Skip to main content

Madhesh Swa- Nirman Yatra-मधेश स्वनिर्माण यात्रा

   
मधेश स्वनिर्माण यात्रा


(इसी मंसीर  १ गते गी्रन अलायंस के युवाओं ने सरलाही के बलरा से लेकर रौतहट के गरुडा तक मधेश स्वनिर्माण यात्रा का आयोजन किया। उस यात्रा के दौरान बागमती नदी को नाव पर पार करना पडा । सैयों लोग हरेक  दिन अपने विभिन्न कार्यो के लिए बागमती वैसे ही पार करते हैं । इस बरसात में बागमती में ऐसी ही यात्रा के दोरान नाव उलट गयी थी और लगभग १८ लोगों की मौत हो गयी थी। मरने वालों मे से अधिकांश महिलाएँ और बच्चे थे । यात्रा के दौरान तीन जगहों पर  गा्रमीण जनता को सम्बोधित करने का और उनको ुनने का अवसर भी मिला । इस यात्रा में सहभागी होने का अवसर मुझे उपलब्ध कराने के लिए  गी्रन अलायन्स को पुनः धन्यबाद देते हुए यात्रा के दौरान दिए गए भाषण के महत्पपूर्ण अंशो को यहाँ प्रस्तुत करती हूँ ।) 

गी्रन अलायंस के आयोजन में  मोहन सिंह एवं गोंविंद साह जैसे प्रतिभाशील एवं होनहार  मधेशी युवाओं ने मधेश स्वनिर्माण के अभियान का  सूत्रपात किया है । यह शुरुवात   मधेश निर्माण   के लिए एक नये अध्याय की शुरुवात हो सकती है ।  एक तरफ यह यात्रा मधेश विकास के लिए मधेशी युवाओं की उर्जा और कल्पनाशीलता का सृजनात्मक उपयोग करने का कार्यक्षेत्र बन सकता है तो दूसरी तरफ मधेशी राष्टवाद ं को नई उँचाइयों तक ले जाने के लिए एक महत्वपूर्ण अभियान बन सकता है। यह अभियान युवा नेतृत्व के विकास का माध्यम भी बन सकता है। निश्चित रुप से यह एक नये सामाजिक आंदोलन की शुरुवात है लेकिन कई मायनों में यह राजनीतिक भी है क्योंकि यह परिवत्र्तन की आकांक्षा से भरा है । यह उन मधेशी युवाओं के खोज एवं आकांक्षा का परिणाम है जिन्होंने जन आंदोलन एवं मधेश आंदोलन ं से एक  नयी शक्ति और पहचान  तो ग्रहण किया है लेकिन उस शक्ति एवं पहचान का प्रयोग कर अब आगे का रास्ता बनाना चाहते हैं । यदि यह अभियान सही रास्ते पर रहा तो नेपाल में मजबूत संघीयता और शक्तिशाली मधेश के निर्माण के लिए नयी उर्जा दे सकता है ।  उनके प्रयास प्रति अपना समर्थन जताने के लिए मैं इस यात्रा में सहभागी हुई हूँ।  

ग्रीन अलायंस ने राजनीतिज्ञों को भी आमंत्रित किया है। निश्चित रुप से समाज के रुपान्तरण के लिए सामाजिक आंदोलन एवं राजनीति के बीच संवाद एवं  अंर्तसम्बन्ध की आवश्यकता को  युवा स्वीकार करते हैं ।  लेकिन मधेश के भविष्य का खाका तैयार करने के लिए इतिहास को भी समझना होगा । २००७ साल में मधेशी नेताओं ने राणाओं के शासन के अंत के लिए बंदूक उठाकर क्रांति की । राणाओं के शासन का तो अंत हुआ लेकिन उनके लिए दासता के एक नये युग का प्रारम्भ हुआ । तब २००८ साल में मधेश एवं मधेशी के अस्तित्व, पहचान, गौरव एवं अधिकार के लिए तराई कांग्रेस की स्थापना कर एक पृथक राजनीतक आंदोलन की शुरुवात हुई। वहाँ से जो यात्रा प्रारम्भ हुई, उसी की परिणति है इक्कीसवीं शताब्दी में वर्ष २०६२ –६३ में हुआ ऐतिहासिक मधेश आंदोलन । २०४६ साल से उस आंदोलन का बीडा  नेपाल सदभावना पार्टी ने थामा और २०६३ साल में हुए मधेश आंदोलन की जमीन को तैयार किया । ६३ साल के मधेश आंदोलन की ताकत से तो बहुत सारी मधेशवादी पार्टियों का जन्म हुआ ।   

