्रस्तावित नेपाल के नये नक्शे के कारण दो पडोसी देश भारत और
चीन की सीमा भी प्रभावित होने जा रही थी और इन दोनों देशों के साथ नेपाल
के दौत्य सम्न्ध भी हैं। इस कारण से मेरी समझ में नेपाल का यह दायित्व बनता
है कि दोनो देशो के साथ कम से कम एक बार कुटनीतिक वात्र्ता कर नेपाल आगे
बढे । लेकिन मेरे उस मंतव्य को शाम तक सत्ता पक्ष नजदीक की मिडिया नेतोड
मरोड कर कर प्रचारित किया । मिडिया ने यह प्रचारित किया कि नेपाल को
नया नक्शा भारत से पूछ कर बनाना चाहिए जोकि मैंने कहा ही नही था । उसके
बाद मुझपर सामाजिक संजाल मे अश्लील तथा अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए
भयंकर आक्रमण शुरु हुआ।
नक्शे के विषय में भारत विराधी राष्ट्रवादको हवा देने के लिए मुझको कयात
तबचनभत की तरह प्रयोग किया । मैं यह नहीं मानती की भारत और नेपाल के
बीच का सीमा विवाद राष्ट्रियता का विषय है । १०० में से ९८ प्रतिशत सीमा का
विषय दोनों देशों ने सुलझा लिया है और सिर्फ दो प्रतिशत सीमा के बारे में
सहमति बाँकी है जिसको सुलझाने केलिए विदेश मंत्री स्तर पर ं वात्र्ता के द्वारा
समस्या समाधान के लिए लिखित सहमति भी हो चुकी है । सीमा नाप जोख का
विषय है, इसीलिए सीमा मापन तकनीकी विषय है । सभ्य ंविश्व जगत में
सीमा का आधार संधियों को माना जाता है और इन विवादों को कुटनीतिक स्तर
पर वात्र्ता द्वारा ऐतिहासिक तथ्य प्रमाण एवं संधियों के आधार पर सुलझाया
जाता है । मै आज भी अपने इन्हीं विचारों पर दृढ हूँ । मैने अपनी इसी समझ के
तहत अपने विचारों को ज्येष्ठ ४ गते संसद में रखा था । लेकिन जब सामाजिक
संजाल में मुझपर आक्रमण शुरु हुआ तब पार्टी मौन रही । मैं संसदीय दल की
उपनेता हूँ, एक महिला भी हूँ। साथ ही मेरा यह मानना है कि पार्टी ने मेरे उस
वक्तव्य को स्वीकार भी किया है । लेकिन मेरे बचाव में पार्टी ने एक भी वक्तव्य
जारी नहीं किया । ज्येष्ठ ४ और ज्येष्ठ ३१ गते के बीच संसदीय दल की एक
और बैठक भी हुई थी (मिति मेरे स्मरण में नहीं है) और उस बैठक में इस विषय
पर भी चर्चा हुई थी और सह अध्यक्ष मा. राजेन्द्र प्रसाद श्रेष्ठ पार्टी की तरफ से
साइबर ब्युरो में के निवेदन दर्ज कराने के लिए पहल करेंगे । लेकिन उस बैठक के
बाद ऐसा कुछ होने की जानकारी मुझे नहीं है । ऐसा क्यों हुआ,यह मेरे लिए
आज भी एक प्रश्न है ।
ज्येष्ठ ३१ के पहले हुई उक्त संसदीय दल की बैठक में मैने नेतृत्व वर्ग के
समक्ष सर्वदलीय बैठक मे सरकार द्वारा प्रस्तावित नये नक्शे के प्रमाण एवं
आधार को भी मांगने का आग्रह किया था । मेरा यह मानना है कि प्रत्येक दल
सरकार से तथ्य और प्रमाण मांगे और उन तथ्यों तथा प्रमाणों का विश्लेषण कर
सरकार के द्वारा प्रस्तावित नक्शे के बारे में दल कोई निर्णय करे ।
नया प्रस्तावित नक्शा सिर्फ भारत से समबिन्धत विषय बस्तु भी नहीं है । यह
