Skip to main content

अनशनः हठयोग, नैतिक योग और आध्यात्मिक योग

अनशनः हठयोग, नैतिक योग और आध्यात्मिक योग

मैने पार्टी की मांगों को राज्य समक्ष रखकर २१ दिनों का अनशन काठमांडू में किया था । शायद सातवें दिन के बाद वीर अस्पताल के कुछ वरिष्ठ डाक्टरो की सलाह पर मधु का सेवन करने लगी क्यों कि स्पष्ट होचुका था कि सरकार सहमति नही चाहती थ ीऔर मुझको अस्पताल में भर्ती कराकर मेरे अनशन के अभ्यास को स्खलित कराना चाहती थी । मैनै भी जिद डान ली कि अनशन तोडुंगी तो अपने शत्तों पर और अपनी आवश्यकता अनुसार । मैं र।जेन्द्र महतो जी के समान चार दिन के बाद अस्पताल जाकर धोखे से युक्त सहमति नहीं करने के लिए कदापि भी तैयार नहीै थी । राज्य की वास्तविकता को जन समक्ष लाना ही अब मेरा उद्देश्य बन चुका था और उसके लिए अनशन लम्बा करना होगा , यह स्पष्ट था ।मधु के सेवन के कारण ही २१ दिनों तक टिक सकी । २१ वें दिन सरकार ने चुनाव क्षेत्र निर्धारण आयोग के विभेदकारी प्रतिवेदन कौ स्वीकार कर लिया । सरकार के सत्य को जनसमक्ष लाने का मेरा उद्देश्य पुरा हो गया  और २२ वे. दिन भदौ १७ को मधेश के लिए काले दिवस की घोषणा कर मैंने अपना अनशन समाप्त किया था । मधु सेवन के विषय को लेकर सिर्जित व्यापक विवाद के बावजूद  मैनै अपनी स्वतंत्रता और सम्प्रभुता कायम रखी ।

अनशन समाप्त हुए काफी दिन हो चुके हैं । इसके पहले दो टुकडों में इस विषय बस्तु पर थोडा लिख भी चुकी हूँ लेकिन चुनाव  की व्यस्तता के कारण कुछ गम्भीर विषयों को मैने दो टुकडों मे छुवा तक नही था। सोचा था , बाद में फुरसत में लिखूंगी । पहले जो मैंने सोचा था वह तो है ही लेकिन शिक्षण अस्पताल के डा. गोविन्द केसी के अनशन के कारण पुरानी सोच फिर उभर कर आयी । डा केसी के अनशन  का आज सातवाँ दिन है और चूँकि मांगे राज्य समक्ष रखी गयी हैं , इसलिए अनशन राजनीतिक है ।

अनशन आखिर है क्या?अनशन मनुष्य या नागरिक का  हठयोग, आध्यात्मिक योग एवं नैतिक योग है । इसीलिए  राज्यसत्ता अनशनको अपनी सर्वोपरिता के लिए अनशन को हमेशा एक चुनौती के रुप मे लेती है । अनशन राजनीति भी है , इसीलिए किसी भी अनशन के शुरुहोने के साथ ही पक्ष और विपक्ष भी शुरु हो जाता है । जेम्स ज्वायस ने बहुत पहले अपनी आत्मकथा में ऐसा  कहा था और सच भी यही है । कल तक डा केसी के सभी समर्थक ही रहे होंगे उनकी सादगी और  सदगुणों के कारण ।लेकिन आज उनके अनशन का  विरोध करने वाले भी निकल रहे हैं । विरोध प्रत्यक्ष नही है लेकिन अप्रत्यक्ष विरोध भी तो विरोध ही होता है । आमरण अनशन के शायद चौथे दिन से उनको डिप यानि कि ग्लुकोज पानी पर रखा गया है । यह जीव विज्ञान की तरफ से हस्तक्षेप है । लेकिन अब यह आमरण अनशन शायद नही रहा । यह कितने दिनों तक जायेगा , कहना मुश्किल है ।

इसके पहले अधिकारी दम्पत्ति भी लम्बे अवधि तक का अनशन करचुकी है शायद । लेकिन जीव विज्ञान के अनुसार तीन हफतों यानि कि २१ दिन के बाद अनशनकारी शारीरिक रुप से जीवन और मरण के बीच मे झूलने लगता है क्योकि तबतक ह्दय , मस्तिष्क और किडनी जैसै शरीर के अति आवश्यक अंगको ग्लुकोज मिलता भी रहे तो आंदा के कोष मरने लगते हैं और उनके फिरसे क्रियाशील होने की सम्भावनाएँ खतरे में पड जाती हैं । इस दृष्टिकोण से अधिकारी दम्पति का अनशन मेरी समझ में पूर्णतया नहीं आता है ।  .