संविधान सभा में जब मधेशी दल एक नयी ताकत के साथ  पहुँचे थे तो लगा था कि आधी लडाई मधेशं ने जीत ली है और नये संघीय संविधान के जारी होने के साथ ही हम पूरी लडाई जीत लेंगे । लेकिन ऐसा हुआ नहीं । सभी मधेशी दल विभाजित होते गये । कांग्रेस एमाले जैसे दलों ने राज्य की शक्ति का प्रयोग कर  सद्भावना –आनन्दी देवी  को समाप्त करने की एक भी कसर बाँकी नही रखी । लेकिन ज्येष्ठ १४ को संघीय संविधान बनाए बिना संविधान सभा विघटित हो गया और देश मे संविधान विहिनता की स्थिति पैदा हो गयी है और मधेश आंदोलन सिंह दरबार की सरकार का बंदी बन कर रह गया है । आंदोलन का लक्ष्य हासिल होने के पहले ही धूमिल हो गया है । मधेशियों, दलितों और महिलाओं के प्रति विभेद और भी सख्त हो चुका है । समावेशी विधेयक पारित हुए बिना संविधान सभा की हत्या कर दी गयी । यह विडम्बना ही है कि संविधान सभा की कब्र तक ंपहुँचाने में मधेशी मोर्चा भी सहयोगी बना । सरकार के निर्णय के अनुसार मंसीर ७ गते संविधान सभा का निर्वाचन भी नहीं होने जा रहा है। यह सब अंतरिम संविधान को खत्म करने के लिए नियोजित षडयन्त्र के तहत हो रहा है । मैं एैसा मानती हूँ कि यदि मधेशी मोर्चा ने ज्येष्ठ १४ के दिन प्रधानमंत्री को नये चुनाव के घोषणा करने में साथ नही दिया होता तो संविधान सभा विघटित नहीं होता । किसी न किसी प्रकार का एक चरण के लिए और समझौता होता और तब संविधान जारी होता । 

मंसीर ७ गते के बाद  मधेश एक नाजुक दौर में प्रवेश करने जा रहा है । केन्द्र की राजनीति मधेश के पक्ष मे नहीं है और देश में निरंकुशता का नया अध्याय मधेश को पहले के जैसा ही कब्जे मे लेने के लिए प्रारम्भ होने जा रहा है । इस अभियान में तीनो प्रमुख दल एकमत हंै और इन चुनौतियों के बीच में मधेश को अपना रास्ता तयकरना है ।  मधेश को पुनः कब्जा करने के लिए ही संविधान सभा को भंग कराया गया । लेकिन एैसा सिर्फ जातीय स्वार्थ के तहत नहीं किया गया। यह मुलतः राजनीति, प्रशासन एवं व्यापार के क्षेत्र मे हावी  कुलीन वर्ग के स्वार्थों की रक्षा के लिए किया गया है । संविधान सभा को मूलतः कुलिनों ने उस समय भंग कराया जब दो तिहाई से भी ज्यादा अन्य वर्गो लेकिन सभी समुदायों के सभासदों ने संघीय संविधान के सम्बन्ध में अपना समर्थन स्पष्ट कर दिया था। संविधान सभा सदस्य आम जनता के हित में संघर्ष के लिए तैयार हो थे और जब इसकी जानकारी कुलीन नेतृत्व वर्ग को हुई तो संविधान सभा की बैठक ही नहीं बिठाई गई । जब संघीय संरचना और समावेशी संविधान के समर्थन में मधेशी, खस, आदिवासी जनजाति,मुस्लिम, महिला सभी एक साझा दृष्टिकोण बनाकर सहकार्य के लिए तैयार थे तब सडकों पर समुदायों के नेताओं को एक दूसरे के विरुद्ध उतारा गया । यह  संविधान सभा को विफल बनाने के लिए शासक वर्ग का एक गहरा षडयन्त्र था और इसकी तैयारी लम्बे समय से की जा रही थी ।   इन सबसे हमको सीख लेनी होगी । 

