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Showing posts from January, 2013

बिंदू की हत्या (यह किसी कवि की कविता नहीं है...)

बिंदू की हत्या बिंदू गाँव की एक मासूम लडकी नाजुक उम्र की लहरों पर सवार मन के सपनों के डोले मे डोलते और तन के झूले में झूलते पूरवी हवा के हिलोरों के बीच  रुमानी सपनाें की दलहीज पर अभी अपने पहले कदमों को रखा ही था । सपनों के मखमली बादलों पर व्ह अभी सवार  हर्ई ही थी, परियों की तरह उडने के लिए । कि अमावस की काली रात आन पडी । काली रात के साथ काली  आंधी भी आयी  आँधी भी ऐसी की सब दिये बुझ गये, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया, अँधेरे की स्याही भी इतनी काली कि सभी सफेद मानव काले दानव में बदल गये । अपने अपने  नहीं रह,े  सब राक्षस बन गये गरम रक्त और माँस की खोज में भटकते हुए  राक्षस , शरीर पर चुभने वाले काँटो के साथ, चेहरे पर रक्त पिपासु बडे बडे दाँतो के साथ । सब प्रेत बन गये भूखे प्यासे प्रेत अँधेरों में भटकने वाले प्रेत नोचने खसोटने वाले प्रेत डराने और कराहने वाले प्रेत । ल्ेकिन बिदू तो अभी भी उजाली थी सूनहले सपनों की डोली पर सवार अँधेरी गलियों में भी रुमानी रोशनी  में काली अंधेरी रात के खत्म होने का इंतजार कर रही थी बिंदू । लेकिन सुनहले सपनों क

चुनाव भन्दा अघि शान्ति प्रक्रिया

चुनाव भन्दा अघि शान्ति प्रक्रिया राष्ट्रपतिको असंवैधानिक सूचना नै संवैधानिक शून्यताको कारक (तर त्यसका लागि प्रमुख दलहरु तैयार छैनन् । डेकेन्द्र थापाको प्रकरणमा प्रधानमन्त्री ले भन्नु भया,े द्धन्दकालको मुद्दा ब्यँताईए भने कांग्रेस र एमालेका नेताहरु लाई पनि जेल जानु पर्ने हुन्छ । त्यस बारे  प्रमुख प्रतिपक्षी दलले मौनता धारण गरेकोछ । शांति प्रक्यिा पूरा नगरी अर्को निर्वाचनमा जाँदा  राजनीतिमा उही पुरानै  दमनकारी, शोषणकारी, अधिनायकवादी, हिंसक र अपराधी वृति हावी हुनेछन  र आम जनता हिंसा र अपराधको छायामा बाँच्न बाध्य हुनेछन । साथै राजनीति र समाजमा द्वन्दका कारणहरु यथावत रहनेछन्। ) दस वर्षको सशस्त्र द्वन्द पश्चात् प्रारम्भ भएको नेपालको शान्ति प्रक्रिया सर्वाधिक नाजुक मोडमा आई पुगेकोछ। संसद न भई संविधान निष्क्रिय भई सकेको अवस्थामा आज हामी जुन धरातलमा उभिएका छौं, त्यहाँ शांतिका लागि सहमतिको  सरकारको गठनको प्रयास या त एउटा utopian  परिकल्पना हो या कुनै तानाशाहको उदय का लागि गरिएको आमन्त्रण । शांति प्रक्रिया अधूरो छ । यस बाट द्वन्द  प्रभावित आम जनताले राहत वा न्याय पाए का छै