अनशन एक नैतिक योग भी है । यानिकि अनशनकारी अपने लिए कैसी सीमाएँ निर्धारित करता है , वह अनशनकारी की स्वतंत्रता का विषय है लेकिन सार्वजनिक कारण से और सार्वजनिक रुप से अनशन किए जाने पर वह सारी सीमाएँ भी सार्वजनिक होनी चाहिए ।
राज्य की शक्ति एवं सर्वोपरिता के  विरुद्ध मे किये जाने वाले किसी भी अनशन को असफल कराने मे राज्य अपनी पूरी शक्ति लगा देती है लेकिन राज्य पर अंकुश लगाने के लिए जनशक्ति या जनधारणा का बहुत बडा महत्व होता है और यह राज्य की प्रवृति और  प्रकृति पर भी निर्भर करता है । कोई भी अनशन सफल हो या विफल, अंश मे सफल हो या विफल यह भी राज्य ही निर्धारित करता है । अन्ना हजारे के बार बार के अनशन से भी यही प्रमाणित होता है ।

अनशन  राजनीतिक उद्देश्य को ही लेकर क्यों नही किया गया हो , अनशन आध्यात्मिक अभ्यास भी है । अनशन शरीर की आवश्यकताओं से उपर उठकर मनुष्य की आत्मीय शक्ति की अनुभूति के लिए किया गया एक अभ्यास भी है ।
लेकिन अनशन आत्महत्या के लिए नही किया जाता है , इतना मैं समझती हूँ । राजनीतिक अनशन शरीर त्याग अर्थात निर्वाण के लिए भी नहीं किया जाता है, मैं यह मानती हूँ । अनशन सत्य की खोज है । अपने , समाज के राज्य के सत्य के बारे में । लेकिन जब एक बार यात्रा शुरु हो जाती है तो अन्य कई सत्य का भी सामना करना पडता है । अनशन के दौरान शरीर और आत्मा के बीच झुलते हुए स्व को स्वर्ग और नर्क के बीच झुलने की अनुभूति होती है ।ं
इन सारे दृष्टिकोण, ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर मैं बस इसका इंतजार कर रही हूँ कि डा केसी के अनशन का समापन कैसै होता है ।राज्य की सर्वोपरिता और शक्ति को चुनौती देकर मैने जो २१ ीदनों का अनशन किया उसके बारे मे लिखना अभी बाकी है ।
सरिता गिरी
कठमांडौ
५।१०।२०७०



Comments

Popular posts from this blog

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

राष्ट्रपतिको दायित्वः पुनर्निर्माण वा विनिर्माण

राष्ट्रपतिको दायित्वः  पुनर्निर्माण वा विनिर्माण ( राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्टप्रमुख बनेका छन।अहिले राष्ट्रपतिज्यूले हतारमा उठाएको आफ्नो कदमले गर्दा अपठ्यारोमा परी सक्नु भएको छ । वहाँ त्यस बाट आफू कसरी निस्कनु हुन्छ वा देशलाई निकास दिनका लागि कसरी अगाडी बढनु हुन्छ ? सर्वाधिक महत्वको विषय हुन पुगेकोछ । वहाँको कदमले प्रमाणित गर्नेछ, वहाँँ राजा जस्तो बन्दी हुनु हुन्छ वा कानूनको अधिनमा रही स्वयं पनि स्वतन्त्र हुनुहुन्छ र सबैको स्वतंत्रता सुरक्षित राख्नुहुन्छ । वहाँको कदमले दर्शाउनेछ कि वहाँ हिजो को नेपाल को विनिर्माण गरी नया नेपालको निर्माणका लागि मार्ग प्रशस्त गर्नु हुनेछ वा हिजोकै नेपालको पुनस्र्थापनामा लाग्नुहनेछ । पुननिर्माणले मुलुक लाई यथास्थितिवाद तिर धकेल्छ भने विनिर्माणले जनताले अपेक्षागरेको नया नेपालको निर्माणको जग बसाल्छ।)  राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्ट्रप्रमुख बनेका छन। विजीतहरुको मुलुक (एयककभककष्यल)लाई सबैको देश (अयगलतचथ) बनाउन्को बीडा राष्ट्रपतिज्यूले थाम्नु भएकोछ र त्यो काम आफूमा स्यानो र सजिलो काम

विदेशमा महिला कामदार- उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति

अन्नुपुर्ण पोष्ट २०६९ साउन २९ गते, AUGUST 13, 2012,MOONDAY मा प्रकाशित लेख  खाडी मुलुकमा नेपाली महिलाका लागि रोजगारको पर्याप्त अवसर छ, तर घरेलु कामदारको सुरक्षित र मर्यादित रोजगारका लागि सम्झौता गरी पठाउने व्यवस्था नगरी उनीहरु लाई रोक्नु धेरैका लागि रोचक र लाभदायी अर्थराजनीति हुन सक्दछ।   विदेशमा महिला कामदार-उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति   - सरिता गिरी          घरेलु कामदार भई वैदेशिक रोजगारका लागि जान खोज्ने नेपाली महिलाको उमेर हद ३० वर्ष तोक्ने नेपाल सरकारको १० बुँदे निर्णय महिला समानता र स्वतंत्रता को अधिकारमाथि ठाडो आक्रमण हो । माओवादी दल जसले हिजो कम्यूनिष्ट क्रान्ति र महिला उन्मुक्तिको नारा दिई उनीहरुलाई बन्दूक बोकेर सशस्त्र हिसां गर्न सिकायो, सत्तामा गएपश्चात् उसले तिनैमािथ बुर्जुवाबादी, सामन्तवादी र पितृसतावादी नीति कसरी अख्तियार गर्नपर्याे, सरकारको यो निर्णय अन्तिरम संविधान र वैदेशिक रोजगार ऐन २०६४ विपरीत छ । तर कानूनभंदा पनि आदेश र निर्देशनको आधारमा शासन चलाउने परम्पराको जरो नेपालमा गहिरो रहेको छ । दिनै पछि बाँच्नका लागि संघर्ष गरीरहेको समान्य जनता र वैदे