संविधान सभा बहुत हद तक समावेशी था लेकिन प्रशासन तंत्र, न्यायतंत्र एवं सुरक्षातंत्र, जिनको नेपाल में  स्थायी सरकार माना जाता है, अभी समावेशी नही थे । इन तंत्रों को समावेशी बनाने की प्रक्रिया आगे बढ रही थी कि समावेशी राजनीति की हत्या कर दी गयी । पार्टी के नेताओं के लिए अपने ही ६०१ सभासद इसलिए  भारी बन गये क्यों कि वे  पार्टी के हाई कमान से ज्यादा आम जनता की भाषा बोलने लगे थे ।  जनता में ६०१ सभासदों के विरुद्ध पैसे वालों के संचार माध्यम से प्रचारबाजी की गयी । सभासदों को देश के लिए आर्थिक बोझ बताया गया । यह सब लोकतंत्र के विरुद्ध भयानक षडयन्त्र था और एक  नचबलम मभकष्नल के तहत ज्येष्ठ १४ को लोकतंत्र की हत्या कर दी गयी । आज पुनः प्रशासन तंत्र, सुरक्षातंत्र, पार्टी तंत्र लगायत सभी तंत्रों में पर  कुलीन शासक वर्ग हावी है । यह कुलीन तंत्र महिलाओं और दलितों के भी खिलाफ है । 

आज मैं सिर्फ मधेशी और पहाडी की बात नही कर रहीं हूँ । संविधान सभा के अंतिम दिनों का मेरा अनुभव यह बतलाता है कि परिवत्र्तन के लिए अब सिर्फ सामुदायिक  हित की बात करना पर्याप्त नहीं है । अब समुदायिक स्वार्थ  के साथ साथ  वर्गीय स्वार्थ की  भी बात करनी होगी । अब आम जनता के हित  की बातं करनी होगी । वर्गीय और लैंगिक हित के लिए अपने  समुदाय  की परिधि को पार कर अन्य समुदाय के समान वर्गीय दृष्टिकाण के लोगों से भी सम्बन्ध कायम करना होगा । जबतक आम जनता की राजनीति आगे नही बढेगी तबतक लोकतंत्र सुरक्षित और संस्थागत नहीं होगा। 

देश आज भ्रष्टाचार मे डूबा हुआ है । नये संविधान सभा के निर्वाचन के निर्णय के पीछे भी भ्रष्टाचार एक प्रमुख कारण है । संविधान निर्माण के नाम पर लगभग तीस अरब रुपये खर्च हुए ं जिनमें से सिर्फ नौ अरब रुपये ६०१ सदस्यों के संविधान सभा पर खर्च हुआ है । बाकी सारे पैसे बाहर खर्च हुए हैं। २१ अरब रुपये कैसे और कहाँ खर्च हुए, इसके बारे में सभासदों को कोई जानकारी नहीं है ।  हमारे नाम पर आए सहयोग को खर्च करने के बारे में नीति बनाने  का अधिकार हम सभासदों को कभी नहीं रहा। फिर से संविधान सभा का निर्माण होगा तो सहयोग फिर आएंगा और फिर उसका दुरुपयोग होगा । 

