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Showing posts from 2013

संघीय संरचना र शासन प्रणाली ः मधेशको मूल सरोकार

संघीय संरचना र शासन प्रणाली ः मधेशको मूल सरोकार मुलुक अहिले संविधानसभाको निर्वाचन मा होमी सकेको छ । शांति तथा लोकतंत्र को सुरक्षा र निरन्तरता का लागि संविधान सभा  निर्वाचन (२) को मूल मुद्दा  संघीयता र शासन प्रणालीे नै हो ।  संविधान सभा विघटन पछाडीको मूल कारण संघीय शासन पद्धति, मधेश मा कति प्रदेश हुने भन्ने विषय रहे को थियो र त्यसपश्चात विवादको मूल कारण तीन वटा तत्कालीन ठूला दल बीच विद्दमान नांगो सत्तासंघर्ष थियो जुन आज पनि यथावत कायम छ । मधेशमा कति प्रदेश हुने र ५० प्रतिशत भंदा बढी जनता को बसोबास रहेको मधेश को राजनैतिक हैसियत केन्द्रमा कस्तो हुने विषयबस्तु को प्रत्यक्ष सम्बन्ध पनि संघीय शासन पद्धति र लोकतंत्र को भविष्य संग जोडिएको हुनाले ले शासन पद्धति र संघीय संरचना को विषय मधेश का लागि सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहेकोछ ।  यथार्थमा लोकतंत्र, शांति,संघीयता र शासन प्रणाली को विषय एक अर्का संग जोडिएको छ । तर सबै प्रमुख पार्टी र नया मधेशवादी दलहरु को घोषणा पत्र पढदा स्पष्ट हुन्छ कि संविधान सभा निर्वाचन २ सम्म पुग्दा संघीयता को एजेन्डा कमजोर भई सकेको रहेछ । दल हरु संघीयता को बारेमा भाषण मा मात्

काठमांडु अगर अपना नहीं तो प्रशासन भी पराया

काठमांडु अगर अपना नहीं  तो प्रशासन भी पराया है । बात सडक के किनारे के परखाल की नहीं, दो घरों के बीच के परखाल का है । २०६८  साल में मुझे स्थानीय स्वायत्त कानून अनुसार बिना कोई सूचना जारी किए हुए बाबुराम भटराई की सरकार से महानगरपालिका के कार्यकारी प्रमुख केदार प्रसाद अधिकारी ने अपने अंतिम दिनों में एक फर्जी मुचुल्का के आधार पर मेरे घर और प्रमिला घर के बीच में परखाल होते हुए भी कानूनी मापदंड के विपरीत राजनीतिक पूर्वाग्रह और बदला लेने के लिए नक्शा पास कर दिया जिसकी कोई जानकारी मुझको एक वर्ष तक नहीं दी गयी । जब मुझको जानकारी मिली तब मैंने महानगरपालिका में कई निवेदन दिए लेकिन अपनी गल्तियों को छिपाने के लिए नगरपालिका ने मौन साधा और जब निर्वाचन का समय आया है तो पिछले दो दिनों से बिना किसी कागजात के जनपद प्रहरी का बडा दस्ता आतंक फैलाने के लिए पिछले दो दिनों से मेरे घर पर धावा देते आ रहा है । यथार्थ में बिना किसी कागजात के प्लिस को मेरे निवास में प्रवेश करने का अधिकार तक नहीं है । अवैधानिक नक्शे के अनुसार सहमति मे २०४६ साल में ही बनाए गए दिवाल को टुटाकर जिस संरचना को बनाने के लिए प्रमिला गि

