Skip to main content

नेपाल की बदलती विदेश नीतिः मधेश की आँखों में

नेपाल की बदलती विदेश नीतिः मधेश की आँखों में  
भाग १
कोरोना भायरस की महामारी के दौरान जब देशों के बीच हवाई यात्रा  सुचारु नहीं है तब भारत और चीन दोनों पडोसी देशों से एक बार भी औपचारिक वात्र्ता किये बिना जिस तीव्र गति से नेपाल का नक्शा बदलने के लिए  संसद में संविधान की अनुसूचि ३ के संशोधन का प्रस्ताव  सरकार ने दर्ज कराया है, उसे सहज रुप में स्वीकर करना कठिन है । सरकार के इस कदम से देश का सम्बन्ध किस तरह से दोनों मित्र देशों के साथ के सम्बन्ध को प्रभावित करेगा , सरकार ने इस बात का आकलन नहीं किया । सरकार ने देश की अन्य राजनीतिक दलों को भी संसद में विधेयक दर्ज कराने के पहले उन तथ्यों एवं प्रमाणों की प्रति को उपलब्ध  कराकर उनके साथ निश्चित साझा निष्कर्ष पर पहँचने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया । प्रश्न यह उठता है कि आज ऐसी कौन सी परिस्थिति अचानक सामने आ गयी जिसके कारण संसद में नक्शा संशोधन के लिए प्रस्ताव ही दत्र्ता कराना पडा । क्यों सरकार लाकडाउन के खत्म होने तक के समय का भी  इंतजार नही कर पाई ।  लिम्पियाधुरा के बारे में प्रधानमंत्री लगभग दो सप्ताह पहले यह कह रहे थे कि उनकी जानकारी में लिम्पियाधुरा कभी भी नेपाल के नक्शे में नहीं था । उनकी मंत्री पद्मा अर्याल ने भी यही बात संसद की अन्तराष्ट्रिय सम्बन्ध समिति और मिडिया में बार बार कहा था कि उन्होंने भी लिम्पियाधुरा सहित का नेपाल का नक्शा कभी भी नहीं देखा है ।  जब सरकार की नीति और कार्यबक्रम में नये नक्शे की बात आयी तब संसद में बहस हुई और उस बहस में भाग लेते हुए मैने भी कहा कि जब दोनों मित्र देशो के साथ सीमा परिवत्र्तित होने जा रहा है तब सामान्य कुटनीति का भी तकाजा बनता है कि सरकार कम से कम एक बार दोनों मित्र देशों के साथ संवाद करे । लेकिन सरकार ने संसद में उठी बातों को अनसुनी करते हुए  चीन और भारत के साथ अपनी सीमा को परिवत्र्तित करते हुए नये नक्शे को स्वीकृति दे  दी । चीन और भारत दोनो देशों के द्वारा वक्तव्य जारी किया गया । चीन ने बेजिंग में नेपाल के राजदूत को बुला कर कुटनीतिक नोट थमा दिया जिसमें दो बातें महत्वपूर्ण बातें आयी हैं । पहली बात यह है कि कालापानी और सुस्ता को लेकर  भारत के साथ नेपाल के सीमा विवाद का  विषय द्विपक्षीय और नेपाल तथा भारत इसे परस्पर वात्र्ता के द्वारा हल करें । लिम्पियाधुरा अथवा लिपुलेक के विषय में चीन मौन रहा और बस इतना ही कहा कि तीन देशों की सीमा को छुने वाले भाग के बारे में कोई देश एक पक्षीय ढंग से कुछ भी नहीं करे । डिप्लोमैटिक नोट नेपाल के राजदूत को बेजिंग में दिया गया है , इससे यह स्पष्ट होता है कि बात नेपाल के लिए ही कही गई है । इससे चीन का आशय स्पष्ट होता है कि चीन ने नेपाल को तब त क नक्शे में किसी प्रकार का परिवत्र्तन ना करने का आगाह कर दिया  है । चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि जबतक नेपाल, भारत और चीन के मिलन बिंदु को निर्धारित कर वहाँ जीरो पोस्ट स्थापित नहीं कर दिया जाए तबतक नेपाल अपने प्रचलित नक्शा में कोई परिवत्र्तन ना करे ।  जब नीति और कार्यक्रम में नक्शे की बात आयी तबभ ार ने यह संदेश भेजा था कि अन्तर्देशीय हवाई मार्ग सुचारु होने के साथ ही भारत इ िसवषय पर नेपाल के साथ वात्र्ता करेगा । लेकिन भारत की बात अनसुनी करते हुए जब सरकार ने नये नक्शे को स्वीकृति दी तब भारत ने सार्वजनिक रुप से एक विज्ञप्ति  जारी करते हुए नेपाल के नये नक्शे को अपनी सीमा का अतिक्रमण करार दिया है । साथ ही उस विज्ञप्ति के द्वारा यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जबतक नेपाल की सरकार पुरानी अवस्था के नक्शे पर कायम  नहीं जाती है तबतक दोनों देशों के बीच वात्र्ता सम्भव नहीं होगी । दोनों देशों की विज्ञप्ति से स्पष्ट होता है कि नेपाल की विदेश नीति उलझनों में फँस चुकी है और नेपाल अकेला पड गया है । 