गी्रन अलायंस ने अपने लेखन में जिस भ्रष्टाचार एवं विभेद की बात उठायी है, उसका मूल उपर का वह केंद्रीकृत शासन है जो परम्परागत कुलीन वर्ग के न्यिन्त्रण में है । आप जमीन पर जिस भ्रष्टाचार का सामना हरेक दिन कर रहे हैं, वह विशद भ्रष्टाचार का बहुत न्यून अंश है । जब उपर भ्रष्टाचार संरक्षित है तो नीचे तो वह मौलाएगा ही  और तब विकास अवरुद्ध होगा । भ्रष्टाचार तीन  कारणों से मौलाता है, एक अभाव के कारण से, दूसरा संस्कृति के कारण से और तीसरा शोषण के कारण से ।  नेपाल में भ्रष्टाचार के तीनोंं ही कारण मौजूद हैं । मधेशी का शोषण करना है तो उसको भ्रष्टाचार में डूबा कर रखना होगा, यह शासक वर्ग जानता है ।  इसको अगर रोकना है तो आम जनता की राजनीति को आगे बढाना होगा । नागरिक समाज, महिलाओं, युवाओं को सजग होना होगा। साथ ही  भ्रष्टाचार और अविकास  के परस्पर परिपूरक अन्र्तसम्बन्ध क बारे मे जनता को शिक्षित करना होगा । इसके लिए मधेश स्वनिर्माण जैसै अभियानों की आवश्यकता है ।

अभी हाल ही में संयुक्त राष्टसंघ का नेपाल में विकास की अवस्था के बारे मे. एक प्रतिवेदन निकला है जिसमें कर्णाली के हिमाली जिलों के अलावा पूर्वी मधेश के अधिकांश जिल्लो को अचष्तष्अब ि जिल्ला की श्रेणी में रखा गया है। पूर्वी  मधेश में हुए तीव्र मधेश आंदोलन का अभी पर्याप्त विश्लेषण हुआ ही नहीं है । यह सिर्फ पहिचान का आंदोलन नहीं था , यह गरीबी, बेरोजगारी और अभाव के विरुद्ध का आंदोलन था ।  मधेश में स.भावनाओं के बावजूद सरकार पर्याप्त लगानी नहीं करना चाहती है । मधेश का विकास होने पर मधेश की राजनीतिक शक्ति बढेगी और शासक वर्ग उसके खिलाफ में है । मधेश में खेत तो है लेकिन सिंचाई के लिए पानी नहीं है, खाद नहीं है, खेतों मे काम करने के लिए श्रमिक नहीं ंहैं । कृषि यंत्रो पर इतना ज्यादा कर लगा दिया गया है कि वह आम किसानों के पहुँच के बाहर है । 

अरब की रेगिस्तानी भुमि में चिलचिलाती  धूप के नीचे अपने श्रम को बेचने के लिए मधेशी युवा बाध्य हैं । अरब के मुल्क अपने तेल बेच कर तीव्र विकास कर रहे हैं । यहाँ पर हम पानी रहते हुए भी बिजली नही बनाना चाहते हैं। आखिर क्यों ? आज हम श्रम का  सदुपयोग देश के विकास के लिए नहीं करना चाहते है, आखिर क्यों ?ं   माओवादीयों के नेतूत्व में गरीबों ने बंदूक उठाकर पूंजीवाद और सामा्रज्यवाद के विरुद्ध लडा और प्राणों  की आहुति दी लेकिन आज प्रधानमंत्री बाबुराम भटराई श्रमिको को विदेश भेज रहे हैं और पुंजीवादीयों के  वैदेशिक लगाानी का इंतजार कर रहे हैं । देश की आम जनता का शोषण करने के लिए उनपर करों का बोझ बढाने की योजना बना रहे है । ं । वे कह रहे हैं कि दो संख्या की विकास दर के लिए करों का दायरा और दर बढाना आवश्यक है । उनकी रुचि ऐसे महंगे विकास परियोजनाओं मे है जिससे आम जनत का हित नहीं होने वाला है और जिससे आम जनता की उत्पादन क्षमता बढने वाली नहीं है । 