मधेश पुनः हासिये पर

मधेश पुनः हासिये पर इस देश में मधेशी समुदाय के सदस्य राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति मधेश आंदोलन की ताकत के बल पर बने । मधेश को केन्द्र की राजनीति मे बराबरी के हक के साथ स्थापित करने के लिए ही मधेश आंदोलन हुहा था । लेकिन मधेश आंदोलन ने दासत्व के जिन शिकंजो को तोडा था, उनकी जगह पर नये शिकंजों को बनाने का खेल संविधान सभा निर्वाचन के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो गया था । उसका परिणाम यह था कि संविधान सभा बिना संविधान बनाए समाप्त कर दिया गया । योजना तहत शासकों ने दूसरी सफलता तब हासिल की जब उस खिलराज रेग्मी के हाथ में सरकार की सत्ता सौंपी गयी जिसने संविधान सभा को अपने अजीबोगरीब आदेश से भंग करा दिया था । यह सरकार जनता प्रति उत्तरदायी नहीं है । संसद की जगह उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति बना दी गयी है और महामहिम जी सरकार और समिति से घिर चुके हैं और उनके सिफारिश पर बारबार उसी संविधान को घायल करते रहे हैं जिसके आधार पर  स्वयं राष्ट्रपति बने हैं । कई बार उन्होंने गलतियाँ की हैं और शांति प्रक्रिया के अपूर्ण होने की अवस्था में बिना राजनीतिक सहमति के सेना परिचालन के लिए संविधान विपरीत अगर अपनी मुहर लगाएंगे तो

गणतंत्र में लोकतंत्र

गणतंत्र में लोकतंत्र अंततोगत्वा संविधान सभा निर्वाचन के लिए निर्वाचन आयोग में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि और समयावधि को बढाने की बात तय हो चुकी है । शायद कल निर्वाचन आयोग नयी तिथि की घोषणा कर दे । सरकार के द्वारा तय की गयी मतदान की तिथि के दो महिना पहले निर्वाचन को लेकर उच्चस्तरीय राजनीतिक समिति, चुनावी सरकार और निर्वाचन आयोग ने जिस तरह से पूरे देश को बंधक बना कर रखा है उससे स्पष्ट होता है कि निर्वाचन देश और जनता के लिए नहीं बल्कि  मूलतः इनकी आवश्यकताओं और इनकी वैधानकता के संकट को दूर करने के लिए होने जा रहा है । निश्चित रुप से उम्मीदवार मनोनयन की तिथि में परिवत्र्तन असंतुष्ट ३३ दलों को सहमत कराने के लिए नहीं हो रहा है । यह परिवत्र्तन इस लिए हो रहा है कि समिति के प्रमुख ४ दल अभी स्वयं निर्वाचन के लिए तैयार नहीं हैं । शायद निर्वाचन आयोग भी अभी आवश्यक तैयारी नहीं कर पाया है । लेकिन इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि हम अभी भी अधिनायकवादी सत्ता के अद्र्ध नागरिक  हैं। 2070.6.2 KTM

अनशन संस्मरण (भाग २)

अनशन संस्मरण  अनशन का ध्येय सिर्फ मांगो की पूत्र्ति नहीं होता है । राजनीतिक अनशन मुलतः राजनीति के संसार के सत्य को स्थापित करने का आग्रह  है । चलायमान राजनीति को तो वैसे भी अद्र्धसत्य की दुनिया मानी जाती है । एक बात के बारे अभी पूरी समझ बन नहीं पाई होती है कि कुछ नया घट गया होता है । गहराई में जाकर सत्य का सामना करना, उसको समझना  राजनीतिक सत्याग्रह के किसी भी कार्यक्रम का मूल ध्येय होता है । किसी भी विषय के बारे में सत्य पर असत्य अथवा भ्रम की सिर्फ एक परत नहीं होती है। हर एक परत के हटने के बाद सत्य की एक नयी परत सामने आती है । सत्य और ज्ञान  इस दृष्टिकोण से एक हैंं । २२ दिनो के अनशन अथवा सत्याग्रह मेरे राजनीतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है । उसके अनुभवों को वर्णन करने का प्रयास मैं इस लेखन में कर रही हूँ । अनशन संस्मरण (भाग २) श्रावण २९ गते से मैं अनिश्चितकालीन अनशन पर शांतिवाटिका, रत्नपार्क में बैठी और अनशन का समापन २२ दिनों के बाद भाद्र १८ गते को हुआ। जिस कार्यक्रम को सबेरे ९ बजे से शुरु होना था। वह  १२ बजे के बाद ही शुरु हो पाया । शांति वाटिका का प्रयोग करने की अनुमति देने में काठ