अब प्रश्न यह उठता है  कि  अचानक ऐसा  क्या हुआ है कि नेपाल सरकार को मात्र ७२ घंटों में नया नक्शा बनवाकर उसको स्वीकृति देनी पडी । बाहर आए समाचारों के अनुसार प्रधानमंत्री की पार्टी ने नक्शा में परिवत्र्तन करने का निर्देशन सरकार को दिया था । तो  क्या इससे यह समझा जाए कि नेपाल सरकार सत्तासीन नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के निर्देशन के अनुसार अपनी विदेश  नीति में परिवत्र्तन लाने का प्रयास किया है  या फिर उत्तर दिशा की तरफ से किसी प्रकार के युद्ध या आक्रमण की  आशंका सरकार को हुई थी और किसी सम्भावित युद्ध की तैयारी के लिए  देश के अन्दर जन परिचालन अर्थात् मास मोबिलाइजेशन के लिए आनन फानन में सरकार ने देश का नक्शा बदल दिया ? 
वैसे तो कोरोना संक्रमण शुरु होने के प्रारम्भिक चरण में ही देश में जिस प्रकार की गतिविधियाँ शुरु हुई थी, उससे अनुमान लगाना सहज था कि कोरोना का लाकडाउन राजनीति में भी कुछ नयी रंगत  लाएगा । अध्यादेश तथा नक्शे की राजनीति ने उस नयी रंगत को स्पष्ट वह कर दिया है। इस नयी राजनीति में सरकार के निशाने पर मधेश केन्द्रित दल और मित्र देश भारत है ।  साथ ही निशाने पर लोकतांत्रिक व्यवस्था भी है । इसबार  नीति तथा कार्यक्रम में प्रतिस्पद्र्धात्मक लोकतंत्र की जगह पर सरकार ने परिपूर्ण लोकतंत्र शब्द का प्रयोग किया है । यह शब्द संविधान में कहीं भी नही है ।  यह एकदलीय व्यवस्था को लाने और उसे ठीक ठहराने के लिए खोला गया नया रास्ता है । निश्चित रुप से  समाजवाद उन्मुख नेपाल में नेकपा  का लक्ष्य एकदलीय समाजवादी शासन तंत्र  को देश में लाने का है लेकिन एकदलीय शासन तंत्र के रास्ते मे नेपाल के लिए सबसे बडी  बाधा देश के अन्दर  तराई मधेश है तो देश के बाहर  भारत और अमेरिका दो देश है ।
 यह दोनो देश नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी की नजर में साम्राज्यवादी हैं लेकिन  ये दोनों देश विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र हैं । अमेरिका भौतिक रुप से दूर है लेकिन भारत पडोसी देश है । अमेरिकी  एमसीसी माइलेनियम चैले्रज काम्पैक्ट भी संसद में दर्ज है । एमसीसी के बारे में भी नेकपा में विवाद है ।  नक्शासंशोधन विधेयक और एमसीसी  दोनों को पारित करने के लिए संसद की दो तिहाई बहुमत आवश्यक है । अब देखना यह है कि संसद में क्या पास होता है और क्या फेल । यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि नये नक्शे के अस्त्र द्वारा  इन दो शक्तियो में से एक भारत को हाल देश के भीतर पराजित करने की नीति नेपाल के कम्युनिष्ट  सरकार की रही है । इसीलिए सीमा विवाद के विषय को भारत विरोधी राष्ट्रवाद के साथ जोड दिया गया हैऔर मधेशी नेताओं  पर सोशल मिडिया में चौतर्फी आक्रमण जारी है । प्रधान मंत्री ओली यह मानते हैं कि मधेश नेपाल का है लेकिन मधेशी भारतीय हैं। 
भारत से दूरी और मधेशी के कारण मधेश पर कठोर नियन्त्रण इस सरकार का लक्ष्य है । नक्शा द्वन्द का मूल कारण यही जान पडता है।  मधेश और मधेशियों के साथ भारत का जिस प्रकार का परम्परागत सम्बन्ध रहा है उसके कारण दोनो विषय  एक दूसरे के साथ अन्तर सम्बन्ध रखते हैं । इसीलिए एक तरफ तो भारत के साथ  सीमा विवाद को नाटकीय ढंग से आगे बढाया गया है तो दूसरी तरफ  कोरोना संक्रमण नियंत्रण  के नाम पर  मधेश में सैन्य उपस्थिति बढायी गयी है । संक्रमण के पहले चरण में ही पहले सप्तरी और बाद में  प्रदेश नं २ के आठो जिलो में सेना का परिचालन  संसद के अनुमोदन के बिना ही किया गया है । नेपाल के  पहाडों की आम जनता का भी भारत के साथ रोजगारी और जनजीविका का अत्यन्त गहरा सम्बन्ध है । लेकिन सरकार  इन सारी बातों को नजर अन्दाज करते हुए भारत विरोधी राष्ट्रवाद की भावना को देश के अन्दर और भी मजबूत बनाने  के लिए  विदेश नीति को जुआ के खेल के रुप में सरकार प्रयोग कर रही है । यह प्रवृति  देश और जनता के लिए खतरनाक साबित हो सकती है ।  अगर कोई  यह मानता है कि यह भारत को मात्र परेशान करने के लिए  किया गया है तो यह सोच पर्याप्त नही है  ।  इसके पीछे गम्भीर राजनीतिक मनशाय और लक्ष्य  भी छिपे हुए हो सकते  हैं ।  इसीलिए गहराई में उतर कर घटना क्रम को समझने का प्रयास अत्यन्त आवश्यक है । 
सरिता गिरी
सोमवार ज्येष्ठ १२, २०७७,
 मई २५.२०२०