चीन से भी सम्बन्धित विषय है क्यों कि चीन के साथ नेपाल की सीमा सम्बन्धी
संधि सन्१९६१ में हुई है । लिपुलेख के बारे में भारत और चीन के बीच १९५३ –
५४ एवं २०१४ में संधि हुई है । संसद में मैने इन बिषयों को भी पररास्ट्र मंत्री
के वक्तव्य के दौरान उठाया था लेकिन सरकार की तरफ से कभी कोई स्पष्ट
जबाब नहीं आया । नेपाल का उत्तर पश्चिमी सीमा क्षेत्र त्रिदेशीय है । अब चीन
तथा नेपाल दोनों ने इस बात को सार्वजनिक रुप से स्वीकर कर लिया है । जब
संसद में ये बातें उठ रहीं थी तब चीनिया सरकार ने ना इस बारे ना सिर्फ अपना
वक्तव्य ही जारी किया बल्कि बेइजिंग में नेपाल के राजदूत को बुलाकर
कुटनीतक नोट भी दिया । उस वक्तव्य में यह कहा गया है कि कालापानी तथा
सुस्ता का विवाद नेपाल भारत के साथ द्विपक्षीय वात्र्ता के द्वारा समाधान करे साथ
ही उस वक्तव्य में यह भी उल्लेखित है कि जिस क्षेत्र में तीन देशों की सीमा है
वहाँ कोई भी देश अकेले कुछ नहीं करे । यह बात भी मेंने संसदीय दल की ३१
गते से पहले वाली बैठक में उठायी थी और आग्रह किया था कि इन तमाम
विषयों पर विचार विमर्श करने के लिए संसदीय दल की बैठक शीघ्र बुलायी
जाए। लेकिन संसदीय दल की बैठक ज्येष्ठ ३१ गते ११ बजे बुलायी गयी थी
।उसी दिन संसद की बैठक एक बजे के लिए तय थी । यहाँ स्मरणीय है कि
प्रतिनिधि सभा के सचिवालय में नये निशान छाप के लिए संशोधन विधेयक ज्येष्ठ
९ गते सरकार ने दत्र्ता करा दिया था और संशोधन विधेयक की प्रति हमें पिजन
हाँल में उपलब्ध हो चुकी थी । मैने संशोधन विधेयक का सूक्ष्मता से अध्ययन
किया था और ज्येष्ठ २७ गते की संसद की बैठक में सामान्य छलफल में भाग
लेनेके लिए मैं तैयारी कर के गयी थी । कानूनतः सामान्य छलफल में भाग लेने
के लिए सभी इच्छुक सांसदों को स्वतंत्रता होती है ।
लेकिन संसद परिसर में मुझे माननीय लक्ष्मण लाल कर्ण ने जानकारी करायी कि
निर्देशन है कि आज सिर्फ माननीय राजेन्द्र प्रसाद श्रेष्ठ और वे बोलेंगे । मै
संसदीय दल की उपनेता हूँ लेकिन मुझे इस बात की तब तक कोई जानकारी
नहीं थी । फिर भी मैं इन्तजार करती रही कि या तो प्रमुख सचेतक उमाशंकर
अगररिया या फिर स्वयं अध्यक्ष जी मुझे इस बात की जानकारी कराएंगे । ज्येष्ठ
२७ गते के दिन तक नये संशोधन विधेयक के बारे में पार्टी अथवा संसदीय दल
की किसी बैठक के द्वारा कोई संस्थागत अथवा आधिकारिक निर्णय नहीं लिया
गया था । संयोगवश अध्यक्ष महोदय का फोन उसवक्त आया और संसद के पार्टी
के चैम्बर में संसद की बैठक शुरु होने के पहले ं मेरी और उनकी कुछ समय के
लिए बातचीत हुई । उन्होने मुझको कहा कि आज मा. राजेन्द्र प्रसाद श्रेष्ठ बोलेंगे
। वे क्या बोलेंगे इसकी जानकारी मुझको नहीं थी ।
तब मैने अध्यक्ष महोदय को बताया कि संशोधन विधेयक में नेपाल की वास्तविक
सीमा के तथ्यगत प्रमाण, संधि अथवा अन्य किसी श्रोत के बारे में कुछ भी