अपने श्रमिकों को और  महिलाओं को  श्रम करने के लिए असुरक्षित तवर से अरब देशों में भेजा जा रहा है । पिछले अठारह महीनों मे ८० महिलाओं ने अरब देशों मे आत्महत्या की है । हरेक दिन औसताना ३ श्रमिक अरब देशों में असमय मर रहे है। श्रम मंत्रालय श्रमिकों को ठगने के लिए और उनके शोषण के लिए बित्र्ता मंत्रालय बन गया है। घर से निकल कर विदेश तक पहुँचने में श्रमिकों को अनेकों. बार ठगी का शिकार होना पडता है। श्रमिकों की कमाई पर देश की अर्थ व्यवस्था टिकी है लेकिन सरकार उनकी सुरक्षा और सुविधा के लिए कुछ करना नही चाहती है। २०३८ साल से श्रमिक राज्य के मार्फत बाहर जा रहे हैं लेकिन यह क्षेत्र आज भी उतना ही अव्यवस्थित है । श्रमिकों को  विदेश जाने के लिए सस्ते दरों पर बैंको से ऋण उपलब्ध नहीं कराया जाता है । उनसे गैरकानूनी खर्च कराया जाता है । अपनी जमीन जायदाद को बंधक रखकर ३० से  ६० प्रतिशत ब्याज दर पर  साहुकार से ऋण लेकर जाने वाला श्रमिक बेरोजगारी,  ठगी और ऋण के कारण अपनी इच्छाओं के विपरीत भी विदेश में काम करने के लिए बाध्य है। वैदेशिक  रोजगार के इर्द गिर्द बहुत सारे स्वार्थ जमा हो चुके हैं भ्रष्टाचार और ठगी से कमाया हुआ बहुत काला धन इसमें है वह श्रमिकों के धन और श्रम के शोषण पर आधारित है ।

इस देश की बडी पार्टियों का पार्टी तंत्र भी  श्रमिकों की खून पसीने की कमाई पर टिका है । मैने सुधार करने की कोशिश की लेकिन मुझको झूठे आरोप लगाकर फेंका गया। नीतिगत एवं संस्थागत सुधार करने के लिए मेरे टेबुल पर सात आठ फाइल तैयार थे और ऐन मौकै पर मुझको हटाया गया । श्रमिकों तथा बहु बेटियों को बेचकर कमाया हुए काला धन की लगानी कांतिपुर जैसे मिडिया हाउस में की जा रही है और वह काला धन समय समय पर काली बोली  बोलता है । 

जहाँ तक मधेश मे शांति सुरक्षा का सवाल है , मधेश से एक बार फिर बेईमानी हुई है। दलों के बीच शांति समझौता होने के बावजूद भी माओवादी के मधेशी मुक्ति मोर्चा में विभाजन के कारण से  मधेश में एक नये सिरे से सशस्त्र द्वन्द की शुरुवात हुई । शांति प्रक्रिया एवं सेना एकीकरण की प्रक्रिया से मधेश के लडाकू युवाओं को वंचित कर लिया गया । आज उनके पास तीन  ही विकल्प हैं , या तो वे अपराधी बन कर रहें या फिर देश छोडे , या फिर एनकाउंटर में मरें । 

