Skip to main content

नेपाल की बदलती विदेश नीतिः मधेश की आँखों में भाग २

नेपाल की बदलती विदेश नीतिः मधेश की आँखों में
भाग २

 झापा विद्रोह से शुरु होकर माओवादी जनयुद्ध के एक दशक का टेढा मेढा सफर तय कर २०६२–६३ के जन आन्दोलन के बाद निरन्तर सत्ता साझेदारी करते हुए  नेपाल कम्युनिट पार्टी  २०७४ साल में बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई है र्।  सरकार अपने बहुमत का प्रयोग कर पार्टी  तथा देश की  विदेश नीति परिवत्र्तित करने के लिए उद्दत है । इसके लिए नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी और चिनिया कम्युनिष्ट पार्टी के बीच गत साल चिनिया राष्ट्रपति शी के भ्रमण के दौरान दूरगामी महत्व वाले समझौते हुए हैं । अगर उन समझौतों को  गहराई से मनन किया जाए तो इस बात की सहज  अनुभूति हो जाती है कि  समझौता देश में   सत्ता संचालन के लिए निर्देशन के समान भी हैं । चिनिया कम्युनिष्ट पार्टी के साथ समझौता और अभी का नक्शा संशोधन प्रकरण देश की विदेश नीति मे परिवत्र्तन की दिशा को स्पष्ट करता है । अभी की सरकार  ने निश्चित रुप से यह निर्णय  नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के निर्देशन अनुसार लिया है । नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि पार्टी वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्तों का अवलम्बन करती है, अर्थात पार्टी के इस निर्णय के पीछे माक्र्सिज्म, लेनिनिज्म , माओइज्म से सम्बन्धित कोई न कोई सैद्धान्तिक अवधारणा और तदनुसार का अभ्यास जुडा हुआ है । हाल विदेश नीति में परिवत्र्तन के लिए वह सैद्धान्तिक अवधारणा क्या हो सकती है, उसको समझने का प्रयास करना होगा । तभी हम अपने अपने सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक धरातल से सरकार के कदम के बारे में अपना दृष्टिकोण तय कर सकते हैं । इसको समझने के लिए इतिहास में बहुत दूर नहीं बस ७० सत्तर साल पीछे की विश्व राजनीति के पन्नों को पलटाना होगा ।
सन् १९१७ में सबसे पहले सोवियत संघ में औरे उसके बाद चीन मे १९४९ में जनवादी  क्रा्रति सफल हुई । उसके बाद   बेजिंग और मास्को के बीच फरवरीं  १९५० में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संधि सम्पन्न हुआ था । वह युग मूलतः एशिया और अफ्रीका में  कम्युनिष्ट आंदोलन का युग था । उस युग में चीन ने सोवियत संघ को अपना नेता स्वीकार किया था । संधि के बाद चीनिया कम्युनिष्ट पार्टी में चिनिया विदेश नीति के बारे मे विचार विमर्श हुआ ।  पार्टी ने चीन की परम्परागत वेदेशिक नीतिको  को त्याग कर  नये विदेश नीति को अंगीकार करने का निर्णय लिया और वह निर्णय उस समय विश्व राजनीत मे विद्दमान दो मुख्य खेमों मे से  एक खेमे की तरफ  झुकने का था । अंग्रेजी में इसे  (भिबलष्लन तय यलभ कष्मभ – कहा गया । चीन इस निर्णय के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व में रहे  समाजवादी  खेमे में शामिल हो गया और  अगले दो दशकों इस  खेमे में रहा । वह युग शीत युद्ध का भी युग था ।   