Ansan ko Sansamaran

अनशनको संस्मरण उनको नाम बिष्णु लामिछाने थियो । झापा घर भएका ती युवा अनशन को तेस्त्रो दिन देखि क्रम न टुटायी अनशन स्थलमा आउन थाले का थिए । अनुहार मा एक प्रकार को आभा भए पनि अनुहारमा जहिले पनि उदासी हुन्थियो । संधै आयी नमस्कार गरी एउटा कुना मा बसी पत्रिका का पाना उल्टाउंथिए र दिउँसो बीच मा उठी कहिले काहीं एता उती पनि जान्थिए । त्यस्तै एक जना मधेशी युवा पनि बीच बीच मा केही दिन बिरायी आई राख्थ्एि । अत्यन्त सभ्य र भला आदमी को अनुहार तर कुनै प्रकार को चिंता ले मलीन भयी राख्ने उनको अनुहार थियो । उनी दाढी पाली राखेका थिए ।यी दुबै युवा त्यहाँ आएको बेला मा आंदोलन को कार्यक्रम बनाउन मा संलग्न हुन्थिए । अजय बोल्दै न थिए तर बिष्णु कहिले काँही कुरा कुराकानी पनि गरथिए । बिष्णु ले एक दिन भने, दिदी , “यहाँ आउंछु, संधै वर्गीकृत विज्ञापन हेर्छु र नोकरी का लागि फोन मा सम्पर्क गर्छु । म अब पत्रकारिता को आफ्नो पढाई पूरा गर्न काठमांडूमा कुनै नोकरी को खोजी मा छु । ” अजय त्यती बोल्दै न थिए । तर अरु संग बुझदा उनी पनि सुपरभाइजर सम्मको नोकरी को खोजी मा काठमांडू को सडक मा भौंतारी रहेका थिए । बेरोजगार य

6 pt agreement is against madhesh

मधेसविरोधी सहमति सरिता गिरी मधेसी जनअधिकार फोरम नेपाल तथा राष्ट्रिय मधेस समाजवादी पार्टीसम्मिलित संघीय लोकतान्त्रिक मोर्चा र उच्‍चस्तरीय राजनीतिक समितिबीच भएको छबुँदे सहमति संविधान र मधेसविरोधी मात्र होइन, मधेसी र पहाडी समुदायबीच नयाँ सिराबाट द्वन्द्व चर्काउने प्रकृतिको छ। सहमति विभिन्‍न समुदाय र क्षेत्रबीच असमानता र विभेद हटाउनुभन्‍दा नयाँ द्वन्द्व सिर्जना गर्ने खालको छ। अन्तरिम संविधानअन्तर्गतको शासन व्यवस्थामा रहेको दाबी गरिए पनि यथार्थमा हामी २०४७ सालको संविधानमा फर्किसकेका छौं। संविधानविपरीत जेठ १४ गते संविधानसभा विघटित गराई कात्तिकमा र त्यसपश्चात् पुन: जेठमा संविधानसभा निर्वाचनको घोषणा गराउने एकीकृत माओवादी र मधेसी मोर्चाको सरकार जेठ १४ पछि करिब एक वर्ष सरकारमा रहे पनि जनगणना २०६८ को तथ्यांकअनुसार निर्वाचन क्षेत्र पुनर्निर्धारण आयोग गठन गरी क्षेत्र पुनर्निर्धारण कार्य अघि बढाएन। सम्मानित सर्वोच्च अदालतको हालसालै भएको आदेशपश्चात् मात्र सरकारले पूर्व न्यायाधीश ताहिर अली अन्सारीको नेतृत्वमा पाँच सदस्यीय आयोग गठन गरी क्षेत्र पुनर्निर्धारण कार्य अघि बढायो। तर

अनिश्चितकालीन अनशन

नेपाल सद्भावना पार्टीद्धारा जनताको संवैधानिक अधिकार रक्षार्थ राखिएको ३० बुँदे माँग पुरा गराउन पार्टी अध्यक्ष मा. सरिता गिरीद्धारा रत्नपार्क (शान्तिवाटिका)मा शुरु गरिएको अनिश्चितकालीन अनशन आज दोश्रो दिन पनि जारी छ ।-From www.nsp-a.blogspot.com

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

महाशिवरात्रि की शुभकामना सबों को !