उल्लेख नहीं किया गया है, इसीलिए मैं संशोधन प्रस्ताव दत्र्ता कराने जा रही हूँ ।
मैने कहा कि इस अस्पष्टता के कारण देश अनावश्यक द्वन्द में लम्बे समय के
लिए फँस जाएगा । उन्होंने मुझसे अगले दिन अपना संशोधन प्रस्ताव लेकर आने
के लिए कहा ताकि उसपर कुछ विचार विमर्श हो सके ।
ज्येष्ठ २७ गते के दिन मै संसद में बैठकर में सामान्य छलफल को ध्यानपूर्वक
सुना । कमोबेश सबों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ की १८१६ की सुगौली संधि
तथा ब्रिटिश इंडिया के साथ हुई १८६० की संधि का उल्लेख किया । संसद की
छलफल से स्पष्ट था कि १८१६ की सुगौली संधि को आधार मानकर नया नक्शा
प्रस्तावित किया गया है । मा. राजेन्द्र प्रसाल श्रेष्ठ ने सीमा विवाद को राष्ट्रियता
का विषय कह कर नक्शा को निशत्र्त समर्थन करने की बात कही ।
ज्येष्ठ २८ गते मै. संसद गयी और लाँबी मे अध्यक्ष महोदय के साथ मेरी संक्षिप्त
बात हुई । बातचीत के दौरान मा. रेणु यादव भी वहीं थीं । मेरे संशोधन
प्रस्ताव डालने के बारे में मा. रेणु यादव जी को मैने ज्येष्ठ २७ गते के दिन भी
जानकारी करायी थी ।
अध्यक्ष जी ने मुझसे सरकार के द्वारा प्रस्तावित नक्शे के बदले में मेरे द्वारा
प्रस्तावित नक्शा मांगा । मैने उनको बताया कि मेरा मनशाय सरकारी नक्शे की
जगह किसी नये नक्शेको प्रस्तावित करना नहीं है । मेरे संशोधन प्रस्ताव का
आशय यह है कि सरकार अपने विधेयक में नये प्रस्तावित नक्शे के श्रोत, संधि एवं
प्रमाण का खुलासा करे अर्थात अगर यह नक्शा सन्१८१६ की सुगौली संधि के
अनुसार है तो सरकार उसका खुलासा अपने संशनेधन प्रस्ताव में करे ।
साथ ही मैने अपना आशय स्पष्ट किया कि यदि सरकार पीछे मुडकर १८१६ की
संधि तक जाना चाहती है तो १८१६ की पूरी सधि पर समग्रता में राष्ट्रिय बहस
शुरु हो क्योकि वहाँ मधेश एवं मधेशी के बारे में जो उल्लेखित है, वह पिछले
२६० वर्षों से जारी विभेद और दमन के अन्त के लिए सहयोगी साबित होगा ।
।अध्यक्ष जी ने मुझे यह कहा कि यदि मैं इस नक्शे के बदले में कोई दूसरा नक्शा
नहीं प्रस्तावित करुंगी तो मेरा संशोधन प्रस्ताव खारिज कर दिया जाएगा और मै
हास्यास्पद प्रमाणित होउंगी । संशोधन के बारे में उनकी सल्लाह ठीक ही थी
लेकिन जहाँ तक हास्यास्पद होने की बात थी, मैने उन्हे नम्रतापूर्वक कहा कि
सामाजिक संजाल में मुझको जितनी अश्लील और भद्दी गालियाँ सुनने को
मिल रही हैं, उससे अच्छा तो यह होगा कि मै कुछ ऐसा करुँ जो हास्यास्पद हो
और लोग मुझपर हँसै । संशोधन प्रस्ताव के बारे में मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट था
लेकिन संशोधन के फार्मेट में उसको कैसे रखा जाए , इस बारे में मुझे और स्पष्ट
होना बाकी था । जाते जाते मैंने मा. रेणु यादव के समक्ष अध्यक्ष जी से यह भी
कहा कि सामाजिक संजाल में मुझपर जिस तरह से आक्रमण किया जा रहा है ,