माओ ने अमेरिका को अपना प्रमुख शत्रु घोषित कर सामा्रज्यवादी अमेरिका के  विरुद्ध अभियान का नेतृत्व स्वयं किया  । चीन का ध्यान उस वक्त एशिया में अपना नेतृत्व स्थापित करने पर  केन्द्रित था । उसी समय जब कोरिया में युद्ध शुरु हुआ तब चीन उस युद्ध में पूर्वीय एकता और क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के नारों के साथ संलग्न हुआ । माओ का यह मानना था कि चीन का उस युद्ध में प्रवेश करना चीनी, कोरिया और पूर्वीय हितों की रक्षा के लिए अपरिहार्य है । शुरु में तो सोवियत संघ ने चीन को युद्ध में सहयोग करने में आनाकानी की थी लेकिन बाद में सहयोग किया था ।
उस युद्ध में बहुत अधिक  चीनिया नागरिकों की जान गयी थी लेकिन युद्ध  का प्रयोग चीन ने देश के भीतर  तेज गति में जन परिचालन के लिए किया था । युद्ध के लिए किए गये जन परिचालन  के दौरान चिनिया कम्युनिष्ट पार्टी ने समाज के कोने कोने में अपनी पहँुच और पकड बनायी । दो खेमों में विभाजित विश्व में चीनिया संलग्नता के बाद कोरिया उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में विभाजित होगया । वह विभाजन आज भी कायम है । चीन की नयी विदेश नीति का असर उसकी  आन्त।िरक राजनीति पर भी पडा ।
क्रांति के दौरान  चीन में  चिनियाँ कम्युनिष्ट पार्टी और च्यांग काई शेक की क्युमिनटांग पार्टी के पक्षधरों के बीच भी युद्ध जारी था । च्यांग काई शेक अमेरिकन खेमे के थे और चीन सोवियत संघ खेमा में था । दोनो पक्ष अलग अलग  साम्राज्यवादी जापान से युद्ध लड रहे थे ।
चिनिया कम्युनिष्ट पार्टी को  उस समय  ं एक तरफ साम्राज्यवादी जापानी से  तो  दूसरी तरफ च्यांगकाई शेक और उनके  पक्षधर के साथ  लडना पड रहा था। सन् १९३६– ३७ में  च्यांग काई शेक का  अपहरण माओ की पार्टी ने किया और तब चिनिया  कम्युनिष्ट पार्टी और च्यांग काई शेक की क्यूमिनटांग पार्टी के बीच जापान के विरुद्ध एक जुट हो कर लडने के बारे में सहमति हुई । जापानियों को  चीन ने युद्ध में हराया और उसके लिए अमेरिका से भी सहयोग लिया । लेकिन १९४६ से  चिनिया कम्युनिष्ट पार्टी च्यांग काई शेक पर भारी पडते जा रहे थे । माओ के नेतृत्व में चिनियाँ क्रांति की सफलता के बाद च्यांग काई शेक को मेनलैंड चीन छोडकर ताइवान की तरफ भागना पडा ।
उस वक्त माओ ने अन्तराष्ट्रिय राजनीति में  इंटरमिडिएट जोन के सिद्धान्त को लागू किया था । इन्टरमिडिएट जोन से माओ का तात्पर्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच की प्रत्यक्ष दूरी के बीच के जोन में ं अवस्थित देश और लोग थे  । माओ का इ्रटरमिडिएट जोन सिद्धान्त के तहत यह मान्यता थी  कि जब समाजवादी सोवियत संघ और साम्राज्यवादी अमेरिका के बीच विश्व राजनीति मे  द्वन्द जारी है तब सोवियत संघ की रक्षा ींटरमिडिएट जोन ही कर सकता है । अमेरिका सोवियत संघ पर तब तक आक्रमण नहीं कर  सकता है जब तक अमेरिका इंटरमिडिएट जोन पर नियन्त्रण नहीं कर ले ।  