लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी
कल लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी की जन्म जयन्ती है । वे शुरु में माक्र्सवादी थे लेकिन जब महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए तब सर्वोदयवादी हो गये अर्थात् समतामूलक समाज के निर्माण के लिए वर्ग संघर्ष नहीं बल्कि वर्ग समन्वय के गाँधी के चिंतन को उन्होंने भी आत्मसात किया । वे लोकतंत्रवादी और समाजवादी थे और किसी समय में दल विहीन लोकतंत्र के उपयुक्त होने के निष्कर्ष पर भी पहुचे थे । लेकिन सम्पूर्ण क्रांति के आन्दोलन के बाद जब इंदिरा गाँधी पद से हटी और जब आन्दोलनकारी शक्ति को निर्वाचन में जाने की आवश्यकता आ पडी तब उस जनता दल के निर्माण में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निर्वाह की थी जिसे दिल्ली की सत्ता दलीय आधार में मिली थी ।
भारत की राजनीति में उनके द्वारा आह्वान किया गया सम्पूर्ण क्रांति का अन्दोलन उनकी सबसे महत्वपूर्ण देन है और अभी भी लोकतंत्रवादियों को प्रेरित करते रहती है । १९७० के मध्य में जब इंदिरा गाँधी जी ने आपात्कालीन अवस्था लागू की और पूरा देश जब बंदी गृह के जैसा बनते जा रहा था तब उन्होने सम्पूर्ण क्रांित का आह्वान किया था ।
भारत के लोकतंत्र के विकास में ं आपातकालीन अवस्था क्रमभंग की एक घटना थी और उससे जो खाई पैदा हो गयी थी उसकी पहचान कर जेपी ने सम्पूर्ण क्रांति का आहुवान किया था और इंदिरा गांधी को पद से विस्थापित करने में आन्दोलन सफल भी हुआ ।
बिहार में अभी भी सत्ता उस आन्दोलन से स्थापित नेताओं के हाथ में ही है । लेकिन यह नही कहा जा सकता है कि भारत का लोकतंत्र समाज को परिवत्र्तित करने में बहुत सफल रहा है । सरकारी और सामाजिक ं स्तर पर हत्या ,हिंसा, जात जाति तथा लैगिक कारणें से विभेद और दमन तथा गरीबी आज भी भारत की समस्या है ।
शायद जयप्रकाश जी ने जिन प्रश्नों को लेकर मौलिक चिंतन का प्रयास किया था , वे प्रश्न आज भी यथावत हैं । उनका उत्तर उनके बाद किसी ने ढूंढने की कोशिश नहीं की । भ्रष्टाचार, नैतिक पतन जैसी लोकतंत्र की बहुत सारी समस्याओं के कारण के रुप में उन्होने दलीय लोकतंत्र को लिया था और विकल्प के रुप में निर्दलीय लोकतंत्र के बारे में उन्होने सोचा भी था लेकिन व्यवहार मेंं उनकी सोच सफल नहीं हो पायी । इंदिरा गाँधी को पद से विस्थापित करने के लिए उनको भी दल का सहारा लेना पडा था।
नेपाल की राजनीत भी ब्रेकडाउन के तरफ अग्रसर है । कोरोना व्यवस्थापन में असफलता , भ्रष्टाचार, वित्तिय समस्या, हरेक दिन हत्या , हिंसा तथा बलात्कार की घटनाएँ , उन घटनाओं को दबाने में नेता तथा पुलिसकर्मी का मेलमिलाप, भूखमरी, आत्महत्या की घटनाएँ ,सीमा विवाद, आंदोलनरत सडक , अत्यन्त कमजोर विपक्ष, ये सब ब्रेक डाउन अर्थात क्रमभंग के संकेत हैं । लेकिन इन सबके बारे में समग्र चिंतन का अभाव सबसे बडी समस्या है ।
जेपी का सम्बन्ध नेपाल से और नेपाल के नेताओं से भी था। वे राजा वीरेन्द्र को पत्र भी लिखा करते थे । लोकनायक जयप्रकाश जी के जन्म जयन्ती के पूर्व संध्या के अवसर पर कुछ पंंक्तियाँ लिखने की इच्छा हुई । वह जुनुन भी मैने देखा है जब जनता ही नहीं सरकारी कर्मचारी भी कार्यालय छोडकर उनको सुनने आमसभा में पहँच जाते थे । जयप्रकाश जी हमारे युग के नेता थे । उनको प्रत्यक्ष देखने और सुनने का कुछेक मौका मुझे भी मिला था ।
सरिता गिरी
संयोजक, तराई मधेश वृहत् लोकतांत्रिक मोर्चा
१० अक्टूबर, २०२०
सुगौली संधि और तराई के मूलबासिंदा सुगौली संधि फिर से चर्चा में है । वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल के नये नक्शे के मुद्दे को फिर से उठाते हुए १८१६ की सुगौली संधि का एक बार फिर से जिक्र किया है । लेकिन इस बारे बोल सिर्फ प्रधानमंत्री रहे है। इस संधि से सरोकार रखने वाले और भी हैं लेकिन सब मौन हैं । इतिहास की कोई भी बडी घटना बहुताेंं के सरोकार का विषय होता है लेकिन घटना के बाद इतिहास का लेखन जिस प्रकार से होता है, वह बहुत सारी बातों कोे ओझल में धकेल देता है और और बहुत सारे सरोकारं धीरे धीरे विस्मृति के आवरण में आच्छादित हो जाते है । नेपाल के इतिहास में सुगौली संधि की घटना भी एक ऐसी ही घटना है । वत्र्तमान प्रधानमंत्री ओली सुगौली संधि का जिक्र तो कर रहे हैं लेकिन सरकार से यदि कोई संधि की प्रति मांगे तो जबाब मिलता है कि संधि का दस्तावेज लापता है । संसद को भी सरकार की तरफ से यही जबाब दिया जाता है । यह एक अजीबोगरीब अवस्था है। जिस संधि के आधार पर सरकार ने नेपाल का नया नक्शा संसद से पारित करा लिया है , उस सधि के लापता होने की बात कहाँ तक सच है, ...
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