उसका राजनीतक जबाब भी मुझे देना है क्यों कि मेरे स्व की रक्षा के लिए वह
अपरिहार्य है ।
अध्यक्ष जी से बात करने के बाद मै नये सिरे से संशोधन के ड्राफ्ट के बारे में
सिंह दरबार आकर सोचने लगी । संशोधन विधेयक के तीसरे खंड मे उल्लेखित
स्पष्टीकरण खंड के विषय बस्तु पर भी संशोधन प्रस्ताव दत्र्ता नहीं होता है । यह
बात विधेयक शाखा ने भी मुझको बताया । अब मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता
बचा था जो यह था कि कि नये नक्शा के प्रमाण एवं श्रोत का उल्लेख संशोधन
विधेयक में नही. होने के कारण संशोधन विधेयक पर संशोधन दर्ज करा कर
संशोधन खारिज करने का प्रस्ताव किया जाए । मुझको लगा कि संसद में
१८१६ की संधि के विषय बस्तु को प्रवेश करा कर रेकार्ड कराना तभी सम्भव
होगा । इस प्रकार एक निर्णय पर पहुँच कर २०७७.ं२.२८ के दिन लगभग १
बजे के करी अपना संशोधन प्रस्ताव दर्ज कराया ।
उसी दिन अपरान्ह दल के प्रमुख सचेतक मा. उमाशंकर अगररिया के साथ मेरे
निवास पर पार्टी के लगभग ८ से १० नेतागण आए और उन्होने संसदीय दल के
लेटर पैड पर मा. उमाशंकर अगररिया द्वारा हस्ताक्ष्रित एक पत्र मुझे थमाया ।
मैने पत्र विधिवत ढंग से लिया । प्रमुख सचेतक उमाशंकर अगररिया के द्वारा
हस्ताक्षरित उक्त निर्देशन पत्र में संशोधन तुरन्त वापस लेने के लिए निर्देशन करने
की बात उल्लेखित है। साथ ही उक्त निर्देशन नही मानने पर पार्टी कारवाही करने
के लिए भी बाध्य होगी भी लिखा गया है । पार्टी के नेतागणों को मैने यह कहकर
विदा किया कि मैं संसदीय दल की बैठक में आकर अपनी बात रखुंगी ।
ज्येष्ठ २८ गते को ही अपनी ही पार्टी के विद्दार्थी नेता हेमराज थापा के साथ
एक समूह नारा जुलुस लगाते हुए मेरे घर पर आक्रमण किया । मुझको अपनी
सुरक्षा के लिए प्रहरी को बुलाना पडा था ।
संसदीय दल की बैठक ज्येष्ठ ३१ गते११ बजे बुलायी गयी थी । संसद की बैठक
उस दिन १.०० बजे से प्रारम्भ होने वाली थी । औपचारिक बैठक प्रारम्भ होने के
पहले ही मुझे प्रस्ताव वापस लेने के लिए कहा गया । मैने कहा मै अपनी बातों
को औपचारिक बैठक में रखुंगी । मैने संसदीय दल की औपचारिक बैठक में
हस्ताक्षर कर अपनी उपस्थिति भी दर्ज करायी ।ंबैठक में मैने प्रश्न किया कि दल
किन कारणों और तथ्यों के आधार पर सरकारी संशोधन विधेयक के बारे में
अपना निर्णय करने जा रही है । मैने अपने संशोधन प्रस्ताव पर प्रकाश डालते हुए
आग्रह किया कि दल की बैठक मेरे संशोधन पर भी छलफल करे ।
लेकिन मुझसे पुनः कहा गया कि मै अपना प्रस्ताव को वापस ले लूँ । संविधान
संशोधन के प्रस्ताव को पारित करने के लिए जिस प्रकार की जल्दी बाजी की जा
रही थी वह मुझे सहज एवं स्वाभाविक नहीं लग रहा था ।
मैने बंैठक में इस्ट इंडिया कम्पनी के साथ हुई १८१५ एवं १८१६ की संधि ,
ब्रिटिश इंडिया के साथ हुई १८६२ की संधि ब्रिटेन तथा भारत के साथ हुई
