बिंदू की हत्या बिंदू गाँव की एक मासूम लडकी नाजुक उम्र की लहरों पर सवार मन के सपनों के डोले मे डोलते और तन के झूले में झूलते पूरवी हवा के हिलोरों के बीच रुमानी सपनाें की दलहीज पर अभी अपने पहले कदमों को रखा ही था । सपनों के मखमली बादलों पर व्ह अभी सवार हर्ई ही थी, परियों की तरह उडने के लिए । कि अमावस की काली रात आन पडी । काली रात के साथ काली आंधी भी आयी आँधी भी ऐसी की सब दिये बुझ गये, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया, अँधेरे की स्याही भी इतनी काली कि सभी सफेद मानव काले दानव में बदल गये । अपने अपने नहीं रह,े सब राक्षस बन गये गरम रक्त और माँस की खोज में भटकते हुए राक्षस , शरीर पर चुभने वाले काँटो के साथ, चेहरे पर रक्त पिपासु बडे बडे दाँतो के साथ । सब प्रेत बन गये भूखे प्यासे प्रेत अँधेरों में भटकने वाले प्रेत नोचने खसोटने वाले प्रेत डराने और कराहने वाले प्रेत । ल्ेकिन बिदू तो अभी भी उजाली थी सूनहले सपनों की डोली पर सवार अँधेरी गलियों में भी रुमानी रोशनी में काली अंधेरी रात के खत्म होने का इंतजार कर रही थी बिंदू । लेकिन सुनहले सपनों क