शांति समझौतों के बाद मधेश में सबसे ज्यादा गैर नागरिक हत्याएँ हुई हैं । मधेश के सशस्त्र समूहों से वात्र्ता नही , वात्र्ता की राजनीति की जा रही है। वात्र्ता के निष्कर्ष में नहीं पहुँचने के कारण आज भी सैकडों युवा जेल में बंद हैं । लगभग  दो से तीन हजार की संख्या मे सशस्त्र समूह से आबद्ध मधेशी युवा घोर असुरक्षा में सीमावत्र्ती क्षेत्रों मे भटक रहे हैं । उनमें असुरक्षा और भय का वातावरण बनाये रखने के लिए सरकार ने मधेश में विशेष सुरक्षा नीति तहत एनकाउंटर नीति जारी रखी है । उनको शांति प्रक्रिया में प्रवेश कराकर  आम नागरिक का जीवन यापन करने का अवसर सरकार नही देना चाहती है क्योंकि  अपना शासन कायम रखने के लिए बंदूक का भय कायम कर मधेशी के दमन की आवश्यकता शासक वर्ग मधेश में आज भी है । सरकार में ४८ प्रतिशत मंत्री पद मधेशियों के हिस्से मे आने के बाद भी मधेश में सामान्य शांति की अवस्था नहीं है ।

मधेश आंदोलन के बाद मधेशी मोर्चा के साथ हुए ८ बूंदे सहमति में  मधेश आंदोलन को जन आंदोलन का भाग माना गया है लेकिन  सत्य निरुपण तथा मेल मिलाप और बेपत्ता व्यक्ति के बारे में आयोग बनने सम्बन्धी विधेयक मे मधेश द्वन्द को शामिल नही किया गया । विधेयक जब विधायन समिति में पहुँचा तब मैंने बात उठायी कि मधेश आंदोलन की अवधि को भी विधेयक में समेटा जाये । लेकिन इससे मधेश आंदोलन का अंतराष्टियकरण होता, जो कि शासक वर्ग नहीं चाहता है ।   इसीलिए विधेयक को पुनः उप समिति में विचारार्थ भेज   दिया गया  और उसके बाद संविधान सभा ही भंग हो गया । अभी मधेशी मोर्चा सहित की सरकार ने राष्ट्र«पति समक्ष आयोग के लिए अध्यादेश पेश किया है लेकिन उसमें भी मधेश द्वन्द से पीडित लोगों के विषय  को नहीं समेटा गया है अर्थात मधेश द्वन्द से पीडित लोगों को सत्य निरुपण, मेलमिलाप तथा बेपत्ता व्यक्ति सम्बन्धी आयोग के गठन से कोई लाभ नहीं पहुँचेगा ।

इसी तरह से विकास के पूर्वाधार निर्माण को सरकार ने प्राथमिकता दी है लेकिन सरकार कैसी परियोजनाओ को महत्व दे रही है, इस पर ध्यान रखना महत्वपूर्ण है । जहाँ लगानी लगाने से उत्पादन और आर्थिक गतिविधि बढेगी , वहाँ सरकार ध्यान नहीं दे रही है । मधेश के गाँवों में जितनी कृषि सडके बननी चाहिए उतनी सडकें नही बन रहीं है । राष्ट्रिय गौरव के नाम पर बडी बडी और अत्यन्त मंहगी सडको पर जो लगानी लगायी जा रही हैं, वह शहरमुखी हैं ंऔर कमीशनमुखी है । लगानी  ऐसी  महंगी  सडकों पर की जा रही है जिससे आम जनता नहीं बल्कि कुलीन शासन और प्रशासन तंत्र घनाढ्रय होगा । जितने खर्च में एक सुरुंग सडक का निर्माण हो रहा है उतने मे सतह पर  तीन बडी सडकों का निर्माण होगा और उससे बडी संख्या में जनता लाभान्वित होती लेकिन इस देश का विकास तंत्र जनता मुखी और मधेश मुखी है ही नहीं ।  अतः मधेश स्वनिर्माण यात्रा इन विषयों पर सामाजिक संवाद चलाए, लोगो को जागरुक और सचेत बनावे तथा ज्यादा से ज्यादा  युवाओं को अपने से जाडने में सफल होवे और मधेश को लोकंतंत्र एवं विकास के लिए सक्षम बनावे, यह मेरी हार्दिक  शुभकामना है । सरलाही के बलरा से लेकर रौतहद के गरुडा तक की यात्रा में शामिल होने के लिए मुझको निमंत्रण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद । मधेश स्वनिर्माण यात्रा मधेश के आत्म निर्माण के  अभियान में सफल रहे ।
जय मातृभूमि  ं 
********************************************************************************
नेपाली तिथि२०६९।८।२

