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दलित हत्या श्रृंखला , राज्य और समाज

 दलित हत्या श्रृंखला , राज्य और समाज 


अभी नेपाल में और विशेष कर प्रदेश नम्बर २ में दलितो के विरुद्ध जिस प्रकार से हत्या तथा हिंसा की घटनाएँ बढ रही हैं,वह राज्य, समाज और दलित के बीच के सम्बन्ध के बारे मे कुछ हद तक खुलासा करती हैं । जापानी लेखक हारुकी मुराकामी ने लिखा है जितना दिखता है वह प”रा सत्य नहीं है । ब्रम्हाण्ड उससे भी जयादा गहरा(deeper ) और अन्धेरा(darker) है । अभी की दलित हत्या श्रृंखला समाज के गहरे और अंधेरे पक्ष की तरफ इंकित करती हैं ।  यह दलित एक तरफ सामाजिक हिंसा  का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ राज्य की हिंसा का शिकार हो रहे हैं । दोनों प्रकार की हिंसां में गहरा अन्र्तसम्बन्ध है। उसकी गहराई को मापन आसान नहीं है ।   राजु सदा  और शम्भु सदा की मृत्यु  जनकपुर में प्रहरी नियन्त्रण में यातना के कारण हुई । उनको और उनके परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में सरकार की तरफ से कोई परिणाम म’खी कदम उठाए गये हैं , ऐसा जान नहीं पडता है । इसी बीच रौतहट में निरन्जन राम की हत्या की खबर आई । निरन्जन सामाजिक हिंसा का शिकार हुआ है । उसकी हत्या के छानबीन के नाम पर प’लिस विजय तथा अन्य कुछ युवाओं को गिरफ्तार कर ले गयी । प्रहरी यातना के कारण विजय महरा की मृत्यु हुई ।  वह राज्य हिंसा का शिकार हुआ ।  


विजय की हत्या के ठीक बाद रौतहट में ही एक दलित महिला मिन्त्री देवी की हत्या हुई । उस हत्या के सन्दर्भ में किसी की गिरफतारी की खबर अभी तक सामने नही. आई है । मानों कोरोना का यह समय दलितों की हत्या का पर्व  समय है ।  
 

निरन्जन और विजय की हत्या के बाद  न्याय की मांग में जिस प्रकार की मांगें  सडक पर  उठी हैं, समस्या उनमें भी है । प्रहरी यातना के कारण विजय महरा की हत्या के दोषी प्रहरी के विरुद्ध कारवाही की मांग  एक बडा विषय बना दिया गया है   लेकिन निरन्जन राम की  हत्या का विषय ओझल में पडते जा रहा है । न्याय दोनो को चाहिए और दोनों केस सम्बन्धित भी हैं, इसीलिए  छानबीन कहाँ से और कैसे  शुरु हो, जैसे विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण हंै । जब तक निरन्जन राम की हत्या की जाँच नहीं होगी तबतक  विजय की हत्या का पूरा  सच सामने नहीं आएगा ।  
 खबरों के अनुसार विजय की मृत्यु के बाद उसके पिता ने किटानी जाहेरी गरुडा प्रहरी कार्यालय में दिया था लेकिन प्रहरुी ने उक्त निवेदन में उल्लेखित व्यक्तियों ंसे पूछताछ  नहीं कर विजय सहित अन्य कुछ अन्य युवकों को गिरफतार कर लिया । हिरासत मे उन्हें हत्या की जिम्मेवारी स्वीकार करने के लिए यातना दी गयी और यातना के कारण उनमें से एक विजय की मौत हो गयी । विजय ने अन्तिम सांस तक पुलिस के कहे अनुसार निरन्जन की हत्या का दायित्व स्वीकार नहीं किया । इस प्रकार निरन्जन की हत्या का विषय अभी सुलझा नहीं है बल्कि और भी उलझ गया है । विजय एवं अन्य लडकों को किन सूत्रों के आधार पर गिरफतार किया गया , इसकी जानकारी किसी को नहीं है। निरन्जन की हत्या के पीछे के मनशाय के बारे में लोग मौन हैं । हत्या किसने की होगी , इस बारे मे भी लोग चुप्पी साधे हुए हैं क्यों कि हत्या करने और करवाने वाले लोग  अगल बगल ही होंगे जिस कारण समाज आतंकित होगा । यह आतंक तबतक बना रहेगा जबतक निरन्जन के वास्तविक हत्यारे को प्रहरी गिरफतार कर कारवाही आगे नही बढाएगी । निरन्जन की हत्या के मुद्दे को दबाया जा रहा है क्यों कि निरन्जन की हत्या जातीय और सामाजिक हिंसा का परिणाम है और  प्रहरी भी उसी समाज के अंग हैं ।