जहाँ सत्य है,वहीं शिव है और वहीं सौन्दर्य तथा आनन्द भी है । शिव ने पुरुष –स्त्री, सृष्टि और सम्बन्धों का जो संसार रचा है,जीवन वही है । जीवन उससे परे कुछ भी नहीं है । उससे परे देवत्व ही हो सकता है ! काठमांडू शिव और बुद्ध दोनों का बास स्थान है । दोनों के रुप रंग और भंगिमा समान दिखते हैं । जो दोनों को समझ ले , वह सांसारिक हो के भी अविजित है । शायद देवत्व प्राप्त करना इसी को  कहते हैं ।  शिव , सत्य और देवत्व का दर्शन सबों को हो । महाशिवरात्रि की शुभकामना सबों को !!!

बिंदू की हत्या (यह किसी कवि की कविता नहीं है...)

बिंदू की हत्या बिंदू गाँव की एक मासूम लडकी नाजुक उम्र की लहरों पर सवार मन के सपनों के डोले मे डोलते और तन के झूले में झूलते पूरवी हवा के हिलोरों के बीच  रुमानी सपनाें की दलहीज पर अभी अपने पहले कदमों को रखा ही था । सपनों के मखमली बादलों पर व्ह अभी सवार  हर्ई ही थी, परियों की तरह उडने के लिए । कि अमावस की काली रात आन पडी । काली रात के साथ काली  आंधी भी आयी  आँधी भी ऐसी की सब दिये बुझ गये, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया, अँधेरे की स्याही भी इतनी काली कि सभी सफेद मानव काले दानव में बदल गये । अपने अपने  नहीं रह,े  सब राक्षस बन गये गरम रक्त और माँस की खोज में भटकते हुए  राक्षस , शरीर पर चुभने वाले काँटो के साथ, चेहरे पर रक्त पिपासु बडे बडे दाँतो के साथ । सब प्रेत बन गये भूखे प्यासे प्रेत अँधेरों में भटकने वाले प्रेत नोचने खसोटने वाले प्रेत डराने और कराहने वाले प्रेत । ल्ेकिन बिदू तो अभी भी उजाली थी सूनहले सपनों की डोली पर सवार अँधेरी गलियों में भी रुमानी रोशनी  में काली अंधेरी रात के खत्म होने का इंतजार कर रही थी बिंदू । लेकिन सुनहले सपनों क

चुनाव भन्दा अघि शान्ति प्रक्रिया

चुनाव भन्दा अघि शान्ति प्रक्रिया राष्ट्रपतिको असंवैधानिक सूचना नै संवैधानिक शून्यताको कारक (तर त्यसका लागि प्रमुख दलहरु तैयार छैनन् । डेकेन्द्र थापाको प्रकरणमा प्रधानमन्त्री ले भन्नु भया,े द्धन्दकालको मुद्दा ब्यँताईए भने कांग्रेस र एमालेका नेताहरु लाई पनि जेल जानु पर्ने हुन्छ । त्यस बारे  प्रमुख प्रतिपक्षी दलले मौनता धारण गरेकोछ । शांति प्रक्यिा पूरा नगरी अर्को निर्वाचनमा जाँदा  राजनीतिमा उही पुरानै  दमनकारी, शोषणकारी, अधिनायकवादी, हिंसक र अपराधी वृति हावी हुनेछन  र आम जनता हिंसा र अपराधको छायामा बाँच्न बाध्य हुनेछन । साथै राजनीति र समाजमा द्वन्दका कारणहरु यथावत रहनेछन्। ) दस वर्षको सशस्त्र द्वन्द पश्चात् प्रारम्भ भएको नेपालको शान्ति प्रक्रिया सर्वाधिक नाजुक मोडमा आई पुगेकोछ। संसद न भई संविधान निष्क्रिय भई सकेको अवस्थामा आज हामी जुन धरातलमा उभिएका छौं, त्यहाँ शांतिका लागि सहमतिको  सरकारको गठनको प्रयास या त एउटा utopian  परिकल्पना हो या कुनै तानाशाहको उदय का लागि गरिएको आमन्त्रण । शांति प्रक्रिया अधूरो छ । यस बाट द्वन्द  प्रभावित आम जनताले राहत वा न्याय पाए का छै