Skip to main content

माननीय उपेन्द्र यादव जी के नाम खुला पत्र

 माननीय उपेन्द्र यादव जी के नाम खुला पत्र

माननीय उपेन्द्र यादव जी ,

For a colonized people the most essential values, because the most concrete , is first and foremost the land: the land which will bring them bread and ,above all, dignity.

Frantz Fanon   के इस कथनका मैं यहाँ व्याख्या नहीं करुंगी । आप स्वयं अध्ययनशील हैं ।आप मधेश विद्रोह के नायक केरुप में जाने जाते हैं । पिछले १५ सालों से निरन्तर सत्ता में हैं । मधेशियो में गरीबी, बेरोजगारी और शोषण की समस्या यथावत है । मधेश प्रदेश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है । बच्चों की नागरिकता की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। हम जैसी महिलाओं की नागरिकता के अधिकार की कटौती में आपकी प्रमुख भुमिका रही है । अपने सत्ताके लिए आपने हमलोगों को भारतीय साबित करने की कोशिश की । मधेश के परिवार ऋण में डुबे हुए हैं । युवाओं से मैन पावर कम्पनी ३ से ४ लाख रुपैया अवैध तरीके ले रही है और परिवार सुदखोरों के चपेट में घिरते जा रहे हैं। शिक्षा का स्तर मधेश में गिरते जा रहा है । खुले आम बच्चे चोरी कर पास या फेल  हो रहे हैं। आप अधिकार प्राप्ति की बात कर रहे हैं और आप मधेश को पहचानने से इनकार करते हैं ।

मधेश नहीं होकर आपका मधेशी जनाधिकार फोरम कैसे जन्मा था और मधेश विद्रोह कैसे हुआ था । आपने स्वायत्त मधेश प्रदेश का नाराा लोगों को किस आधार पर सिखाया था । आप मधेश को नहीं पहचाने है और और आपके कार्यकत्र्ता सिर्फ मधेश का ही नाम लेते हैं । अगर मधेशवाद नहीं था तो मधेश प्रदेश कैसे बना ? 

आपने हमारे लिए इतना सबकुछ करने  के बावजुद भी हम लोग आज भी मधेश मधेश मधेश की रट क्यों लगा रहे हैं ? क्या है वह जो हमको चैन से बैठने नहीं दे रहा है ? मधेश प्रदेश के नाम पर ८ जिला तो हमको मिल गया हैं लेकिन कहीं कुछ तो है जो इस अवस्थाको स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है । क्या हमने गम्भीरता से सोचा है कि  आखिर हमको किस चीज की तलाश  है ? क्या उस तलाश को यर्थाथपरक  ढंग से परिभाषित करने की कोशिश हमने की है ? क्या उस तलाश के बारे में हमने आम जनता केो बतलाने और समझाने की कोशिश की है ? क्या उस तलाश का कोई ठोस आधार या कारण है, चाहे वो  वत्र्तमान से हो या फिर अतीत से ?  या फिर हम सिर्पm अनकही भावनाओं के बहाव में बहते जा रहे हैं । कभी डुबते हुए तो कभी उतराते हुए और इस बहाव की हर क्षण बदलती धाराओं में पकड में जो कुछ भी आ जाए, चाहे वो  तिनका हो  या फिर फिर किसी ढले हुए वृक्ष की तना या कोई शाखा, को हम पकड लेते हैै और भावनाओं  के सागर को पार करना चाहते हैं । लेकिन किनारा मिल नहीं रहा है । क्या किनारा इसलिए ं नहीं मिल रहा है क्योंकि हम अपनी जमीन से छोड दी  हैं ?

अगर मैं भावना का उल्लेख कर रही हुँ तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं भावना को हल्के ढंग से ले रही हूँ । भाव और भावना तो भाषा से भी पहले आए हैं और आते हैं । राजनीतिक कर्मी के लिए भी यह चुनौती होती  है कि हम उन भावों और भावनाओं को शब्दों में उतार कर जनता से सम्बाद स्थापित कर सके । राजनीतिक लेखन के लिए भावनाओं के कारण को समझना बहुत जरुरी होता है और उनकां  तथ्यगत रुप में  उल्लेख भी करना पडता है । राजनीतिक लेखन अथवा भाषण  संगीत अथवा साहित्य की विधा से इसलिए अलग है यों क्यों कि इसमें  तथ्य चाहिए, कारण चाहिए, लक्ष्य चाहिए और तर्क चाहिए , सिर्फ कल्पना नहीं । 

