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बनवास से वापसी poem

 बनवास से वापसी


मैं वर्षों से बनवास में थी 

अकेले रहने का बनवास

मैने अपने लिए खुद चुना था । 

अब अपने साथ 

वापसी के रास्ते पर हुँ ।

 


अपनी छत के तले 

अपने हिस्से के खुले आकाश के नीचे  

और अपने हिस्से की मिट्टी पर 

कदम रखती हुई मै ।


खुली हवा में साँस लेते हुए 

अपने आप से बातें करते हुए 

हिमाली हवा के संसर्ग में

आगे का सफर तय करुंगी ।   


अब मुझे किसी के प्रश्न का 

जबाब नहीं देना है ।

मेरी मौनता ही मेरा जबाब है ।

bhadra 12 , 2079

august  28 , sunday 2022, 

ktm

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