Comments

  1. It is considereed a India funded and bios consideration. In this essay, Giri ji did not say a word in commitment of motherland Nepal´s sovereignty. Please try to be a Nepalese, Giri jee.

    ReplyDelete
  2. पहेलेताे माननीय साँसद सरिताजीकाे नमन कर्ताहुँ लेकिन उनके अफवाहाेंवाले भडकावजनक विचारकाे खारिजकर्ताहुँ। साँसद हाेनेके नाते अाैर पुर्वमन्त्रीभि रहचुके अापका विचार तथ्यपरक, वस्तुनिष्ट हाेनाचाहिए अाैर अतिरन्जनापुर्ण हाेना नहिँचाहिए। सन १९५० से अागे नेपालके कालापानीमें भारतिय सेनाके पाेष्ट नहिंथा जरुरी हाे ताे दाेनाें देशके इतिहासकार अाैर तत्कालीनकुटनैतिक पत्राचार तलास किजिए । तत्कालीन नेपालके प्रधानमन्त्री मातृका काेइरालानें नेपालके उत्तरी चिनसेसटे नेपालके सिमामें कालापानी सहित १८ भारतीय सैनिक पाेष्ट रख्नेके लिए तत्कालीन भारतीय नेहरु सरकारकाे मन्जुरी दिगइ।सन १९६२ में चीनसे युद्धहुवा अाैर भारत पिछे हटा चीननें एकतर्फि युद्ध विराम घाेषितकि।भारतकि तरफसे सिमा अतिक्रमण जारीहाेनेंके कारण चीननें दाेबारा हमलाके चेतावनी तत्कालीन नेपालके कुटनितिज्ञ हृषिकेश शाहके माध्यमसे पंडित नेहरुजीकाे दे दी अाैर चीनसे सुलहकाे बातभी कहि लेकिन चीननें हमला नहीँ किया, नेपालने सन १९६९ से भारतकाे नेपालका सैनिक पाेष्ट हटानेके लिए कहा प्रधानमन्त्री कृतिनिधी विष्टके समयमें १७ सैनिक पाेष्ट भारतनें हटाई लेकिन सामरिक महत्वके कालापानीमें अल्पकालके लिए भारतीय सेना रख्नेके लिए भारतनें अाग्रह किया व बातका साक्षी तत्कालीन नेपालके मन्त्री विश्वबन्धु थापा अभि भि जिन्दाहैं । ईश प्रकार सन १९५० के वाद भारतनें कालापानीमेंं भारतीय सेना रखाथा । अाप मन्त्री हाेनेके समयमें अापनेभी ये सवाल उठाना चाहिएथा लेकिन अापने काेही पहल नहिँकिया । दाेस्राबात नेपालमें रहे मधेसी जगतकाे कभि नेपाल भारतीय नहिँ मानता विभेदभी नहिँकर्ता लेकिन कुछ भारतीय अाैर कुछ नेपालीनें जरुर एक दाेस्रा देशमें पनाहालिएहैं । नेपाल अाैर भारतकी सम्बन्ध अात्मिय हाेनेका कारण एक देशकी नागरिक दाेस्रे देशमें सहजतासे कामकाज अाैर अावतजावत कर सकतेंहै । नेपाल भारत अाैर चीनसे समदुरीमे सम्बन्ध रख्ना चाहाताहै लेकिन भाषा संस्कृतिके कारण चीनसे ज्यादा भारतसे सम्बन्ध अच्छी रहीहै । अापनें विवेकके तहतपर नहिँ दाेषी भावनामेंं उलजकर ईश लेखमें विचार व्यक्तकिएँहै । हम अापके सम्मान करतेहैं लेकिन अपके भडकावपुर्ण विचारकाे कभि समर्थन नहिँ करेंगे । धन्यबाद !