८ जिलों का मधेश प्रदेश औपनिवेशिक शासन की देन है । इतिहास में भी औपनिवेशिक शासन के दौरान ही मधेशकी भूमि का विधिवत विभाजन हुआ है। ब्रिटिश शासकों ने अपनी आवश्यकता और सुविधा अनुसार मधेश के एक भागको ब्रिटिश भारत में रखा और दुसरे भागको नेपाल में जोड दिया गया । इस्ट इंडिया कम्पनी नेपालको मधेश का और भी भुभाग देने के लिए तैयार थे और मधेश के भुमिपति सशंकित तो थे लेकिन प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन से अलग होने  की भी उनकी चाहना थी क्यों कि ब्रिटिश पुंंजीवादी व्यवस्था तहत सामंतवादको कमजोर कर जनता से कर उठाने के लिए राज्य की अलग संरचना भी तैयार कर रहे थे । सन् १८१६ की संधि से  ही मधेश का विभाजन हुआ है ।  

नेपाल के अन्दर मधेश की स्वयतत्ता की मांग तराई कांग्रेस की स्थापना वि सं २००८ में की गयी थी, । सिरहा के वेदानन्द झा उसके अध्यक्ष थे । २०१५ साल के च’नाव में उनको सफलता नहीं मिली थ ीऔर उन्होंने आन्दोलनको निरन्तरता भी नहीं दी और बाद में वे  पंचायती व्यवस्था से मिल गये । मधेश की भाषा, शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति को सबसे ज्यादा क्षति पंचायती व्यवस्था ने पहुँंचायी । उसी पंचायती काल में  कांग्रेस में रहते हुए भी विसं २०३९ में स्वर्गीय गजेन्द्र नारायण सिंह ने सदभावना परिषद का गठन कर संघीयता, स्वायत्त मधेश , समान नागरिक अधिकार और हिंदी भाषा की मान्यता के लिए आन्दोलन शुरु किया । २०४६ साल में नेपाल सद्भावना पार्टी का जन्म हुआ । मैंने सद्भावना में प्रवेश कर मधेश की राजनीति के लिए काम करना शुरु किया। मैं गजेन्द्र बाबु से हमेशा प्रश्न करती थी कि बहुत सारी परिस्थितियों के अनुकूल होने के बावजुद भी मधेश को अपना लअधिकार और लक्ष्य क्यों नहीं मिला । उनके पास स्पष्ट उत्तर नहीं होता था लेकिनविभेदका अन्त करने के लिए  वे आज के नेताओ. से संघीय संरचना के बारे  मे ज्यादा स्पष्ट और संतुलित थे । उन्होंने  मधेश में २ , पहाड में २ और काठमांडौ और अगल बगल के क्षेत्रको मिलाकर नेपाल में पाँच प्रदेश की अवधारणा को आगे बढाया था । आज की अवस्था उससे बहुत अलग है । देश में कुल ७ प्रदेश हैं, मधेश ५ हिस्सों में विभाजित है और मधेश आठ जिला में सीमित है । इस संरचना तहत मधेश और भी कमजोर हुआ है । ८ जिलों का मधेश प्रदेश सबसे ज्यादा गरीब है और शोषण के अलग अलग तरीकों से वहाँ की आम जनता पीडित और असुरक्षित है । आज मीटरब्याजीे पीडित जनता को देख कर हम सब इतना तो समझ ही गए हैं कि  सामंतवाद किस तरह से नये रुपको लेकर मधेश में अवतरित हुआ है । सभी प्रकार के शोषण का आधार संरचनात्मक है । जब तक संरचना में सुधार नहीं होगा तब तक मधेश में रुपान्तरण सम्भव नहीं है। 

विभेद का अँत करने के लिए जब संरचनात्मक परिवत्र्तन की बात की तो बहुत लोगों को असहज लगा ।  मैंने संसद में १८१६ की संधि के अनुसार विभेद का अन्त करने के लिए संरचनात्मक  सुधार की मांग की थी और जनता समाजवादी पार्टी ने शासक वर्ग के दबाव में आकर मुझे संसद से निकाला । मेरी आवाज क्रांतिकारी है और इसका आधार ऐतिहासिक है । इसीलिए मेरी आवाज को संसद से गायब कर दिया गया । शोषितों को क्रांति की बात करने की भी छुट नहीं होती है, आपने पुरे मधेश को यही संदेश दिया । आप शोषित हैं और बंदूक  उठाना चाहते हैं तो आप मालिकके नियन्त्रण में रहकर कर सकते हैं। लेकिन स्वतन्त्र लोगों के लिए  तो बोलना भी वर्जित है । अब जसपा से मेरा प्रश्न है कि आपने मुझको संसद से हटा कर मधेश के लिए हासिल क्या किया ? 