Comments

Popular posts from this blog

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

राष्ट्रपतिको दायित्वः पुनर्निर्माण वा विनिर्माण

राष्ट्रपतिको दायित्वः  पुनर्निर्माण वा विनिर्माण ( राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्टप्रमुख बनेका छन।अहिले राष्ट्रपतिज्यूले हतारमा उठाएको आफ्नो कदमले गर्दा अपठ्यारोमा परी सक्नु भएको छ । वहाँ त्यस बाट आफू कसरी निस्कनु हुन्छ वा देशलाई निकास दिनका लागि कसरी अगाडी बढनु हुन्छ ? सर्वाधिक महत्वको विषय हुन पुगेकोछ । वहाँको कदमले प्रमाणित गर्नेछ, वहाँँ राजा जस्तो बन्दी हुनु हुन्छ वा कानूनको अधिनमा रही स्वयं पनि स्वतन्त्र हुनुहुन्छ र सबैको स्वतंत्रता सुरक्षित राख्नुहुन्छ । वहाँको कदमले दर्शाउनेछ कि वहाँ हिजो को नेपाल को विनिर्माण गरी नया नेपालको निर्माणका लागि मार्ग प्रशस्त गर्नु हुनेछ वा हिजोकै नेपालको पुनस्र्थापनामा लाग्नुहनेछ । पुननिर्माणले मुलुक लाई यथास्थितिवाद तिर धकेल्छ भने विनिर्माणले जनताले अपेक्षागरेको नया नेपालको निर्माणको जग बसाल्छ।)  राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्ट्रप्रमुख बनेका छन। विजीतहरुको मुलुक (एयककभककष्यल)लाई सबैको देश (अयगलतचथ) बनाउन्को बीडा राष्ट्रपतिज्यूले थाम्नु भएकोछ र त्यो काम आफूमा स्यानो र सजिलो काम

विदेशमा महिला कामदार- उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति

अन्नुपुर्ण पोष्ट २०६९ साउन २९ गते, AUGUST 13, 2012,MOONDAY मा प्रकाशित लेख  खाडी मुलुकमा नेपाली महिलाका लागि रोजगारको पर्याप्त अवसर छ, तर घरेलु कामदारको सुरक्षित र मर्यादित रोजगारका लागि सम्झौता गरी पठाउने व्यवस्था नगरी उनीहरु लाई रोक्नु धेरैका लागि रोचक र लाभदायी अर्थराजनीति हुन सक्दछ।   विदेशमा महिला कामदार-उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति   - सरिता गिरी          घरेलु कामदार भई वैदेशिक रोजगारका लागि जान खोज्ने नेपाली महिलाको उमेर हद ३० वर्ष तोक्ने नेपाल सरकारको १० बुँदे निर्णय महिला समानता र स्वतंत्रता को अधिकारमाथि ठाडो आक्रमण हो । माओवादी दल जसले हिजो कम्यूनिष्ट क्रान्ति र महिला उन्मुक्तिको नारा दिई उनीहरुलाई बन्दूक बोकेर सशस्त्र हिसां गर्न सिकायो, सत्तामा गएपश्चात् उसले तिनैमािथ बुर्जुवाबादी, सामन्तवादी र पितृसतावादी नीति कसरी अख्तियार गर्नपर्याे, सरकारको यो निर्णय अन्तिरम संविधान र वैदेशिक रोजगार ऐन २०६४ विपरीत छ । तर कानूनभंदा पनि आदेश र निर्देशनको आधारमा शासन चलाउने परम्पराको जरो नेपालमा गहिरो रहेको छ । दिनै पछि बाँच्नका लागि संघर्ष गरीरहेको समान्य जनता र वैदे