१९५० की संधि तथा नेपाल एवं चीन के बीच हुई १९६१ की सीमा सम्बन्धी सन्धि
का उल्लेख करते कहा कि इन सब का गहन अध्ययन करके ही दल को किसी
निर्णय पर पहुँचना चाहिए । लेकिन मेरे प्रश्नो के बारे में कोई प्रतिक्रिया नेतृत्व
पंक्ति की तरफ से नहीं आया । मुझे अपना संशोधन प्रस्ताव वापस लेने के लिए
फिर से कहा गया । तब मै बैठक से बाहर निकल गयी ।बैठक की उसके बाद की
कारवाही के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है । उसवक्त तक बैठक में कोई
निर्णय नहीं हुआ था ।
मैं संसद पहँची और मैने सोचा था कि संसद में अपने संशोधन प्रस्ताव के
उद्देश्य और कारण पर प्रकाश डालने के बाद सरकारी विधेयक की प्रस्तुतकत्र्ता
सम्बन्धित मंत्री जी के जबाब को सुनने के बाद मैं अपने प्रस्ताव के बारे में विधि
सम्मत तरीके से निर्णय लूंगी ।
लेकिन संसद की बैठक प्रारम्भ होने के ठीक पहले अपने प्रस्ताव के बारे में
जानकारी लेने जब सभामुख के कक्ष तरफ जा रही थी तो नेकपा के प्रतिनिधि
सभा सदस्य मा. मातृका प्रसाद यादव ,जो अभी तुरन्त प्रवेश ही कर रहे थे में,
कारिडोर में मिले और उन्हाेंने मुझे सबसे पहले जानकारी दी की मेरा प्रस्ताव
खारिज किया जा चुका है । तब मैं सभामुख के कक्ष में पहुँचकर अपने प्रस्ताव के
बारे में जानकारी लेने के लिए गयी । सभामुख जी ने भी कहा कि मेरा प्रस्ताव
उन्होने ंखारिज कर दिया गया है । निश्चित रुप से अब उस दिन कै कार्य सूची में
मेरे प्रस्ताव का उल्लेख नहीं होना था । तब मेंने सभामुख जी से आग्रह किया कि
जब संसद की कार्य विधि आगे बढेगी तब मै अपने प्रस्ताव के बारे में सभामुख
जी से फ्लोर पर प्रश्न करुंगी । सभामुख जी की सहमति मुझे प्राप्त हई । संसद
के फ्लोर पर सभामुख की अनुमति के बाद जब मैने अपने प्रस्ताव के बारे मै
सभामुख जी से प्रश्न किया तो सत्तासीन दल के सांसदों ने हुटिंग करना शुरु कर
दिया । यह संसद में सांसदों की अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर गम्भीर आक्रमण था ।
इस प्रकार की अलोकतांत्रिक प्रक्रिया को सामना करने का यह मेरा पहला
अनुभव था । संसद में यदि सांसद प्रश्न भी नहीं कर सकने की अवस्था रहेगी तब
तो संसद का औचित्य ही बाँकी नहीं रहेगा । संविधान की धारा १०३ में स्पष्ट
रुप से उल्लेखित है ः
यस संविधानको अधीन मा रही संघीय संसद को दुबै सदन मा पूर्ण वाक
स्वतंत्रता रहने छ र सदनमा व्यक्त गरेको कुनै कुरा वा दिएको कुनै मतलाई लिएर
कुनै पनि सदस्य लाई पक्राउ गरिने थुनामा राखिने वा निज उपर कुनै अदालतमा
कारवाही चलाइने छैन ।
मै संसद में घटित घटनाक्रम के प्रति असहमति व्यक्त जाहिर करते हुए सभाकक्ष
से बाहर निकल गयी । बाहर निकलने पर प्रेस ने मुझे घेरा और मैने अपने
संशोधन प्रस्ताव के उद्देश्य और औचित्य पर सार्वजनिक रुप से प्रकाश डाला ।
मैने सहयोग और स्पष्टता के लिए विस्तार में सारा विवरण लिख दिया है ।