मैं यह दावे के साथ कहती हुँ कि अगर १८१६ की संधि से जसपा ने  अपना पल्ला छुडाया है तब जसपा ले मधेशियों को नेपाल में शरणार्थी बना दिया है । क्या मधेशी नेपाल में शरणार्थी हैं ? हर्क गुरुंग के आन्तरिक आप्रवासन के प्रतिवेदन के विरोध में सद्भावना परिषद का गठन हुआ था क्योंकि उस प्रतिवेदन ने मधेशियों को शरणार्थी घोषित करने की कोशिश की थी ।  बारा में उपचुनाव लड रहे उपेन्द्र जी  से यही कहना चाहती हुँ ंकि आपने संसद से मेरी आवाज को लापता कर मधेशियों को शरणार्थी का दर्जा दिया है । सारे विश्व में उपनिवेशवाद लगभग समाप्त हो गया है लेकिन नेपाल में आपने उपनिवेशवाद को जिंदा रखा है । दक्षिण अफ्रीका आजाद हो गया है । दक्षिण एशिया में भारत पहले ही आजाद हो गया है लेकिन आप मधेश में औपनिवेशिक शासन को निरन्तरता देने के लिए कार्य कर रहे हैं । 

आप संसदीय उपचुनाव लड रहे हैं । मधेश और मधेशी नेपाल का भाग कैसे हुआ है और आज भी वह क्यों शोषित और पीडित है , इसका कारण आप जनता को स्पष्ट रुप से बताएँ और बताएँ कि समस्या के समाधान के लिए आपका दृष्टिकोण क्या है ?  

सरिता गिरी 

२।१।२०८०


Comments

Popular posts from this blog

बीनु यादव को कथा

 यो बीनु यादव को कथा हो । कथा त होईन , यथार्थ हो तर राज्यका लागि यो कथा जस्तै हो जस्तो लाग्छ । अनि त राज्य रमाई रहेको छ । उनी लगभग १० दिन देखि न्याय का लागि माइती घर मंडालामा अनशन मा बसेकी छिन । पाँच वर्ष देखि उनी न्यााय का लागि परीक्षा दिई रहे की छिन, संघर्ष मात्र गरी रहेकी छैनन । कहिले विष सेवन गरी त कहिले अदालत समक्ष आफ्नो जीवमा रातो रंग छरी त कहिले अनशन मा बसी उनको संघर्ष जारी रहेको छ । योृ त सार्वजनिक भएकाकेही  ठुला घटनाहरु हुन । त्यस बाहेक हरेक दिन समाजको कठोर आँखा समक्ष विभेदकारी राज्यको अदालत र प्रहरी कार्यालय दौडदै हरेक पल उनी माथि के बीतेको होला , त्यस बारे सबैले अनुमान पनि गर्न सक्दैनन । उनी अहिले फेरी  गहिरो पीडा र परीक्षा बाट  गुज्री रहेकी छिन र अनशन स्थलमानै आत्म दाहको कुरा पनि गरी रहे की छिन। सार्वजनिक रुपमा कुनै महिलाले आत्मदाहको कुरा गर्न थाले पछि पनि राज्य निर्मम भई हेरी रहेको छ।   उनको कथा प्रष्ट उदाहरण छ कि एक जना महिला लाई प्रेमको नाटक गरी कसरी शोषण र तिरस्कारको दुक्ष्छक्रमा फंसाउन सकिन्छ । एक जना पुरुषले दुई वर्ष पुरानो मित्रताको बीचमा बलात्कार गर्यो  र उनी प्रहरी

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

राष्ट्रपतिको दायित्वः पुनर्निर्माण वा विनिर्माण

राष्ट्रपतिको दायित्वः  पुनर्निर्माण वा विनिर्माण ( राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्टप्रमुख बनेका छन।अहिले राष्ट्रपतिज्यूले हतारमा उठाएको आफ्नो कदमले गर्दा अपठ्यारोमा परी सक्नु भएको छ । वहाँ त्यस बाट आफू कसरी निस्कनु हुन्छ वा देशलाई निकास दिनका लागि कसरी अगाडी बढनु हुन्छ ? सर्वाधिक महत्वको विषय हुन पुगेकोछ । वहाँको कदमले प्रमाणित गर्नेछ, वहाँँ राजा जस्तो बन्दी हुनु हुन्छ वा कानूनको अधिनमा रही स्वयं पनि स्वतन्त्र हुनुहुन्छ र सबैको स्वतंत्रता सुरक्षित राख्नुहुन्छ । वहाँको कदमले दर्शाउनेछ कि वहाँ हिजो को नेपाल को विनिर्माण गरी नया नेपालको निर्माणका लागि मार्ग प्रशस्त गर्नु हुनेछ वा हिजोकै नेपालको पुनस्र्थापनामा लाग्नुहनेछ । पुननिर्माणले मुलुक लाई यथास्थितिवाद तिर धकेल्छ भने विनिर्माणले जनताले अपेक्षागरेको नया नेपालको निर्माणको जग बसाल्छ।)  राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्ट्रप्रमुख बनेका छन। विजीतहरुको मुलुक (एयककभककष्यल)लाई सबैको देश (अयगलतचथ) बनाउन्को बीडा राष्ट्रपतिज्यूले थाम्नु भएकोछ र त्यो काम आफूमा स्यानो र सजिलो काम