माओ की रणनीति में इन्टरमिडिएट जोन की रक्षा का बहुत ही महत्व रहा । माओ की परिकल्पना के  इन्टरमिडिएट जोन  में  एक तरफ चीन , चिनियाँ जनता और चिनिया पक्षधर देश थे तो दूसरी  तरफ अमेरिकी शासक वर्ग के लोग थे । इंटरमिडिएट जोन में होने वाला संघर्ष इन दोनों पक्ष के बीच का संघर्ष था । माओ देश के भीतर भी इस रणनीति पर कायम रहे । इसीलिए क्रांति की सफलता के बाद च्यांग काई शेक को चीन मेनलैंड छोडकर भागना पडा । माओ ने उसके बाद देश के अन्दर समाजवाद का  आधार बनाने  के लिए भी उसी नीति का अनुसरण करते हुए देश के अन्दर असहमति रखने वालों के उन्मूलन का कार्यक्रम  जारी रखा । 
आज नेपाल में जो हो रहा है उसको समझने के लिए चीन के सन १९५० के पहले  और बाद के समय को समझना होगा । इंटरमिडिएट जोन  की परिकल्पना को आज  चीन ,नेपाल,  भारत और अमेरिका के सन्दर्भ मे देखा जाए तो  कुछ रोचक दृश्य उभर कर आते हैं । आज सोवियत संघ की जगह समाजवादी चीन ले चुका है और  समाजवाद उन्मुख नेपाल की विदेश नीति चीन की ओर झुकते जा रही है ।  माओ के इन्टरमिडिएट जोन के सिद्धान्त के अनुसार अमेरिका, भारत  और चीन तथा नेपाल के स्वार्थ की टकराहट के बीच नेपाल इन्टरमिडिएट जोन  है । भौगोलिक रुप से अमेरिका दूर है लेकिन भारत साथ का पडोसी है । इसीलिए  प्रधानमंत्री ओली की नजर में समाजवादी नेपाल और साम्राज्यवादी भारत के बीच  इन्टरमिडिएट जोन में मधेश पडता है । मधेश जो १८१६ और १८६०  की संधि के अनुसार नेपाल का हिस्सा बना  लेकिन भौगोलिक, एैतिहासिक, सांस्कृतिक, पारम्परिक और सामुदायिक तौर पर आज भी भारत के नजदीक है । नेपाल में समाजवाद के आधार का निर्माण करने के लिए वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्त के अनुसार प्रधानमंत्री ओली और उनकी पार्टी की आवश्यकता है कि वे मधेश और मधेशी पर कठोर नियंत्रण कायम करें । साम्राज्यवादी भारत को परास्त करने के लिए  उनको मधेशीपन को समाप्त करना होगा । लेकिन यह काम वह स्वयं अकेले नहीं कर सकते हैं । इसके लिए उनको कांग्रेस के सहयोग की आवश्यकता है , ठीक उसी प्रकार से जैसे माओ को जापान को परास्त करने के लिए च्यांग काई शेक के सहयोग की आवश्यकता पडी थी । सरकार ने नेपाल के  नक्शा के संशोधन का जो विधेयक संसद में दर्ज कराया है उसे पारित करा कर  कालापानी क्षेत्र से  भारत को पीछे धकेल चीन को आगे लाने का मनशाय नेपाल सरकार का है । नहीं तो कालापानी क्षेत्र मे नेपाल और भारत के प्रत्यक्ष स्वार्थ के बीच किसी प्रकार की टकराहट नहीं दिखती है । लेकिन 
चीन की इसमें  अभी सहमति  नहीं दिख रही है लेकिन भविष्य के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है । इस क्षेत्र मे द्वन्द का कारण क्षेत्रीय या वैश्विक ही होगा । लेकिन यदि फिलहाल नया नक्शा पास हुआ तब सामाजिक और राजनीतिक इंजिनियरिंग की श्ुरुवात मधेश पर होगी  ।
सरिता गिरी
मई २५ , २०२०
ज्येष्ठ १२, २०७७
सोमवार