खंड २
मै निम्न कारणो से किसी भी प्रकार के अनुशासन की कारवाही की भागी नहीं
हूँ
१.प््रातिनिधि सभा नियमावली के दफा १११ के अनुसार विधेयक पर संशोधन पेश
करना चाहने वाले किसी भी सदस्य को सामान्य छलफल समाप्त होने के ७२ घंटे
के भीतर संशोधन सहित की सूचना सचिवालय को देने की व्यवस्था है ।
मैने जब अपना संशोधन विधेयक शाखा में दर्ज कराया था तबतक तक पार्टी
अथवा संसदीय दल के द्वारा सरकारी विधेयक के बारे में कोई निर्णय नहीं
लिया गया था ।
संशोधन को वापस लेने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था प्रतिनिधि सभा नियमावली
में नही है । एकबार संशोधन प्रस्ताव दत्र्ता कराने के बाद प्रस्ताव के बारे में निर्णय
संसद के फ्लोर पर ही होता है । उससे पहले प्रस्ताव के बारे में निर्णय लेने का
वैधानिक अधिकार मात्र सभामुख को है ।
२.मैने सरकारी संशोधन विधेयक के विपक्ष में मतदान नही ं किया है । संशोधन
डालने के पीछे मेरा मनशाय नये नक्शे का विरोध नही था बल्कि नक्शे के प्रमाण
, श्रोत तथा संधि के बारे में सरकार से जबाब मांगना था ।
३.किसी सांसद पर अनुशासन की कारवाही चलाने की प्रक्रिया के बारे में
समाजवादी संसदीय दल के विधान में स्पष्ट व्यवस्था है ।
.समाजवादी पार्टी के संसदीय दल के विधान की धारा २६ (१) अनुसार पार्टी
अनुशासन का उल्लंघन करने पर उल्लंघन करने वाले सदस्य उपर छानबीन के
लिए संसदीय दल अनुशासन समिति गठन क।, छानबीन और मूल्यांकन कर
संसदीय दल में प्रतिवेदन पेश करेगी ।
लेकिन अभी जिस जाँचबुझ समिति के तरफ से मुझे पत्र पाप्त हुआ है वह
संसदीय दल के निर्णय के अनुसार गठित नहीं हुआ है । अतः यह जाँच बूझ
समिति वैधानिक नहीं है ।
४.संसदीय दल विधान की धारा २६ (ग) में उल्लेखित है कि दल के निर्णय एवं
निर्देशन के उल्लंघन के कारण किसी साँसद पर अनुशासन की कारवाही हो
सकती है ।
मा. उमाशंकर अगररिया , जो कि दल के प्रमुख सचेतक भी हैं, के द्वारा मिति
२८.२.२०७७ में लिखा गया निर्देशन पत्र. संसदीय दल के किसी निर्णय के आधार
पर मुझको नहीं लिखा गया है । अतः यह पत्र भी विधान सम्मत नहीं है ।
५. महासचिव तथा जाँचबुझ समिति के द्वारा जो पत्र लिखा गया है, वह पार्टी
की किस कमिटि के निर्णय के अनुसार लिखा गया है, वह स्पष्ट नहीं है ।साथ ही
यह भी स्पष्ट नहीं है कि किस प्रकारकी सूचना या निवेदन या प्रतिवेदन
जाँचबुझ समिति को किस प्रक्रिया द्वारा किस व्यक्ति या संस्था की तरफ से
प्राप्त हुआ है जिसके आधार पर महासचिव तथा संयोजक मा. राम सहाय प्रसाद
ने मुझको पत्र लिखा है ।
६.पार्टी की केन्द्रिय समिति या राजनीतक समिति की बैठक ज्येष्ठ २५, २०७७ के
बाद नहीं हुई है । ज्येष्ठ २५, २०७७ के दिन समाजवादी पार्टी तथा राष्ट्रिय
जनता पार्टी के बीच एकीकरण के लिए निर्वाचन आयोग में निवेदन पत्र दर्ज करा