 विजय और निरन्जन की हत्या प्रकरण को साथ रखकर देखा जाए तो जो तस्वीर उभरती है वह  चिंता का विषय है ।  यहाँ समाज और राज्य का वह रुप उभरता है एक दूसरे का प्रतिबिम्ब है , जो जातिवादी है, जो सामंती है, जो निरंकुश है और जो गरीबों, दलितो,  महिलाओं और समाज के कमजोर लागों को  अपने आतंक का शिकार बनाकर उनका शोषण करता है और पूरे समाज को भय का बंदी बनाकर रखता है ।   साजिश ऐसी जान पडती है कि एक दलित की हत्या के लिए दूसरे दलित को  जिम्मेवार ठहरा कर मामला रफा दफा कर देना था ।  
प्रहरी बल का राजनीतिकीकरण और  दुरुपयोग नेपाली समाज की बहुत गहरी और बहुत पुरानी समस्या है । प्रहरी वहीं सक्रिय होती है जहाँ राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हो । राजनीतक हस्तक्षेप होने पर प्रहरी समर्पण भाव के साथ  खडी हो जाती है और कानून तथा न्याय की हत्या का क्रम शुरु हो जाता है । असंख्यों इसके शिकार हुए हैं और हमलोगों में से बहुतों ने तो अपने अनुभवं से भी इसे  जाना और भोगा है ।
अभी विजय महरा  की प्रहरी यातना के कारण हुई मृत्यु के लिए ५ लाख की राहत देने की घोषणा सरकार ने की है । लेकिन इस सारे प्रकरण की छानबीन कैसे हो रही है , उसके बारे मे जनता को काई जानकारी नहीं है ।   अगर यही सिलसिला  जारी रहा  तो बलवान और धनवान पैसे देकर हत्या करवाते रहेगे और जब प्रहरी यताना के कारण किसी की मृत्यु  होगी  तो  राज्य राहत रकम  के नाम पर न्याय  खरीदता रहेगा ।
जब मधेश में मानव अधिकार हनन का मामला सामने आता है  तो राष्ट्रिय स्तर की मानव अधिकार वादी संस्थाएँ भीे सामान्यतः मौन धारण कर लेती हैं । प्रदेश में रहने वाले मधेशी सामाजिक अभियन्ता भी एक सीमा के बाद मौन हो जाते हैं । उनकी बाध्यता भी है क्यो कि राज्य और प्रहरी बल पर भरोसे की कमी है । ऐसे भी मधेश आन्दोलन के समय से यह स्पष्ट हो चुका  है कि मधेश में हुई किसी भी प्रहरी ज्यादती के विषय को लेकर राज्य प्रहरी बल को प्रश्न के घेरे में अथवा कानून समक्ष खडा नहीं करना चाहता है । मधेश के सन्दर्भ में न्याय की हत्या और जनता की असुरक्षा का  मूल कारण यही है ।  संघीय सरकार लाल आयोग का प्रतिवेदन इसी कारण से  प्रकाशित नहीं करना चाहती है क्यों कि उसमें प्रहरी भी प्रश्न के घेरे में है ।  


 मधेश में प्रहरी बल की आवश्यकता संघीय तथा प्रादेशिक  दोनों सरकारों को अपनी सत्ता टिकाने के लिए कभी भी पड सकता है। राज्यसत्ता यह जानती है कि प्रहरी बल को जैसी भी परिस्थिति मे उनके मनोबल को कायम रखने के नाम पर सुरक्षा देकर ही रखा जाना चाहिए ताकि जनता के विरुद्ध राजनीतिक स्वार्थ के लिए  उनका मनचाहा प्रयोग किया जा सके । उसमें भी प्रदेश नम्बर २ तो अभी जातवाद से आक्रान्त है । पहचान की राजनीति की जडें जात के तह तक पहँच चुकी है और प्रत्येक जात एक कबीला जैसा होते जा रहा है और प्रहरी बल भी उससे मुक्त नहीं है । कोई भी घटना तुरन्त जातीय द्वन्द  का रंग ले लेती है और जब दो भिन्न जात द्वन्द की अवस्था में रहते हैं तो सच झूठ बनने लगता है झूठ सच लगने लगता है । प्रहरी छानबीन की उसमें अहम भूमिका रहती है । संघीय सरकार मधेश की इस अवस्था से परिचित है और इस यथार्थता का लाभ उठा रही है ।  अगर यही सिरसिला  जारी रहा तो तो शम्भु , राजू, निरन्जन राम विजय महरा और मिन्त्री देवी और उनके परिवार जनों को  कभी भी न्याय नही मिलेगा  और भविष्य मे भी ऐसी वारदातें होती रहेंगी । 


राज्य का औचित्य का आधार  शांति सुरक्षा की व्यवस्था, न्याय की प्रत्याभूति और कानून के शासन की सुनिश्चितता  है । मधेश में दलितों की  हत्या की श्रृंखला से स्पष्ट होते जा रहा है कि राज्य  विफलता की तरफ अग्रसर है ।  
 

सरिता गिरी 


भदौ १६, २०७७
सेप्टेम्बर १ ,२०२०

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