    ReplyDelete
  3. - गणेश गिरी, काठमान्डु, नेपाल ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

राष्ट्रपतिको दायित्वः पुनर्निर्माण वा विनिर्माण

राष्ट्रपतिको दायित्वः  पुनर्निर्माण वा विनिर्माण ( राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्टप्रमुख बनेका छन।अहिले राष्ट्रपतिज्यूले हतारमा उठाएको आफ्नो कदमले गर्दा अपठ्यारोमा परी सक्नु भएको छ । वहाँ त्यस बाट आफू कसरी निस्कनु हुन्छ वा देशलाई निकास दिनका लागि कसरी अगाडी बढनु हुन्छ ? सर्वाधिक महत्वको विषय हुन पुगेकोछ । वहाँको कदमले प्रमाणित गर्नेछ, वहाँँ राजा जस्तो बन्दी हुनु हुन्छ वा कानूनको अधिनमा रही स्वयं पनि स्वतन्त्र हुनुहुन्छ र सबैको स्वतंत्रता सुरक्षित राख्नुहुन्छ । वहाँको कदमले दर्शाउनेछ कि वहाँ हिजो को नेपाल को विनिर्माण गरी नया नेपालको निर्माणका लागि मार्ग प्रशस्त गर्नु हुनेछ वा हिजोकै नेपालको पुनस्र्थापनामा लाग्नुहनेछ । पुननिर्माणले मुलुक लाई यथास्थितिवाद तिर धकेल्छ भने विनिर्माणले जनताले अपेक्षागरेको नया नेपालको निर्माणको जग बसाल्छ।)  राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्ट्रप्रमुख बनेका छन। विजीतहरुको मुलुक (एयककभककष्यल)लाई सबैको देश (अयगलतचथ) बनाउन्को बीडा राष्ट्रपतिज्यूले थाम्नु भएकोछ र त्यो काम आफूमा स्यानो र सजिलो काम

विदेशमा महिला कामदार- उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति

अन्नुपुर्ण पोष्ट २०६९ साउन २९ गते, AUGUST 13, 2012,MOONDAY मा प्रकाशित लेख  खाडी मुलुकमा नेपाली महिलाका लागि रोजगारको पर्याप्त अवसर छ, तर घरेलु कामदारको सुरक्षित र मर्यादित रोजगारका लागि सम्झौता गरी पठाउने व्यवस्था नगरी उनीहरु लाई रोक्नु धेरैका लागि रोचक र लाभदायी अर्थराजनीति हुन सक्दछ।   विदेशमा महिला कामदार-उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति   - सरिता गिरी          घरेलु कामदार भई वैदेशिक रोजगारका लागि जान खोज्ने नेपाली महिलाको उमेर हद ३० वर्ष तोक्ने नेपाल सरकारको १० बुँदे निर्णय महिला समानता र स्वतंत्रता को अधिकारमाथि ठाडो आक्रमण हो । माओवादी दल जसले हिजो कम्यूनिष्ट क्रान्ति र महिला उन्मुक्तिको नारा दिई उनीहरुलाई बन्दूक बोकेर सशस्त्र हिसां गर्न सिकायो, सत्तामा गएपश्चात् उसले तिनैमािथ बुर्जुवाबादी, सामन्तवादी र पितृसतावादी नीति कसरी अख्तियार गर्नपर्याे, सरकारको यो निर्णय अन्तिरम संविधान र वैदेशिक रोजगार ऐन २०६४ विपरीत छ । तर कानूनभंदा पनि आदेश र निर्देशनको आधारमा शासन चलाउने परम्पराको जरो नेपालमा गहिरो रहेको छ । दिनै पछि बाँच्नका लागि संघर्ष गरीरहेको समान्य जनता र वैदे