Comments

Popular posts from this blog

What triggered the rage?

Some days ago I posted a tweet saying that the national unity can be strengthened in the country by sharing the symbols of dress and language of two different and distinct peoples as the official symbols of Nationalism. What happened immediately after that was surprising as well as shocking. There was a kind of flash flood of tweets directed to me and submerging me. I was getting breathless as I was trying to read each and every one of them. But before I could finish one, another one was there. Huge number of tweets in replies  coming like shells of bomb with super speed was not some thing natural, and as someone tweeted afterwards that nearly 300 tweets per minute were coming to me.They were hurting me and making my soul bleed in pain. I then     realized what  the rage of racism and hatred could be like and how powerful the hidden rage can be when it explodes all of a sudden like a volcano . I also realized that how disastrous the impacts   could be upon a supposedly vulnerabl

राष्ट्रपतिको दायित्वः पुनर्निर्माण वा विनिर्माण

राष्ट्रपतिको दायित्वः  पुनर्निर्माण वा विनिर्माण ( राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्टप्रमुख बनेका छन।अहिले राष्ट्रपतिज्यूले हतारमा उठाएको आफ्नो कदमले गर्दा अपठ्यारोमा परी सक्नु भएको छ । वहाँ त्यस बाट आफू कसरी निस्कनु हुन्छ वा देशलाई निकास दिनका लागि कसरी अगाडी बढनु हुन्छ ? सर्वाधिक महत्वको विषय हुन पुगेकोछ । वहाँको कदमले प्रमाणित गर्नेछ, वहाँँ राजा जस्तो बन्दी हुनु हुन्छ वा कानूनको अधिनमा रही स्वयं पनि स्वतन्त्र हुनुहुन्छ र सबैको स्वतंत्रता सुरक्षित राख्नुहुन्छ । वहाँको कदमले दर्शाउनेछ कि वहाँ हिजो को नेपाल को विनिर्माण गरी नया नेपालको निर्माणका लागि मार्ग प्रशस्त गर्नु हुनेछ वा हिजोकै नेपालको पुनस्र्थापनामा लाग्नुहनेछ । पुननिर्माणले मुलुक लाई यथास्थितिवाद तिर धकेल्छ भने विनिर्माणले जनताले अपेक्षागरेको नया नेपालको निर्माणको जग बसाल्छ।)  राजाले आर्जेको मुलुकमा एक जना समान्य नागरिक राष्ट्रपति भयी राष्ट्रप्रमुख बनेका छन। विजीतहरुको मुलुक (एयककभककष्यल)लाई सबैको देश (अयगलतचथ) बनाउन्को बीडा राष्ट्रपतिज्यूले थाम्नु भएकोछ र त्यो काम आफूमा स्यानो र सजिलो काम

विदेशमा महिला कामदार- उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति

अन्नुपुर्ण पोष्ट २०६९ साउन २९ गते, AUGUST 13, 2012,MOONDAY मा प्रकाशित लेख  खाडी मुलुकमा नेपाली महिलाका लागि रोजगारको पर्याप्त अवसर छ, तर घरेलु कामदारको सुरक्षित र मर्यादित रोजगारका लागि सम्झौता गरी पठाउने व्यवस्था नगरी उनीहरु लाई रोक्नु धेरैका लागि रोचक र लाभदायी अर्थराजनीति हुन सक्दछ।   विदेशमा महिला कामदार-उमेरहदबंदी को अर्थराजनीति   - सरिता गिरी          घरेलु कामदार भई वैदेशिक रोजगारका लागि जान खोज्ने नेपाली महिलाको उमेर हद ३० वर्ष तोक्ने नेपाल सरकारको १० बुँदे निर्णय महिला समानता र स्वतंत्रता को अधिकारमाथि ठाडो आक्रमण हो । माओवादी दल जसले हिजो कम्यूनिष्ट क्रान्ति र महिला उन्मुक्तिको नारा दिई उनीहरुलाई बन्दूक बोकेर सशस्त्र हिसां गर्न सिकायो, सत्तामा गएपश्चात् उसले तिनैमािथ बुर्जुवाबादी, सामन्तवादी र पितृसतावादी नीति कसरी अख्तियार गर्नपर्याे, सरकारको यो निर्णय अन्तिरम संविधान र वैदेशिक रोजगार ऐन २०६४ विपरीत छ । तर कानूनभंदा पनि आदेश र निर्देशनको आधारमा शासन चलाउने परम्पराको जरो नेपालमा गहिरो रहेको छ । दिनै पछि बाँच्नका लागि संघर्ष गरीरहेको समान्य जनता र वैदे