दिया गया है और दोनों पार्टियाँ संक्रमण काल से गुजर रही हैं । इस अवस्था में
पार्टी की किसी समिति या व्यक्ति को किसी सांसद के विरुद्ध अनुशासन की
कारवाही चलाने का अधिकार नहीं है । पार्टी की अन्तरिम विधान की धारा ५०
के अनुसार विशेष परिस्थिति में केन्द्रिय समिति के द्वारा तय की गयी प्रक्रिया के
अधिनस्त रह कर किसी सदस्य एवं समिति उपर अनुशासन की कारवाई चलायी
जा सकती है।
वैसे पार्टी की कार्यकारिणी समिति विधान की धारा १७ (ग) अनुसार पार्टी समक्ष
दिखे किसी कार्य को करने का अधिकार है लेकिन जब पार्टी का ंसदीय दल किसी
प्रतिनिधि सभा सदस्य पर अनुशासन की कारवाई करने के लिए अस्तित्व मे है
तब कहीं और या फिर किसी अन्य तरीके से अनुशासन की कारवाही प्रारम्भ
करना किसी भी प्रकार से विधान सम्मत नहीं है ।
७.मैने ज्येष्ठ ३१ गते संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है लेकिन
स्पष्टीकरण पत्र मे. लिखा गया है कि मैं संसद मे. अनुपस्थित थी । गलत सूचना
के आधार पर मुझसे स्पष्टीकरण मांगा गया है ।

खंड ३
समाजवादी पार्टी के मा. डा सुरेन्द्र यादव भी ज्येष्ठ ३१ गतेके दिन संसदीय दल
की बैठक में उपस्थित थे लेकिन संसद में मतदान के समय ं वे भी अनुपस्थित रहे
हैं । उनसे भी किसी प्रकार का स्पष्टीकरण मांगा गया हैअथवा नहीं ?
जसपा के कुल ५ प्रतिनिधि सभा सदस्यो ने उस दिन विधेयक के पक्ष में मतदान
नहीं किया है। मा. अमृता अग्रहरी भी संसद में उपस्थित होकर मतदान के समय
अनुपस्थित हो गयीं । क्या उनपर और अन्य तीन माननीय सदस्यों पर भी किसी
प्रकार की अनुशासन की कारवाई बढायी गयी है ।
संसदीय दल एवं संसदीय दल का विधान उपलब्ध होने पर भी संसदीय दल
मार्फत अनुशासन की कारवाई को आगे क्यों नहीं बढाया गया ।
मैं अपेक्षा करती हूँ कि खंड ३ में उल्लेखित मेरी जिज्ञासाओ का मुझे जबाब
मिलेगा और तब मै उनके आधार पर पुनः आपको पत्र लिखकर अपना प्रतिउत्त।
पूरा करुंगी ।
सहयोग की अपेक्षा के साथ
सरिता गिरी
प्रतिनिधि सभा सदस्य
समाजवादी पार्टी
मितिः१८।३।२०७७
नोट ः 
ध्यानाकर्षण के लिए
मैने कल आपके पत्र के जबबा में अपना प्रतिउत्तर भेजा है । उसमें तिथि तथा नाम के बारे में कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं जिसके बारे में जानकारी कराने के लिए यह छोटा सा नोट मै पुनः भेज रही हूँ ।
१. ३१ं.२.२०७७ के पहले जिस संसदीय दल की बैठक का मैने उल्लेख किया है वबवह बैठक मिति ११.२.२०७७ में हुई थी ।
२.भूलवश डा. मा. सूर्य नारायण यादव की जगह मैने मां सरेन्द्र यादव का नाम लिख दिया है । मा.डा. सूर्य नारायण यादव मिति ३१.२.२०७७ की संसदीय दल की बैठक में उपस्थित थे । उपस्थिति में उनका हस्ताक्षर भी है लेकिन संसद में उस दिन हुए मतदान में वे अनुपस्थित रहे थे । क्या उनके उपर भी अनुशासन की कारवाही शुरु हुई है ?

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